Poem (कविता)

हरियाली पर कविता 2018 – Hariyali Par Kavita – Poem on Greenery in Hindi for School Students Class 1-12

Hariyali par kavita in hindi

मानव जाति के लिए हरियाली बेहद आवश्यक है। हरियाली से यहाँ अर्थ है सुन्दर जंगल, खुले खेत, घर के आसपास पेड़ पौधे आदि। मौजूदा परिदृश्यों में हरियाली अधिक महत्वपूर्ण और अतिआवश्यक हो गयी है क्योंकि अनियोजित शहरीकरण अपनी चरम सीमा पर है। हरियाली की वजह से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड कम होती है और जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन हमें मिलती है| हमें ज़्यादा से ज़्यादा पौधे लगाने चाहिए, इसिलए हरियाली की जागरूकता फैलाने के लिए हम पेश कर रहे हैं hariyali par kavita, ग्रीनरी पोएम इन हिंदी, हरियल पर पोएम, ग्रीनरी कविता, हरियाली पर कविताएँ आदि| स्कूल व कॉलेजों में कक्षा Class 1, Class 2, Class 3, Class 4, Class 5, Class 6, Class 7, Class 8, Class 9, Class 10, Class 11, Class 12 के बच्चे ये कविता इस्तेमाल कर सकते हैं|

Hariyali par kavita in hindi

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देखो कैसी हरियाली

हरियाली-हरियाली, देखो कैसी हरियाली
हरियाली-हरियाली, चारों ओर है हरियाली
हरियाली का मौसम कैसा, कैसा इसका रूप है
शाम इसकी लगे हरी सी, मखमली सी धूप है
सूरज भी जब निकले तो, निखरे उसकी लाली,
हरियाली-हरियाली…

उड़ते हुए ये पक्षी जब, फसलों पर जा बैठें
दाना चुगते हैं मस्ती से, अंगड़ाई भी लेते
सारे पक्षी शोर मचाते, गाती कोयल काली,
हरियाली-हरियाली…

ओस की बूंदें पड़ें कभी जब, पत्तों से ये फिसलें तब
खुशबू लेकर भीगे धरती, खिल जाता है सारा नभ,
वृक्ष लगाएं-प्रण लें सब, सजी हो धरती ले हरियाली

हरियाली-हरियाली, देखो कैसी हरियाली,
हरियाली-हरियाली, चारों ओर है हरियाली।।

हरियाली पर कविता

हरियाली

कितनी अच्छी लगती है.
जिधर नज़र आती हरियाली.
आँखो को तृप्ति देती है.
मन को हर्षाती हरियाली.
हवा मे झूमते पेड़ों के पत्ते.
और झुकी फूलों से डाली.
अपने घर में तुम भी कुछ
अपनी पसंद के फूल लगाओ.
उनको उगता-बढ़ता देखो
और इसका आनंद उठाओ.
प्रकृति की इस अद्भुत देन से
नाता जोड़ो तालमेल बिठाओ.

वर्षा और हरियाली पर कविता

जब आता है सावन और चलती है पुरवाई,
ऐसे मेघ बरसते जैसे हरीयाली आयी !
शान्त पेङ पर बैठी कोयल करती है गान ,
नाचता हुआ मोर करता अपनी सुन्दरता पर अभीमान !!

संध्या जब है आती तो प्रकती लगती सुहावनी,
तो फुलो का रंग लगती मन भावनी !
गर्मी मे पेङ से पत्ते ऐसे टुटे,
जैसे शरीर से आत्मा छुटे !!

गर्मी मे सुखा हसता हुआ जाता,
जो बरसात मे रोता हुआ दीन बिताता !
सुबह सुरज जब सीना ताने आता,
तो अंधकार भय से सुदुर भाग जाता !!

सुबह की पहली किरण के साथ जब वह आता,
पक्षी करते गान जब वह मुस्कराता !
और जब जब दोपहर को गर्मी है होती,
तो सारी दुनिया निर्जन बनके घर के अन्दर सोती !!

और जब गोधुली मे सुर्य की होती बिदायी,
तो ऐसा लगता मानो अन्धकार ने ली अंगङायी !
शाम को अंधकार खुंशिया खुब मनाये,
और आसमा दुःखी होकर आंसु खुब बहाये !!

शाम को दुनिया होती निर्जन और विरानी,
इसी समय फुलो से भरती रात की रानी !
शाम को चंद्रमा बढता हुआ आता,
और तारा खुशियों का गीत सुनाता !!

और सुबह सुर्य का सारथी अरुण आता,
और अंधकार घर के किसी कोने मे चुप जाता !
शाम को जो आसमा दुःख से नहाये,
अब वही आसमा खुशियों से नहाये !!

-ऋषभ शुक्ला

हरियाली पर कविता इन हिंदी

हरियाली आई

एक बार पर्वत के ऊपर
दानव एक हीं से आया
भारी सिर था, बाल बड़े थे
बड़ा भयानक वेष बनाया

उसकी सिर्फ एक आदत थी
चलता सदा कुल्हाड़ी लेकर
जो भी मिलता, उससे बातें
करता था चिल्ला-चिल्लाकर

पेड़ों का पूरा दुश्मन था
हरियाली से नफरत करता
यही चाहता, सारी धरती
वह सूखी बालू से भरता

केवल रेगिस्तान चाहता
इसीलिए काटा करता वन
हो उजाड़, हो फूल न कोई
तो खुश हो जाता उसका मन

पक्षी बोलें, कोयल गाए
वह दानव बस चिल्लाता था
उसका तो केवल विनाश से
जैसे धरती पर नाता था

अपनी इस आदत के कारण
काट-काटकर पेड़ गिराए
सब लोगों ने उसको रोका
उसको कोई क्या समझाए

काफी पेड़ कटे जब वन के
सारी नदियाँ बाढ़ें लाईं
उधर हो गई बरसा भी कम
कहीं घटाएँ भी बिलमाईं

चिंता बढ़ी आदमी की तब
सबने उस दानव को पकड़ा
बड़े-बड़े मोटे रस्सों में
उसको बुरी तरह से जकड़ा

चले फेंकने पर्वत पर से
तब दानव ने माँगी माफी
सब लोगों ने पीटा उसको
सजा इस तरह दे दी काफी

जगह-जगह फिर पेड़ लगाए
वन आए, हरियाली आई
रुकी बाढ़, आ गई घटाएँ
सुंदरता पर्वत पर छाई

बदल गया था अब दानव भी
पेड़ नहीं फिर उसने काटे
पर्वत पर रहने वालों के
उसने भी सब सुख-दुख बाँटे

बहुत पुरानी है यह घटना
सुनी सुनाई है बचपन की
आज लोग फिर पेड़ काटकर
दशा बिगाड़ रहे हैं वन की।
– श्रीप्रसाद

Hindi Poem on Greenery

पर्वत नदियाँ हरियाली

पर्वत, नदियां हरियाली से बतियाता है, गांव।
अक्षत, रोली, फूल द्वार पर रखना अपने पांव।

हवा बहन गाती है कुछ-कुछ
सदा सगुन के गीत।
गंध-सुगंध बिखेर दिशाएं
झरती झर-झर प्रीत।
नरियल की कतरन भर लाती है बर्फानी नांव।

कुहरे की निंदिया जब टूटे
फुनगी तार उलीचे।
सूरज का श्रृंगार हृदय में
जैसे अमृत सींचे।
सिहर उठा तन हार गया जीवन मौसम के दांव।

मंद-मंद झरनों की वाणी
रूक-रूक कर कहती है।
कभी परखना करूणा
कितनी अंतस में रहती है।
बरगद के वंशज युग-युग से बाट रहे हैं छांव।
अक्षत, रोली, फूल द्वार पर रखना अपने पां

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