Poem (कविता)

छत्रपति शिवाजी महाराज कविता – छत्रपती शिवाजी महाराजांच्या – Chhatrapati Shivaji Maharaj Poem in Hindi & Marathi Language

छत्रपति शिवाजी महाराज कविता

छत्रपति शिवजी का पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले भी था १९ फरवरी, १६३० शिवनेरी दुर्ग में हुआ था यह सम्भाजी के उत्तराधिकारी थे इनकी मृत्यु ३ अप्रैल, १६८० रायगढ़ में हुई थी | इनके पिता का नाम शाहजी भोंसले तथा माता का नाम जीजाबाई था वह एक प्रतापी शासक थे | इसीलिए हम आपको छत्रपति जी द्वारा बताई गयी कुछ कविताओं के बारे में बताते है जो की आपके लिए काफी प्रेरणादायी है जिसकी मदद से आप शिवजी के बारे में अन्य जानकारी भी जान सकते है |

Shivaji Maharaj Jayanti Poems – छञपती शिवाजी महाराज जयंती कविता

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इंद्र जिमि जंभ पर, बाड़व सु अंभ पर,
रावन सदंभ पर रघुकुल राज हैं।
पौन वारिवाह पर, संभु रतिनाह पर,
ज्यों सहस्रबाहु पर राम द्विजराज हैं
दावा द्रुमदंड पर, चीता मृगझुंड पर,
भूषण वितुंड पर जैसे मृगराज हैं।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यों मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज हैं
डाढ़ी के रखैयन की डाढ़ी-सी रहति छाती,
बाढ़ी मरजाद जस हद्द हिंदुवाने की।
कढ़ि गई रैयत के मन की कसक सब,
मिटि गई ठसक तमाम तुरकाने की।
भूषन भनत दिल्लीपति दिल धाक धाक,
सुनि सुनि धाक सिवराज मरदाने की।
मोटी भई चंडी बिन चोटी के चबाय सीस,
खोटी भई संपति चकत्ता के घराने की
सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबे के जोग,
ताहि खरो कियो जाय जारन के नियरे।
जानि गैरमिसिल गुसीले गुसा धारि उर,
कीन्हों ना सलाम न बचन बोले सियरे
भूषन भनत महाबीर बलकन लाग्यो,
सारी पातसाही के उड़ाय गए जियरे।
तमक तें लाल मुख सिवा को निरखि भयो,
स्याह मुख नौरँग, सिपाह मुख पियरे।
दारा की न दौर यह, रार नहीं खजुबे की,
बाँधिबो नहीं है कैधौं मीर सहवाल को।
मठ विस्वनाथ को, न बास ग्राम गोकुल को,
देवी को न देहरा, न मंदिर गोपाल को।
गाढ़े गढ़ लीन्हें अरु बैरी कतलाम कीन्हें,
ठौर ठौर हासिल उगाहत हैं साल को।
बूड़ति है दिल्ली सो सँभारै क्यों न दिल्लीपति,
धाक्का आनि लाग्यौ सिवराज महाकाल को
चकित चकत्ता चौंकि चौंकि उठै बार बार,
दिल्ली दहसति चितै चाहि करषति है।
बिलखि बदन बिलखत बिजैपुर पति,
फिरत फिरंगिन की नारी फरकति है
थर थर काँपत कुतुब साहि गोलकुंडा,
हहरि हबस भूप भीर भरकति है।
राजा सिवराज के नगारन की धाक सुनि,
केते बादसाहन की छाती धारकति है
जिहि फन फूतकार उड़त पहार भार,
कूरम कठिन जनु कमल बिदलिगो।
विषजाल ज्वालामुखी लवलीन होत जिन,
झारन चिकारि मद दिग्गज उगलिगो
कीन्हो जिहि पान पयपान सो जहान कुल,
कोलहू उछलि जलसिंधु खलभलिगो।
खग्ग खगराज महाराज सिवराज जू को,
अखिल भुजंग मुग़लद्दल निगलिगो
कामिनि कंत सों, जामिनि चंद सों, दामिनि पावस-मेघ घटा सों,
कीरति दान सों, सूरति ज्ञान सों, प्रीति बड़ी सनमान महा सों।
‘भूषन’ भूषण सों तरुनी; नलिनी नव पूषण-देव-प्रभा सों;
जाहिर चारिहु ओर जहान लसै हिंदुआन खुमान सिवा सों॥
साजि चतुरंग वीर-रंग में तुरंग चढ़ि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं;
‘भूषन’ भनत नाद विहद-नगारन के,
नदी-नद मद गब्बरन के रलत हैं।
ऐल-फैल खैल भैल खलक पै गैल-गैल,
गजन कि ठेल पेल सैल उसलत हैं;
तारा-सौ तरनि धूरि-धारा में लगत, जिमि
थारा पर पारा पारावर यों हलत हैं॥
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहन वारी,
ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करें कंद मूल भो करें,
तीन बेर खाती सो तीनि बेर खाती हैं।
भूषण सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
विजन डुलाती ते वै विजन डुलाती हैं।
भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती है॥

Chhatrapati Shivaji

शिवाजी महाराज पर कविता – Shivaji Maharaj Poet

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हम न समझे थे बात इतनी सी,
लाठी हाथ में थी
पिस्तौल कमर पे थी,
गाड़ियाँ फूंकी थी
आँखे नशीली थी,
धक्का देते उनको तो भी वो जलते
थे,
हम न समझे थे बात इतनी सी,
होंसला बुलंद था,
इज्जत लुट रही थी,
गिराते एक एक को,
क्या जरुरत थी इशारो की,
हम न समझे बात इतनी सी,
हम न समझे बात इतनी सी,
हिम्मत की गद्दारों ने,
अमर ज्योति को हाथ लगाने की,
काट देते हाथ उनके तो
फ़रियाद किसी की भी ना होती,
हम न समझे बात इतनी सी
भूल गये वो रमजान
भूल गये वो इंसानियत,
घात उतार देते एक एक को,
अरे, क्या जरुरत थी किसी से डरने
की,
संगीन लाठी तो आपके हाथ में थी
हम न समझे थे बात इतनी सी,
हमला तो हमपे था,
जनता देख रही थी,
खेलते गोलियों की होली तो,
जरुरत न पड़ती रावण जलाने की,
रमजान के साथ
दिवाली भी होती
हम न समझे थे बात इतनी सी,
सांप को दूध पिलाकर
बात करते है हम भाईचारा की,
ख्वाब अमर जवानों के,
जनता भी डरी डरी सी,
हम न समझे बात इतनी सी
हम न समझे बात इतनी सी

शिवाजी महाराज कविता मराठी – Chhatrapati Shivaji Maharaj Kavita in Marathi

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टेकूनी माथा जया चरणी
मी वंदन ज्यासी करितो…
नित्यारोज तयांचे
नवे रूप मी स्मरितो…
न भूतो न भविष्यती
ऐसेची होते माझे शिवछत्रपती…
जन्मले आई जिजाऊ उदरी
पावन झाली अवघी शिवनेरी…
ऐकत असता पोवाडा सदरी
त्यात वर्णिली राणी पद्मिनी…
रजपूत राणी सुंदर विलक्षणी
कैद झाली मोघल जनानखानी…
चरचर कापले हृदय शिवरायांचे
डोळ्यात दाटले अश्रू संतापाचे…
कडाडले शिवरायsss
आम्ही आहो वंशज रामरायाचे
दिवस भरले आता मोघलांचे…
ज्याची फिरेल नजर वाकडी
आईबहिणीकडे….
त्याच क्षणी शीर मारावे
हुकुम घुमला चोहीकडे…
काबीज करता कल्याण-भिवंडी
अमाप आला हाती खजिना…
वेळ न दवडिता सरदारांनी
सादर केला एक नजराणा…
कल्याण सुभेदाराची
स्नुषा विलक्षण सुंदर…
उभी होती राजांपुढती
झुकुवूनी घाबरी नजर…
धीमी पाऊले टाकीत राजे
तिज जवळी आले…
रूप पाहुनी विलक्षण सुंदर
राजे पुढे वदले….
जर का आमच्या मांसाहेब
इतक्या सुंदर असत्या…..
आम्ही तयांचे पुत्र लाडके
असेच सुंदर निपजलो असतो….
वंदन तुजला शतदा करतो
धन्य तू शिवराया….
स्त्री जातीचा मान राखुनी
तूच शिकविले जगाया….!!

Shivaji Maharaj Short Poem in Marathi

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ऊँचे घोर मन्दंन के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मन्दर के अंदर रहाती हैं |
कंदमूल भोग करे, कन्दमूल भोग करे,
तीन बेर खाती ते वै तीन बैर खाती हैं |
भूषन सिथिल अंग भूषण सिथिल अंग,
बिजन डुलाती ते बे बिजन डुलाती हैं |
भूषण भनत सिवराज वीर तेरे त्रस्त,
नग्न जड़ाती ते वे नगन जड़ाती हैं |
गडन गुंजाय गधधारण सजाय करि,
छाडि केते धरम दुवार दे भिखारी से. |
साहि के सपूत पूत वीर शिवराजसिंह,
केते गढ़धारी किये वनचारी से |
भूषण बखाने केते दीन्हे बन्दीखानेसेख,
सैयद हजारी गहे रैयत बजारी से |
महतो से मुंगल महाजन से महाराज,
डांडी लीन्हे पकरि पठान पटवारी से |

शिवाजी महाराज छत्रपती कविता – शिवाजी महाराज वर कविता

दुग्ग पर दुग्ग जीते सरजा सिवाजी गाजी,
उग्ग नाचे उग्ग पर रुण्ड मुँह फरके |
भूषण भनत बाजे जीती के नगारे भारे,
सारे करनाटी भूप सिहल लौं सरके ||
.मारे सुनि सुभट पनारेवारे उदभट,
तारे लागे फिरन सितारे गढ़धर के |
बीजापुर बीरन के, गोकुंडा धीरन के,
दिल्ली उर मीरन के दाड़िम से दरके ||
अंदर ते निकसी न मन्दिर को देख्यो द्वार,
बिन रथ पथ ते उघारे पाँव जाती हैं |
हवा हु न लागती ते हवा तो बिहाल भई,
लाखन की भीरी में स्म्हारती न छाती हैं. ||

Shivaji Maharaj Kavita on Facebook Images, Lyrics Mp3

भूषण भनत सिवराज तेरी धाक सुनि,
हयादारी चीर फारी मन झुझ्लाती हैं |
ऐसी परी नरम हरम बादशाहन की,
नासपाती खाती तै वनासपाती खाती हैं ||
बेद राखे विदित पुरान परसिध राखे,
राम नाम राख्यो अति रसना सुधर में ||
हिन्दुन की चोटी रोटी राखी हैं सिपहीन की,
काँधे में जनेऊ राख्यो माला राखी गर में |
मिडी राखे मुग़ल मरोड़ी राखे पातसाही,
बैरी पिसी राखे बरदान राख्यो कर में ||
राजन की हद राखी तेगबल सिवराज,
देवराखे देवल स्वधर्म राख्यो घर में ||

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