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गीता के उपदेश -Bhagavad Geeta Quotes in hindi – Bhagavad Gita Quotes on Life

भगवद गीता के उपदेश

भगवत गीता का हिन्दुओं के लिए बड़ा महत्त्व है। श्री कृष्णा ने महाभारत के समय यह ज्ञान अर्जुन को सुनाया था इस गीता में कर्म के बारे में, योग ज्ञान के बारे में, भक्ति योग का बहुत सुन्दर वर्णन किया है। यह माना जाता है की जो भी भगवत गीता द्वारा अपने गए योग से मनुष्य अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है। उसका जीवन खुशियों से परिपूर्ण होता है और सत्मार्ग पर चलता है। इनसभी बातो को ध्यान में रखते हुए हम आपके लिए लाए है – Geeta सुविचार, bhagavad gita slokas in sanskrit with English ट्रांसलेशन, श्रीमद्भगवद्गीता Quotes in Hindi and इंग्लिश, slokas in Sanskrit with Hindi, mind quotes , अनमोल वचन, गीता के सूत्र, quotes on death, precious words आदि जिन्हे जानकर आप भी अपना जीवन मंगलमय बना सकते हैं ।

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Geeta Suvichar in Hindi


प्रत्येक कर्म को कर्त्तव्य मात्रा समझकर करना चाहिए . स्वरुप से कर्मो का त्याग करने से तो बंधन होता है पर सम्बन्ध न जोड़कर कर्त्तव्य मात्रा समझ कर कर्म करने से मुक्ति होती है |


जो भी नए कर्म और उनके संस्कार बनते है वह सब केवल मनुष्य जन्म में ही बनते है ,पशु पक्षी आदि योनियों में नहीं , क्यों की वह योनियां कर्मफल भोगने के लिए ही मिलती हैं.


जो होने वाला है वो होकर ही रहता है और जो नहीं होने वाला वह कभी नहीं होता . ऐसा निश्चय जिनकी बुद्धि में होता है उन्हें चिंता कभी नहीं सताती .


संसार के सयोग में जो सुख प्रतीत होता है , उसमे दुःख भी मिला रहता है .परन्तु संसार के वियोग से सुख दुःख से अखंड आनंद प्राप्त होता है


भय का आभाव , अनन्तःकरण की निर्मलता , तत्ज्ञान के लिए ध्यानयोग में स्थिति , दान , गुरुजन की पूजा , पठन पाठन , अपने धर्म के पालन के लिए कष्ट सहना ये दैवीय सम्प्रदा के लक्षण है .


भगवन अर्जुन से कहते है – तेरा कर्म करने पर अधिकार है कर्म के फल पर नहीं इसलिए तू कर्म के फल की चिंता मत कर और तेरा कर्म न करने में भी आसक्ति न हो .


ऐसा कोई नहीं, जिसने भी इस संसार में अच्छा कर्म किया हो और उसका बुरा अंत हुआ है, चाहे इस काल(दुनिया) में हो या आने वाले काल में।


अपने आपको भगवान् के प्रति समर्पित कर दो. यही सबसे बड़ा सहारा है. जो कोई भी इस सहारे को पहचान गया है वह डर, चिंता और दुखो से आजाद रहता है.


समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता.


गुस्से से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्याकुल हो जाती है. जब बुद्धि व्याकुल होती है तब इंसान में तर्क नष्ट हो जाते है. जब तर्क नष्ट होता है तब इंसान का पतन हो जाता है.’


वासना, गुस्सा और लालच नरक जाने के तीन द्वार है.


मन बहुत ही चंचल होता है और इसे नियंत्रित करना कठिन है. परन्तु अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.


जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु भी निश्चित है. इसलिए जो होना ही है उस पर शोक मत करो


एक ज्ञानवान व्यक्ति कभी भी कामुक सुख में आनंद नहीं लेता.


तुम उस चीज के लिए शोक करते हो जो शोक करने के लायक नहीं है. एक बुद्धिमान व्यक्ति न ही जीवित और न ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करता है.


मैं केवल भगवान् का हूँ और भगवान मेरे है ऐसा मानने मात्रा से भगवान् से सम्बन्ध जुड़ जाता है .


गीता कोट्स 1

शरीर जल से पवित्र…

Gita Vachan

हे अर्जुन समता ही योग है सुख दुःख , लाभ हानि , मन अपमान , सर्दी गर्मी सब में सम रह


.हे अर्जुन विषम परिस्थितियों में कायरता को प्राप्त करना, श्रेष्ठ मनुष्यों के आचरण के विपरीत है। ना तो ये स्वर्ग प्राप्ति का साधन है और ना ही इससे कीर्ति प्राप्त होगी।


जैसे इसी जन्म में जीवात्मा बाल, युवा और वृद्ध शरीर को प्राप्त करती है। वैसे ही जीवात्मा मरने के बाद भी नया शरीर प्राप्त करती है। इसलिए वीर पुरुष को मृत्यु से घबराना नहीं चाहिए।


हे अर्जुन, तुम ज्ञानियों की तरह बात करते हो, लेकिन जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए, उनके लिए शोक करते हो। मृत या जीवित, ज्ञानी किसी के लिए शोक नहीं करते।


शस्त्र इस आत्मा को काट नहीं सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती, जल इसको गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।


परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।


जो खुशियां बहुत लम्बे समय  के परिश्रम और सिखने से मिलती है, जो दुख से अंत दिलाता है, जो पहले विष के सामान होता है, परन्तु बाद में अमृत के जैसा होता है – इस तरह की खुशियाँ मन की शांति से जागृत होतीं हैं।


भगवान या परमात्मा की शांति उनके साथ होती है जिसके मन और आत्मा में एकता/सामंजस्य हो, जो इच्छा और क्रोध से मुक्त हो, जो अपने स्वयं/खुद के आत्मा को सही मायने में जानते हों।


आपको कर्म करने का अधिकार है, परन्तु फल पाने का नहीं। आपको इनाम या फल पाने के लिए किसी भी क्रिया में भाग नहीं लेना चाहिए, और ना ही आपको निष्क्रियता के लिए लम्बे समय तक करना चाहिए। इस दुनिया में कार्य करें, अर्जुन, एक ऐसे आदमी जिन्होंने अपने आपको स्वयं सफल बनाया, बिना किसी स्वार्थ के और चाहे सफलता हो या हार हमेशा एक जैसे।


Bhagavat Gita Quotes on Love in Hindi


संसार के सयोग में जो सुख प्रतीत होता है , उसमे दुःख भी मिला रहता है .परन्तु संसार के वियोग से सुख दुःख से अखंड आनंद प्राप्त होता है


तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आये, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।


हे कुंतीनंदन! संयम का प्रयत्न करते हुए ज्ञानी मनुष्य के मन को भी चंचल इन्द्रियां बलपूर्वक हर लेती हैं। जिसकी इन्द्रियां वश में होती हैं, उसकी बुद्धि स्थिर होती है।


बुद्धिमान अपनी चेतना को एकजुट करना चाहिए और फल के लिए इच्छा/लगाव छोड़ देना चाहिए।


मेरे प्रिय अर्जुन, केवल अविभाजित भक्ति सेवा को में समझता हूँ, मैं आपसे पहले खड़ा हूँ, और इस प्रकार सीधे देख सकता हूँ। केवल इस तरह से ही आप मेरे मन के रहस्यों तक पहुँच सकते हो।


हजारों लोगों में से, कोई एक ही पूर्ण रूप से कोशिश/प्रयास कर सकता है, और वो जो पूर्णता पाने में सफल हो जाता है, मुश्किल से ही उनमे से कोई एक सच्चे मन से मुझे जनता हैं।


गीता कोट्स 2

परिवर्तन ही संसार का नियम…

Lord Krishna Quotes

एक जीवित इकाई/रहने वाले मनुष्यों, के संकट का कारण होता है भगवान/परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को भुला देना।


क्योंकि भौतिकवादी श्री कृष्ण के अध्यात्मिक बातों को समझ नहीं सकते हैं, उन्हें यह सलाह दी जाती है कि वे शारीरिक बातों पर अपना ध्यान केन्द्रित करें और देखने की कोशिश करें की कैसे श्री कृष्ण अपने शारीरिक अभ्यावेदन से प्रकट होते हैं।


हमारी गलती अंतिम वास्तविकता के लिए यह ले जा रहा है, जैसे सपने देखने वाला यह सोचता है की उसके सपने के अलावा और कुछ भी सत्य नहीं है।


हम कभी वास्तव में दुनिया की मुठभेड़ में घुसते, हम बस अनुभव करते हैं अपने तंत्रिता तंत्र को।


Bhagavad Gita Slokas in Sanskrit with English Translation


paritraanaaya sadhuunaam vinaashaaya chadushkritaam |
dharma samsthaapanaarthaaya sambhavaami yuge yuge ||

When a person dwells longingly on sense objects, an inclination towards them is generated.
This inclination develops into desire and desire gives rise to anger.


karmanyevaadhikaaraste maa phaleshu kadaachana |
maa karmaphalaheturbhuu maatesangotsvakarmani ||

A person has the right towards action alone and not towards the fruit of action. Let not the fruit of action be the motive for acting. Also, Let there not be any attachment to inaction.


yatkaroshhi yadashnaasi yajjuhoshhi dadaasi yath |
yattapasyasi kaunteya tatkurushhva madarpanamh ||

Arjuna, whatever you do, whatever you eat, whatever you offer (in sacrifice), whatever you give away, whatever you do by way of penance, offer it all to me.


patram pushhpam phalam toyam yo me bhaktyaa prayachchati |
tadaham bhaktyupahritamashnaami prayataatmanah ||I

accept the offering of even a leaf, a flower, fruit or water, when it is offered with loving devotion.


tasmaadasaktah satatam kaaryam karma samachara |
asakto hyaacharankarma paramaapnoti puurushah ||

(Therefore) You must always fulfill all your obligatory duties without attachment. By performing actions without attachment, one attains the Highest.


गीता कोट्स 3

बीते कल और आने वाले कल…

Krishna Thoughts on Life

yato yato nishcharati manashcha.nchalamasthiramh |
tatastato niyamyaitadaatmanyeva vasham nayeth ||

By whatever cause the mind, which is restless and fidgeting, wanders away, the yogi should bring it back from that and concentrate only on the Self.


antakaale cha maameva smaranmuktvaa kalevaramh |
yah prayaati sa madbhaavam yaati naastyatra samshayah ||

He who departs from the body, thinking of Me alone, even at the time of death, will definetely reach Me.


divi suuryasahasrasya bhavedyugapadutthitaa |
yadi bhaah sadrishii saa syaad hbhaasastasya mahaatmanah ||

Even If the radiance of a thousand Suns, bursts forth all at once in the heavens, it would still hardly approach the splendor of the mighty Lord.


kulakshaye praNashyanti kuladharmaah sanaatanaah |
dharme nashhte kulam kritsnamh adharmo abhibhavatyuta ||

In the decline of a clan, its ancient traditions perish. When traditions perish, the entire family is indeed overcome by lawlessness.


श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwad Geeta) Quotes in Hindi and English


अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है.


आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को  अलग कर दो. अनुशाषित रहो. उठो.


नर्क के तीन द्वार हैं: वासना, क्रोध और लालच.


मन  अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.


प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं.


उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा.जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता.


हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है.


अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है.


सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ. मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा. शोक मत करो.


मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ; ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक. लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ.

चेतन व अचेतन ऐसा कुछ भी नहीं है जो मेरे बगैर इस अस्तित्व में रह सकता हो.


गीता कोट्स 4

फल की अभिलाषा छोड़ कर…

Bhagavad Gita Motivational Quotes in English

Only the fortunate warriors, O Arjuna, get such an opportunity for an unsought war that is like an open door to heaven.


Neither do I see the beginning nor the middle nor the end of Your Universal Form


I am the sweet fragrance in the earth. I am the heat in the fire, the life in all living beings, and the austerity in the ascetics.


There was never a time when I, you, or these kings did not exist; nor shall we ever cease to exist in the future.


Both you and I have taken many births. I remember them all, O Arjuna, but you do not remember.


To those ever steadfast devotees, who always remember or worship Me with single-minded contemplation, I personally take responsibility for their welfare.”


Karma does not bind one who has renounced work.


They all attain perfection When they find joy in their work.


There is no one hateful or dear to Me. But, those who worship Me with devotion, they are with Me and I am also with them.


Whosoever desires to worship whatever deity with faith, I make their faith steady in that very deity.


Bhagavat gita slokas in Sanskrit with Hindi Translation


श्लोक 1 : नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥अर्थ : आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, डर मत, अपना कर्म कर आत्मा शरीर एक माध्यम है आत्मा अज़र अमर है इसे कोई नहीं मार सकता अपना कर्म कर, और मरने मारने का डर छोड़.


श्लोक 2 : ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

अर्थ: विषयों (वस्तुओं) के बारे में निरंतर सोचते रहने से मनुष्य को इनसे आसक्ति हो जाती है। इससे कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में रूकावट आने से क्रोध उत्पन्न होता है।इसलिय श्री कृष्ण कहते हैं सांसारिक विषय वस्तु और रिश्तों में आशक्ति (attachment) मत रख|


Bhagwat Geeta ke Vachan

श्लोक 3: आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् |
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ।।

अर्थ: जैसे सम्पूर्ण नदियों का जल चारों ओर से समुद्र में आकर मिलता है| पर समुद्र अपनी मर्यादा में अचल प्रतिष्ठित रहता है। अर्थार्थ समुद्र अपना आकर, व्यवहार और अपनी प्रकर्ति में कोई परिवर्तन नहीं लाता|ऐसे ही मनुष्य को भी सांसारिक भोग पदार्थों  को प्रयोग करते हुए भी आशक्ति नहीं होनी चाहिए| किसी भी रिश्ते वस्तु और सांसारिक भोग पदार्थों से लगाव ही मनुष्य के दुःख का कारण हो, जो मनुष्य सांसारिक वस्तुओं और भोगों का प्रयोग करते हुए इनसे लगाव और आशक्ति नहीं रखता वही परम शुख को प्राप्त करता है|


श्लोक 4: मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।१४।।

अर्थ: हे कुंतीपुत्र! इंद्रिय और विषयों का संयोग तो सर्दी-गर्मी, की तरह सुख-दुःखादि देने वाला है, यह अहसास हमेशा रहने वाला नहीं है, इसलिये हे भारत! उनको तू सहन कर और इनसे विचलित न हो।यहाँ श्री कृष्ण कह रहे हैं, इस संसार में दुःख सुख का ही एक दूसरा पहलू है, दुःख का अनुभव करके ही हमें सुख की अनुभूति होती है, लेकिन श्री कृष्ण कहते हैं, मनुष्य तू सुख और दुखों के अनुभव से विचलित मत हो, उनसे आशक्ति मत रख, ऐसे जीवन जियो जैसे कुछ हुआ ही न हो| दुःख में न दुखी हो और सुख में न सुखी हो, चित्त को स्थिर रखो|


श्लोक 5: श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

अर्थ: इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।


श्लोक 6: वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥

अर्थ: मनुष्य जैसे पुराने कपड़ों को छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है ऐसे ही देही (आत्मा) पुराने शरीरों को छोड़कर दूसरे नये शरीरों में चला जाता है।यहाँ श्री कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं, यह संसार परिवर्तन शील है, जीवन एक यात्रा है यहाँ लोग आते हैं चले जाते हैं, किसी भी वस्तु और व्यक्ति से आशक्ति (attachment) मत रख, बस जो जीवन में अभी हो रहा है उसको अनुभव कर और उस क्षण का आनंद ले|


श्लोक 7: धूमेनाव्रियते वह्निर्यथाऽऽदर्शो मलेन च।
यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम्।।अर्थ: जैसे धुयें से अग्नि और धूलि से दर्पण ढक जाता है तथा जैसे भ्रूण गर्भाशय से ढका रहता है वैसे उस (काम) के द्वारा यह (ज्ञान) आवृत होता है।।सरल शब्दों में कहें, जैसे अग्नि को धुआं छुपा लेता है और दर्पण को धूल, उसी प्रकार ज्ञान को प्राप्त करने के बीच में इच्छा, काम, वासना रूकावट हैं| अर्थार्थ काम वासना को त्याग और जीवन का ज्ञान प्राप्त करने में अग्रसर हो| यही जीवन का सत्य है|


Control Your mind by Shreemad Bhagwat Gita quotes on mind

गीता कोट्स 5

इतिहास कहता हैं…


केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है ।


नरक के तीन द्वार हैं – वासना, क्रोध और लालच ।


जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं ।


इतिहास कहता है कि कल सुख था, विज्ञान कहता है कि कल सुख होगा, लेकिन धर्म कहता है.. कि अगर मन सच्चा और दिल अच्छा हो तो हर रोज सुख होगा ।


जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के सामान कार्य करता है ।


कर्म मुझे बांधता नहीं, क्यूंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं ।


सदैव सन्दहे करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न इस लोक में है न ही कही और।


Bhagavad Gita Quotes in Hindi with English Translation


Mahabharat shri krishna anmol vachan

“श्री कृष्ण भगवान ने कहा: जब जब भी और जहां जहां भी, हे अर्जुन, पुण्य / धर्म  की हानि होती है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ ”

“Sri Krishna said: Whenever and wherever there is a decline in virtue/religious practice, O Arjuna, and a predominant rise of irreligion—at that time I descend Myself, i.e. I manifest Myself as an embodied being.”


“श्री कृष्ण भगवान ने कहा: तुम्हें अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने का अधिकार है, लेकिन तुम कर्मों के फल के हकदार नहीं हो। इसलिये तुम कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तुम्हारी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो ”

“Sri Krishna said: You have a right to perform your prescribed duty, but you are not entitled to the fruits of action. Never consider yourself the cause of the results of your activities, and never be attached to not doing your duty.”


“श्री कृष्ण भगवान ने कहा: एक इंसान जैसे पुराने वस्त्रों को त्यागकर नये वस्त्रों को ग्रहण करता है वैसे ही जीवात्मा पुराने जीर्ण शरीर को त्याग कर नये शरीर को प्राप्त होती है।।”

“Sri Krishna said: As a human being puts on new garments, giving up old ones, the soul similarly accepts new material bodies, giving up the old and useless ones.”


“श्री कृष्ण भगवान ने कहा: आत्मा किसी भी शस्त्र से नहीं काटी जा सकती है, और न ही आत्मा को आग जला सकती है, इसको जल नहीं गला सकता है और वायु आत्मा को नहीं सूखा सकती है।।”

“Sri Krishna said: The soul can never be cut to pieces by any weapon, nor burned by fire, nor moistened by water, nor withered by the wind.”


 Bhaagwat Geeta quotes on death

गीता कोट्स 6

में सभी प्राणियों को सामान…


जैसे इस देह में देही जीवात्मा की कुमार, युवा और वृद्धावस्था होती है


वैसे ही उसको अन्य शरीर की प्राप्ति होती है। धीर पुरुष इसमें मोहित नहीं होता है।


जो आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसको मरा समझता है वे दोनों ही नहीं जानते हैं,
क्योंकि यह आत्मा न मरता है और न मारा जाता है।


आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है।
आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।


जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है।


वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।


जन्मने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है इसलिए जो अटल है अपरिहार्य है उसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये।


श्रीमद भगवत गीता के उपदेश

कर्म करने मात्र में तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी नहीं। तुम कर्मफल के हेतु वाले मत होना और अकर्म में भी तुम्हारी आसक्ति न हो।


By being established in Yoga, O Dhananjaya, undertake actions, casting off attachment
and remaining equipoised in success and failure. Equanimity is called Yoga.


The wise, possessed of knowledge, having abandoned the fruits of their actions,
and being freed from the fetters of birth, go to the place which is beyond all evil


From anger there comes delusion; from delusion, the loss of memory; from the loss of memory,

the destruction of discrimination; and with the destruction of discrimination, he is lost.


That man attains peace who, abandoning all desires, moves about without longing,
without the sense of mine and without egoism.

niyataṃ kuru karma tvaṃ karma jyāyo hyakarmaṇaḥ।


śarīrayātrāpi ca te na prasiddhyedakarmaṇaḥ॥


yajñārthātkarmaṇo’nyatra loko’yaṃ karmabandhanaḥ।
tadarthaṃ karma kaunteya muktasaṅgaḥ samācara॥


प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥


śreyānsvadharmo viguṇaḥ paradharmātsvanuṣṭhitāt।
svadharme nidhanaṃ śreyaḥ paradharmo bhayāvahaḥ॥


indriyāṇi parāṇyāhurindriyebhyaḥ paraṃ manaḥ।
manasastu parā buddhiryo buddheḥ paratastu saḥ॥


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