Festival (त्यौहार)

शीतला अष्टमी 2020- शीतला माता की कथा, व्रत पूजा विधि, पूजन व महत्व

शीतला अष्टमी 2018

भारत देश त्योहारों का देश होता है हमारे इस देश में कई प्रकार के त्यौहार, व्रत व धार्मिक पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है | उसी तरह प्रसिद्द त्यौहार होली के बाद शीतला अष्टमी का त्यौहार भी आता है जिसे हम ‘बूढ़ा बसौड़ा’, ‘बसौड़ा’, ‘बासौड़ा’, ‘लसौड़ा’ या ‘बसियौरा’ के नाम से भी जानते है | इसीलिए हम आपको शीतला अष्टमी के बारे में जानकारी बताते है की यह त्यौहार क्यों मनाया जाता है ? इसका क्या महत्व है ? इसकी पूजा-विधि, कथा क्या है ? और इसकी कथा (story) इसके बारे में पूर्ण रूप से जानकारी के लिए आप यहाँ से जानकारी पा सकते है |

शीतला अष्टमी कब है

शीतला अष्टमी का त्यौहार भारत के कोने-2 में मनाया जाता है और लोग इसे अपनी मान्यताओं अनुसार अलग-2 दिन मनाते है कोई इसे माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को, कोई वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो कोई चैत्र के कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी के दिन मनाता है लेकिन असल में इसे होली के बाद पड़ने वाली अष्टमी तिथि को मनाये जाने का प्रावधान होता है | जिसकी वजह से शीतला अष्टमी साल 2020 में date 16 मार्च को है इसी दिन शीतला माता की पूजा की जाएगी |

Sheetala Ashtami Puja Vidhi – शीतला माता की पूजा

  • अष्टमी के दिन माता शीतला की पूजा की जाती है जिसके लिए सप्तमी की रात में घरो में बसौड़ा में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलुवा, रावड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए बना कर तैयार कर दिए जाते है |
  • उसके बाद अगले दिन अष्टमी को सुबह इन सभी सामग्रियों को एक थाली में सजा कर रखे |
  • उसके बाद माता शीतला की पूजा पुरे विधि-विधान के साथ करे |
  • उसके बाद अपने घर के मंदिर में इसका भोग लगाए |
  • इस दिन व्रत रखने का भी प्रावधान होता है कई लोग इस दिन व्रत भी रखते है |

शीतला माता मंत्र

शास्त्रों में शीतला माता की वंदना करने के लिए आपको नीचे बताये गए इस मंत्र का जाप करना है जिससे की शीतला माता प्रसन्न होती है इस मंत्र के जाप का उपयोग आप शीतला माता की पूजा करने के लिए भी कर सकते है :

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

अर्थात :- 
गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तकवालीभगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत:स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी [झाडू] होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।

शीतला माता की कथा

शीतला माता की कथा – शीतला माता की कहानी – बसौड़ा पर्व की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार एक बार की बात है एक गांव में सभी ग्रामवासी माता शीतला की पूजा अर्चना कर रहे थे पुरे भक्तिभाव से पूजा करने के बाद भी उन्होंने गर्म भोजन माता शीतला को प्रसाद के रूप में चढ़ा दिया | जिससे की माँ शीतला का मुहं जल गया और उन्हें क्रोध आ गया क्रोध में आकर उन्होंने पुरे गाँव में आग लगा दी | पुरे गाँव में आग लगने के बाद भी उस गांव में सबके घर जल गए किन्तु एक बुढ़िया का घर नहीं जला | इस चमत्कार से सभी लोग परेशान होते हुए उस बुढ़िया के घर गए और उससे इसका कारन पूछा |

तब उस बुढ़िया ने बताया की आप लोगो ने देवी माँ को गरम भोजन दे दिया जिस कारणवश वह आप लोगो से रुष्ट हो गयी तभी मैंने देवी माँ को रात ठंडा-बासी भोजन खिलाया और वह मुझसे प्रसन्न हुई व मेरा घर जलने से बचा लिया |

Significance of Sheetala Ashtami

शीतला अष्टमी का दिन (sheetla mata day) माँ शीतला को समर्पित होता है शीतला माता चेचक, खसरा इत्यादि की देवी मानी जाती है | वह देवी दुर्गा व देवी पार्वती का अवतार है इस दिन माता शीतला की पूजा पुरे भक्तिभाव से करने से हमें किसी भी तरह का रोग नहीं होता व हमारा पूरा घर सदैव के लिए निरोगी रहता है | इस दिन माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है इसीलिए और हमें भी उस दिन पुरे दिन बासी भोजन को ग्रहण करना होता है यह माता का हमारे लिए आशीर्वाद होता है |

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