आदिल मंसूरी जी प्रसिद्ध कवि, नाटककार, और सुलेखक थे जो की अपनी रचनाये हिंदी, उर्दू के अलावा हजरती भाषा में भी लिखा करते थे | इनका जन्म 18 मई 1936 में अहमदाबाद में तथा मृत्यु 6 नवंबर 2008 में अमेरिका में हुई थी | इनकी रचनाओं की वजह से इन्हे सन 2008 में वली गुजराती पुरस्कार द्वारा सम्मानित भी किया जा चूका है | अगर आप इनके द्वारा लिखी गयी रचनाओं के बारे में जानना चाहते है तो इसके लिए हमारे माध्यम से इसकी जानकारी पा सकते है |
Adil Mansuri Shayari in Gujarati
क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो
हुदूद-ए-वक़्त से बाहर अजब हिसार में हूँ
मैं एक लम्हा हूँ सदियों के इंतिज़ार में हूँ
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी
यादों ने उसे तोड़ दिया मार के पत्थर
आईने की ख़ंदक़ में जो परछाईं पड़ी थी
Adil Mansuri Gujarati Ghazals
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
हम्माम के आईने में शब डूब रही थी
सिगरेट से नए दिन का धुआँ फैल रहा था
ख़्वाहिश सुखाने रक्खी थी कोठे पे दोपहर
अब शाम हो चली मियाँ देखो किधर गई
वो जान-ए-नौ-बहार जिधर से गुज़र गया
पेड़ों ने फूल पत्तों से रस्ता छुपा लिया
ख़ुद-ब-ख़ुद शाख़ लचक जाएगी
फल से भरपूर तो हो लेने दो
Gujarati Kavita Shayari Sher Adil Mansuri
हम को गाली के लिए भी लब हिला सकते नहीं
ग़ैर को बोसा दिया तो मुँह से दिखला कर दिया
खिड़की ने आँखें खोली
दरवाज़े का दिल धड़का
फिर कोई वुसअत-ए-आफ़ाक़ पे साया डाले
फिर किसी आँख के नुक़्ते में उतारा जाऊँ
कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ में
कब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार
बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था
मैं हाथ में तलवार लिए झूम रहा था
आदिल रज़ा मंसूरी की ग़ज़लें
कब से टहल रहे हैं गरेबान खोल कर
ख़ाली घटा को क्या करें बरसात भी तो हो
फूलों की सेज पर ज़रा आराम क्या किया
उस गुल-बदन पे नक़्श उठ आए गुलाब के
जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर
वो तस्वीर बातें बनाने लगी
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
जिस्म की मिट्टी न ले जाए बहा कर साथ में
दिल की गहराई में गिरता ख़्वाहिशों का आबशार
Adil Mansuri Gujarati Shayari
वो तुम तक कैसे आता
जिस्म से भारी साया था
जाने किस को ढूँडने दाख़िल हुआ है जिस्म में
हड्डियों में रास्ता करता हुआ पीला बुख़ार
उँगली से उस के जिस्म पे लिक्खा उसी का नाम
फिर बत्ती बंद कर के उसे ढूँडता रहा
गिरते रहे नुजूम अंधेरे की ज़ुल्फ़ से
शब भर रहीं ख़मोशियाँ सायों से हम-कनार
Shayari of Adil Mansuri
नींद भी जागती रही पूरे हुए न ख़्वाब भी
सुब्ह हुई ज़मीन पर रात ढली मज़ार में
दरवाज़ा खटखटा के सितारे चले गए
ख़्वाबों की शाल ओढ़ के मैं ऊँघता रहा
तू किस के कमरे में थी
मैं तेरे कमरे में था
दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का
झोंका हवा का खिड़की के पर्दे हिला गया
फिर बालों में रात हुई
फिर हाथों में चाँद खिला
Adil Mansuri Male Na Male
दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
तन्हाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख
तुम को दावा है सुख़न-फ़हमी का
जाओ ‘ग़ालिब’ के तरफ़-दार बनो
दरिया के किनारे पे मिरी लाश पड़ी थी
और पानी की तह में वो मुझे ढूँड रहा था
मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहीं
बच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख-भाल से
Adil Mansuri Ni Gazal
तस्वीर में जो क़ैद था वो शख़्स रात को
ख़ुद ही फ़्रेम तोड़ के पहलू में आ गया
आवाज़ की दीवार भी चुप-चाप खड़ी थी
खिड़की से जो देखा तो गली ऊँघ रही थी
मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ
ये जब्र है कि मैं ख़ुद अपने इख़्तियार में हूँ
ऐसे डरे हुए हैं ज़माने की चाल से
घर में भी पाँव रखते हैं हम तो सँभाल कर
नश्शा सा डोलता है तिरे अंग अंग पर
जैसे अभी भिगो के निकाला हो जाम से
