डॉ. भीमराव राम जी आंबेडकर जो की भारतीय संविधान निर्माता है इनका जनम 14 अप्रैल 1891 महू, इंदौर जिला, मध्य प्रदेश, भारत में हुआ था यह अधिक बाबा साहेब के नाम से लोकप्रिय है वह एक भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक थे उनकी मृत्यु 65 साल की उम्र में 6 दिसम्बर 1956 में हुई थी | आंबेडकर जी एक प्रेरणादायी व्यक्ति थे इसीलिए हम आपको उनके द्वारा कहे गए कुछ महत्वपूर्ण विचारो के बारे में बताते है जो की आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है जिसके बारे में आप जान सकते है |
अम्बेडकर के राजनीतिक विचार
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जिस तरह मनुष्य नश्वर है ठीक उसी तरह विचार भी नश्वर हैं। जिस तरह पौधे को पानी की जरूरत पड़ती है उसी तरह एक विचार को प्रचार-प्रसार की जरुरत होती है वरना दोनों मुरझा कर मर जाते है।
यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं, तो सभी धर्मों के धर्मग्रंथों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
राजनीतिक अत्याचार सामाजिक अत्याचार की तुलना में कुछ भी नहीं है और एक सुधारक जो समाज को खारिज कर देता है वो सरकार को खारिज कर देने वाले राजनीतिज्ञ से ज्यादा साहसी हैं।
Bhimrao Ambedkar Vichar
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जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हांसिल कर लेते, क़ानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके किसी काम की नहीं।
मैं किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं ने जो प्रगति हांसिल की है उससे मापता हूँ
मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ जो स्वतंत्रता , समानता , और भाई -चारा सीखाये
लोग और उनके धर्म सामाजिक मानकों द्वारा; सामजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए . अगर धर्म को लोगो के भले के लिए आवशयक मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा
डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के अनमोल विचार
इतिहास बताता है कि जहाँ नैतिकता और अर्थशाश्त्र के बीच संघर्ष होता है वहां जीत हमेशा अर्थशाश्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल ना लगाया गया हो।
बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए
जिस प्रकार हर एक व्यक्ति यह सिद्धांत दोहराता हैं कि एक देश दूसरे देश पर शासन नहीं कर सकता, उसी तरह उसे यह भी मानना होगा कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शासन नहीं कर सकता।
भीम राव अम्बेडकर विचार
हिंदू धर्म में, विवेक, कारण, और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है
क़ानून और व्यवस्था राजनीति रूपी शरीर की दवा है और जब राजनीति रूपी शरीर बीमार पड़ जाएँ तो दवा अवश्य दी जानी चाहिए।
आज भारतीय दो अलग-अलग विचारधाराओं द्वारा शासित हो रहे हैं। उनके राजनीतिक आदर्श जो संविधान के प्रस्तावना में इंगित हैं वो स्वतंत्रता, समानता, और भाई -चारे को स्थापित करते हैं और उनके धर्म में समाहित सामाजिक आदर्श इससे इनकार करते हैं।
डॉ अम्बेडकर के आर्थिक विचार
क़ानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा ज़रूर दी जानी चाहिए
पति- पत्नी के बीच का सम्बन्ध घनिष्ट मित्रों के सम्बन्ध के सामान होना चाहिए
समुद्र में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूँद के विपरीत, इंसान जिस समाज में रहता है वहां अपनी पहचान नहीं खोता। इंसान का जीवन स्वतंत्र है वह सिर्फ समाज के विकास के लिए पैदा नहीं हुआ है, बल्कि स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है।
Ambedkar Vichar in Hindi
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मनुष्य एवम उसके धर्म को समाज के द्वारा नैतिकता के आधार पर चयन करना चाहिये |अगर धर्म को ही मनुष्य के लिए सब कुछ मान लिया जायेगा तो किन्ही और मानको का कोई मूल्य नहीं रह जायेगा
एक महान आदमी एक प्रतिष्ठित आदमी से इस तरह से अलग होता है कि वह समाज का नौकर बनने को तैयार रहता है
समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।
भीमराव अम्बेडकर शिक्षा
लोग और उनके धर्म, सामाजिक नैतिकता के आधार पर, सामाजिक मानकों द्वारा परखे जाने चाहिए। अगर धर्म को लोगों के भले के लिये आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा।
हमारे पास यह स्वतंत्रता किस लिए है? हमारे पास ये स्वत्नत्रता इसलिए है ताकि हम अपने सामाजिक व्यवस्था, जो असमानता, भेद-भाव और अन्य चीजों से भरी है, जो हमारे मौलिक अधिकारों से टकराव में है, को सुधार सकें।
सागर में मिलकर अपनी पहचान खो देने वाली पानी की एक बूँद के विपरीत , इंसान जिस समाज में रहता है वहां अपनी पहचान नहीं खोता . इंसान का जीवन स्वतंत्र है . वो सिर्फ समाज के विकास के लिए नहीं पैदा हुआ है, बल्कि स्वयं के विकास के लिए पैदा हुआ है
जाति पर अम्बेडकर के विचार
हर व्यक्ति जो मिल के सिद्धांत कि एक देश दूसरे देश पर शाशन नहीं कर सकता को दोहराता है उसे ये भी स्वीकार करना चाहिए कि एक वर्ग दूसरे वर्ग पर शाशन नहीं कर सकता.
यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शाश्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए
एक सफल क्रांति के लिए सिर्फ असंतोष का होना ही काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए न्याय, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों में गहरी आस्था का होना भी बहुत आवश्यक है।
