बुद्ध पूर्णिमा का दिन बौद्ध धर्म के लोगो के अलावा हिन्दू धर्म के लोगो के लिए भी बहुत मायने रखता है क्योकि भगवन गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के नौंवे अवतार थे | इसीलिए गौतम बुद्ध के जन्मदिवस को गौतम बूढ़ा जयंती व बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है बुद्ध पूर्णिमा इसीलिए कहा जाता है क्योकि यह बैशाख माह की पूर्णिमा के दिन ही पड़ती है | इसीलिए इस दिन के ऊपर हमारे कुछ महान शायरों द्वारा कई बेहतरीन कविताये लिखी गयी है अगर आप उन कविताओं के बारे में किसी भी कक्षा व क्लास 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 के लिए जानना चाहे तो यहाँ से जान सकते है |
Poetry on Buddha Purnima
यही धर्म है मोक्ष पथगामी
मध्यम मार्ग सरल
पाँच अनुशीलन हैं इसके
मानव पालन कर.
सत्कर्मों की पूँजी बना ले
प्रेम-भाव अविरल
कर्मों को अपना धर्म समझ ले
करना किसी से न छल.
प्राणीमात्र पर दया करना तू
जो हैं दीन-निर्बल
बुद्ध ने जो सन्देश दिया है
उस पर करना अमल.
राग-रंग नहीं करना तुझको
संयम है तेरा बल
मानव जीवन तुझे मिला है
रखना इसे निर्मल.
त्रिपिटक ग्रंथों में समाये
जीवन सार सकल
प्रज्ञा शील करुणा अपना ले
मोक्ष की कामना कर.
स्वर्ग-नर्क सब किसने देखा ?
किसने देखा कल ?
परम-धाम जाना है तुझको
बुद्ध की राह पर चल.
बुद्धं शरणम गच्छामि
धम्मं शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि
पंचशील के अनुगामी.
Buddha Purnima Kavita in Marathi
बुद्ध पूणिॅमा हुई एक दर्शन,
गूंज उठी हर दिशा में एक सामान।
बुद्ध पूर्णिमा हुया चारो ओर प्रकाशमय,
जन -जागरण आया इस जहां में बन कर नए सूत्र धार.
बुद्ध पूर्णिमा बनी एक मधुर वाणी,
दिखा कर हर इंसानो को ज्योतिर्मय पथ का आविष्कार।
जग में फैले जो बुद्ध- वाणी लिपटे धरा के पंच – भूत में हर बार.
नदी, पर्वत, प्राणी जगत हुए प्रकाशमय,
बुद्ध पूर्णिमा बनी ज्योतिर्मय,
नव प्रभात को किया आलिंगन,
बुध वाणी संगीतमय बनकर
दिव्य ज्योति फैलाया हर बार.
हर सुर, ताल, लय एक सूत्र में बँधा ,प्रसारित हुई
बुद्ध वाणी धरा पर बनी अनंत शक्ति, दिखा कर जगत को
एक नए चमत्कार।
Buddha Purnima Poem In Hindi
अविष्कार हुई बुद्ध वाणी भूमध्य सागर के उस पार,
दूर समुन्दर के विस्तृत दृष्टि में, बुद्ध
दर्शन बन गया दिव्य शक्ति का आधार..
बुद्ध पूर्णिमा दिखाया जग को एक नए दिशा,
हिंसा मुक्त पृथ्वी में हुया अविष्कार रचनात्मक गुणों का आधार.
उज्जवलित हुई बुद्ध वाणी कितने ही देशो के मिट्टी में हर बार।
एक सूत्र में गाथI भिन्न देशो के कई मझहबो को,
बुद्ध दर्शन गुथा गया पुष्प माला में, हिंसा मुक्त, दया भाव पृथ्वी पर
एक सूत्र धार.
बुद्ध पूर्णिमा हुया चारो ओर प्रकाशमय,
गूंज उठी हर दिशा में एक सामान।
जन जागरण आया इस धरा में,
बन कर नए सूत्र धार
बुद्ध कविता मराठी
मेरे महाभिनिष्क्रमण की ताकत
मेरे पिता नहीं थे
उन्होंने तो मेरे उद्विग्न मन को
बाँधने का प्रयास किया
निःसंदेह ….. एक पिता के रूप में
उनके कदम सराहनीय थे
पर यशोधरा के उत्तरदायी बने !
मैं जीवन की गुत्थियों में उलझा था
मैं प्रेम को क्या समझता
मेरी छटपटाहट में तो दो रिश्ते और जुड़ गए …
यशोधरा मौन मेरी व्याकुलता की सहचरी बनी !
मैं बनना चाहता था प्रत्युत्तर – राहुल की अबोध मुस्कान का
पर दर्द के चक्रव्यूह में
मैं मोह से परे रहा ….
मैं जानता हूँ
यशोधरा , राहुल मेरी ज़िम्मेदारी थे
पर मैं विवश था ….
मेरे इन विवश करवटों को यशोधरा ने जाना
और मेरी खोज की दिशा में
वह उदगम बनी
सारे बन्द रास्ते खोल दिए
……………
मैं तो रोया भी
पर उसकी आँखें दुआएं बन गईं
उस वक़्त
मुझमें और राहुल में
कोई फर्क नहीं रहा …..
वह पत्नी से माँ बन गई
और उसके आँचल की छाँव में मैं
सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध हुआ …..
दुनिया चाहे मुझे जिस उंचाई पर ले जाए
करोड़ों अनुयायी हों
पर मैं बुद्ध
इसे स्वीकार करता हूँ –
निर्वाण यज्ञ में
यशोधरा तू मेरी ताकत रही
दुनिया कुछ भी कहे
सच तो यही है,
यदि यशोधरा न होती
तो मैं सिद्धार्थ ही होता…
Poem on Buddha Jayanti in Hindi
सुनो बुद्ध –
हो चुके होंगे तुम मुक्त
अभी मनुष्यों ने नहीं दिया है निर्वाण तुम्हें
आये दिन तुम खड़े होते हो मुजरिम बनकर
किसी न किसी गृहस्थ प्रबुद्ध के कटघरे में।
कसूर वही चिरंतन स्त्री पलायन।
पर तुम समझते हो
सिद्धार्थ भी तो अटका था दो ही चीजों में
धन और काम
इन ही दो पाटों के बीच पिस जाते हैं
सभी सांसारिक बोधिसत्व।
पर तुम कह तो सकते हो
वो तुम नहीं सिद्धार्थ था
चलो मैं कह देता हूँ।
सुनो गृहस्थ प्रबुद्धों –
कोई बुद्ध नहीं करता पलायन
सिद्धार्थ ही करते हैं।
बुद्ध पकड़ते ही नहीं
तो त्यागने का प्रश्न नहीं
सिद्धार्थ को लगता है
कि उसने पकड़ा है
सो वो ही त्यागता है
फिर सभी कुछ तो त्यागता है वो भी
तुम ही क्यूँ अटक जाते हो स्त्री पर?
फिर ये भी तो बताओ
कि लौट आये थे बुद्ध!
हर सिद्धार्थ का बुद्ध जब जन्मता है
तो स्वीकारता है वो सब
जो भूल गया था सिद्धार्थ
नि:शब्द खड़े सुनते भी तो हैं
यशोधरा के व्यथित ह्रदय को
क्या सिद्धार्थ सुन पाता?
बुद्ध के शून्य में ही समा पाता है
हर यशोधरा का प्रेम; जानती है
सिद्धार्थ में कुछ तो भोग था ही
अब यशोधरा भी समर्पित है भिक्षुणी होकर।
बस मानवों तुम्हारा ही शूल नही निकलता
पूछो अपने अंदर के सिद्धार्थ से
कितना बुद्ध पनपा है अभी
उत्तर में पाओगे स्वयं को नतमस्तक
बुद्ध के बुद्धत्व के सम्मुख
और वो शांत होंगे सदा की भाँति
इक मद्धिम मुस्कान लिए।
Buddha Purnima Kavita in Hindi
मैं सिद्धार्थ शुद्धोधन प्यारा
प्रजावती का राजदुलारा
लुम्बिनी में जन्म हुआ था
कपिलवस्तु था घर हमारा .
गौतम गोत्र शाक्य वंशधारी
क्षत्रीय वर्ण सनातनचारी
जन्मदात्री मेरी महामाया
मौसी गौतमी बनी थी धाया
राज-वैभव कभी रास न आया
याधोधरा भी लागे माया
पिता ने सारे जतन किये थे
मोहपाश में बंध नहीं पाया .
देखा मैंने एक बीमार को
एक अपाहिज वृद्ध लाचार को
मृत देह काठी पर पाया
देख उसे वैराग्य समाया
