मराठी साहित्य के इतिहास में उल्लेख है कि केशवसुत, बी.एस. मेढेकर, मडाव जूलियन कुछ समय के लिए खानदेश में रहे थे। मातृ हृदय के कवि, साने गुरुजी खांडेशी मिट्टी के पुत्र हैं। तब से खांडेश कविता की कविता में बालकवि, डी। ए। जैसे नामचीन कवि शामिल हैं। तिवारी, पुरुषोत्तम पाटिल, राजा महाजन, गणेश चौधरी, वी.आर. सोनार, एन डी महानोर, भालचंद्र नेमदे, सुशील पगारिया, उत्तम कोलगाँवकर। यह परंपरा समकालीन कवियों जैसे मनोहर जाधव, अशोक कोतवाल, प्रकाश किंगोनकर और कई अन्य लोगों तक पहुँचती है।
बहिणाबाई चौधरी कविता
कीर्ति चौधरी »
केवल एक बात थी
कितनी आवृत्ति
विविध रूप में करके तुमसे कही
फिर भी हर क्षण
कह लेने के बाद
कहीं कुछ रह जाने की पीड़ा बहुत सही
उमग-उमग भावों की
सरिता यों अनचाहे
शब्द-कूल से परे सदा ही बही
सागर मेरे ! फिर भी
इसकी सीमा-परिणति
सदा तुम्हीं ने भुज भर गही, गही ।
Bahinabai chaudhari kavita book
ऊबड़-खाबड़ बेतरतीब पत्थरों में
थोड़ी जगह बनी।
बादलों की छाँह कभी दूर
कभी हुई घनी।
पास ही निर्झर की छल-छल
छलती रही।
जल सामीप्य की आस
पलती रही।
कँकरीली पथरीली एक चप्पा जगह
माटी की उर्वरता दूर से कर संग्रह
पौधा बढ़ता गया
मार्ग गढ़ता गया।
Poems by Bahinabai Chaudhari

अरे खोप्यामधी खोपा
सुगरणीचा चांगला
देखा पिलासाठी तिन
झोका झाडाले टांगला
पिलं निजली खोप्यात
जसा झुलता बंगला
तिचा पिलामध्ये जीव
जीव झाडाले टांगला
खोपा इनला इनला
जसा गिलक्याचा कोसा
पाखराची कारागिरी
जरा देख रे माणसा
तिची उलीशीच चोच
तेच दात, तेच ओठ
तुला देले रे देवान
दोन हात दहा बोट….
Poems in marathi
बिना कपाशीनं उले, त्याले बोंड म्हनूं नहीं
हरी नामाईना बोले, त्याले तोंड म्हनूं नहीं
नही वार्यानं हाललं, त्याले पान म्हनूं नहीं
नहीं ऐके हरिनाम, त्याले कान म्हनूं नहीं
पाटा येहेरीवांचून, त्याले मया म्हनूं नहीं
नहीं देवाचं दर्सन, त्याले डोया म्हनूं नहीं
निजवते भुक्या पोटीं, तिले रात म्हनूं नहीं
आंखडला दानासाठीं, त्याले हात म्हनूं नहीं
ज्याच्या मधीं नही पानी, त्याले हाय म्हनूं नहीं
धांवा ऐकून आडला, त्याले पाय म्हनूं नहीं
येहेरींतून ये रीती, तिले मोट म्हनूं नहीं
केली सोताची भरती, त्याले पोट म्हनूं नहीं
नहीं वळखला कान्हा, तीले गाय म्हनूं नहीं
जीले नहीं फुटे पान्हा, तिले माय म्हनूं नहीं
अरे, वाटच्या दोरीले, कधीं साप म्हनूं नहीं
इके पोटाच्या पोरीले, त्याले बाप म्हनूं नहीं
दुधावर आली बुरी, तिले साय म्हनूं नहीं
जिची माया गेली सरी, तिले माय म्हनूं नहीं
इमानाले इसरला, त्याले नेक म्हनूं नहीं
जल्मदात्याले भोंवला, त्याले लेक म्हनूं नहीं
ज्याच्यामधीं नहीं भाव, त्याले भक्ती म्हनूं नहीं
त्याच्यामधीं नहीं चेव, त्याले शक्ती म्हनूं नहीं
Bahinabai chaudhari famous poem
फूल झर गए।
क्षण-भर की ही तो देरी थी
अभी-अभी तो दृष्टि फेरी थी
इतने में सौरभ के प्राण हर गए ।
फूल झर गए ।
दिन-दो दिन जीने की बात थी,
आख़िर तो खानी ही मात थी;
फिर भी मुरझाए तो व्यथा हर गए
फूल झर गए ।
तुमको औ’ मुझको भी जाना है
सृष्टि का अटल विधान माना है
लौटे कब प्राण गेह बाहर गए ।
फूल झर गए ।
फूलों-सम आओ, हँस हम भी झरें
रंगों के बीच ही जिएँ औ’ मरें
पुष्प अरे गए, किंतु खिलकर गए ।
फूल झर गए ।
Kavita khopa
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नहीं,वहीं कार्निस पर
फूलों को रहने दो।
दर्पण में रंगों की छवि को
उभरने दो।
दर्द :उसे यहीं
मेरे मन में सुलगने दो।
प्यास : और कहाँ
इन्हीं आँखों में जगने दो।
बिखरी-अधूरी अभिव्यक्तियाँ
समेटो,लाओ सबको छिपा दूँ
कोई आ जाए!
छि:,इतना अस्तव्यस्त
सबको दिखा दूँ!
पर्दे की डोर ज़रा खीचों
वह उजली रुपहली किरन
यहाँ आए
कमरे का दुर्वह अंधियारा तो भागे
फिर चाहे इन प्राणों में
जाए समाए
उसे वहीं रहने दो।
कमरे में अपने
तरतीब मुझे प्यारी है।
चीजें हों यथास्थान
यह तो लाचारी है।
