गांधी जयंती राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती है, जिसे बापू भी कहा जाता है। गांधी जयंती हर साल 2 अक्टूबर को पूरे भारत में एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में मनाई जाती है। यह स्कूलों, कॉलेजों, शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी कार्यालयों, समुदायों, समाज और अन्य स्थानों में कई उद्देश्यपूर्ण गतिविधियों का आयोजन करके मनाया जाता है। 2 अक्टूबर को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया है। इस दिन, पूरे भारत में सरकारी कार्यालय, बैंक, स्कूल, कॉलेज, कंपनियां आदि बंद रहते हैं लेकिन इसे बहुत उत्साह और बहुत सारी तैयारियों के साथ मनाया जाता है।
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महात्मा गांधी के सामाजिक क्रांतिकारी जीवन का शुभारंभ 1893 में तब हुआ, जब उन्हें एक मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा| वहाँ उन्होंने अंग्रेजों को भारतीयों एवं वहाँ के मूल निवासियों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते देखा| वहाँ अंग्रेजों ने कई बार महात्मा गांधी जी को अपमानित किया, उन्होंने अंग्रेजो के अपमान के विरुद्ध मोर्चा संभालते हुए अपने विरोध के लिए सत्याग्रह एवं अहिंसा का रास्ता चुना|
वे जब तक दक्षिण अफ्रीका में रहे, वहाँ बसे हुए भारतीयों एवं अश्वेतों को उनकी मानव सुलभ अधिकार दिलाने का वेतन करते रहे| अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उन्होंने अफ्रीका प्रवास के दौरान लोगों को शिक्षित करने के लिए अध्यापक के रूप में, गरीबों की सेवा के लिए चिकित्सक के रूप में, कानूनी अधिकार के लिए अधिवक्ता के रूप में, एवं जनता को जागरुक करने के लिए पत्रकार के रूप में कार्य किया| अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की “माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ” उनकी विश्व प्रसिद्ध आत्मकथा है|
दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के द्वारा किए गए कार्यों की ख्याति भारत में भी फैल चुकी थी, इसलिए जब वह स्वदेश वापस आए, तो उनका गोपाल कृष्ण गोखले एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने भव्य स्वागत किया| भारत में महात्मा गांधी ने जो पहले महत्वपूर्ण कार्य किया वह था, बिहार के चंपारण जिले के नीलहे किसानों को अंग्रेजो से मुक्ति दिलाना| वर्ष 1917 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह के फलस्वरुप ही चंपारण के किसानों का शोषण समाप्त हो हुआ था|
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महात्मा गांधी जी भले ही आज हमारे बीच नहीं हो, किंतु उनके विचार प्रासंगिक है तथा पूरी दुनिया को रास्ता दिखाते हैं| महात्मा गांधी जी के दर्शन के चार आधारभूत सिद्धांत है सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव| उनका विश्वास था कि सत्य ही परमेश्वर है, उन्होंने सत्य की आराधना को भक्ति माना| मुंडकोपनिषद् से लिए गए राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते के प्रेरणा स्रोत महात्मा गांधीजी हैं| महात्मा गांधी जी की अहिंसा का अर्थ है मन, वाणी तथा कर्म से किसी को आहत ना करना| उनका विचार था कि अहिंसा के बिना सत्य की खोज असंभव है| अहिंसा साधन है और सत्य साध्य है| शांति प्रेमी टॉलस्टाय (रूस) तथा हेनरी डेविड थोरो (अमेरिका) उनके आदर्श थे|
चौरी-चौरा में तकनीक हिंसा हो जाने पर महात्मा गांधी जी ने तमाम आलोचनाओं के बावजूद देशव्यापी सत्याग्रह आंदोलन को स्थगित कर दिया| काका कालेलकर के शब्दों में, गांधीजी सर्वधर्म समभाव के प्रेरणा थे| वसुदेव कुटुंबकम का सिद्धांत और वेदोक्त “सर्व खलिविंद ब्रह्म” उनके जीवन का मूलमंत्र था| उनके हृदय में प्रेम और सभी धर्मों के प्रति आदर भाव था, इसलिए वह “बापू” और “राष्ट्रपिता” कहलाए| अलबर्ट आइंस्टाइन ने सच ही कहा था, संभव है आने वाली पीढ़ियां, शायद ही विश्वास करे की महात्मा गांधी जी की तरह कोई व्यक्ति इस धरती पर हुआ था| आज महात्मा गांधी दिवस 2 अक्टूबर को पूरे विश्व में अहिंसा दिवस के रूप में तथा भारत में महात्मा गांधी जयंती के रुप में मनाया जाता है इस दिन को राष्ट्रीय त्यौहार की मान्यता प्राप्त है|
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Introduction
A very simple essay about a very extraordinary man, here we provide an essay on ‘bapu’, the father of the nation, Mahatma Gandhi. Who with his deed always stay as an immortal hero in the hearts of Indians. This essay is about Mahatma Gandhi for students and children in a very basic language which could be helpful for any school, college, assignment exam or competition.Early life
Popularly known as Rastrapitta or father of the nation, Mahatma Gandhi’s full name was Mohandas Karamchand Gandhi. He was born on 2nd October 1869 in Porbandar, in the present state of Gujarat. Born in a Hindu merchant family, his father served as dewan of the portable state. His middle name Karamchand is his father’s name which was used along with Mohandas in his name.One of the significant figures of freedom fight of India, Rabindranath Tagore also named him THE MARTYR OF THE NATION’ since 1948 as he played a very vital role in the freedom of India from the British rule of 200 years.
At the age of 18, he did his law from London and went to British colonies to practice his law were a life-changing incident happened.
At South Africa in 1914 he was thrown out of local transportation because of his dark skin tone and was humiliated for being a black and sitting with a white man, this incident made him decide to change the world of black and make them stand equal to the white man. In 1890 he returned to India and started his freedom struggle to free the mind body and souls of Indians from all kind of evils.
Gandhi and his work
At the age of 40, Gandhi initiated a Non-cooperation movement in 1920. Where for the first time in history such a huge number of Indians, irrelevant of cast and class gathered together against the British to free India. The idea was to show non-cooperation to the British rule by all Indians in unity.In 1930 the civil disobedience movement was started which was to disobey all the rules made by British Raj, its main focus remained on disobeying the salt law by doing a salt satyagraha
Quit India moment in 1942 played a very important role in India’s freedom as it was the direct demand for freedom by not providing any kind of help in World War 2 which British were fighting in Europe.
Other than this recognizable event, Mahatma Gandhi did go to jail often for various course. Gandhi was a torch holder who showed the path of independence to all. But through a principal of nonviolence and truth.
Gandhian principal
Mahatma Gandhi did play war but a war with no weapon. The sword of non-violence and the shield of truth were his only weapons which helped India gain freedom and united the nation under one flag.His idea was to control body and mind for a better life. He believed that the body should be controlled by the mind and mind by the soul, only this way of life will lead to enlightenment.
He believes in living with morals, and he did achieve to spiritualized politics by his idea of truth justice and non-violence. He believed in accepting the bigger truth of life which is ‘working for others’
And his very famous principle of life was, ‘simplicity’ he lived a very simple and self-made life where he wore simple, live in the very simple atmosphere and ate vegetarian food. He did not live a life full of facilities. He believes that all man must live a simple life to gain the satisfaction of living.
A social reformer
Mahatma Gandhi just not led various movements against British Raj but along with it, he fought against all the evils prevailing in the society. He strived to work towards removing untouchability from the society and provide all the citizens of India an equal stage to live on. He named all the untouchables as ‘harijan’, the people of God where ‘jan’ means people and ‘hari’ stand for God. He practiced the idea of equality by doing all his daily work by his own irrespective of the type of the work.He along ignited the light of ‘swadeshi ’ which means ‘ to our country’ and promoted to use goods made in our country and abolish the use of foreign goods as it will boost Indian market, make Indian citizen independent and make the British suffer a loss in business as their markets will fall. For promoting this idea, he weaved his cloth on a wooden spindle ‘the charkha’ which later became a prevalent symbol of Indian freedom.
He also supported agriculture and promoted people to increase farming of Indian crop and work in the agriculture field.
Role of Non-violence in Indian Freedom Struggle
Champaran and Kheda Agitations
Non-cooperation Movement
Salt Satyagraha or Salt March
Quit India Movement
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1. परिचय:
सत्य आणि हिंसा किंवा चर्चा चर्चा प्रेम त्याच्या सर्व स्वत: च्या संन्यास घेणे महात्मा एक महान नेते दुचाकी किंवा यशस्वी सुधारक नाव, नंतर नाव महात्मा गांधी आम्ही राष्ट्र सर्व बापू आणि आदर प्रेम जे असणे आवश्यक आहे म्हणतात.
2. जन्म आणि शिक्षण:
महात्मा गांधी, 2 ऑक्टोबर रोजी जन्म झाला, 1869 ए. गुजरातमध्ये पोरबंदर नावाच्या ठिकाणी आली. त्यांचे पूर्ण नाव मोहनदास करमचंद गांधी आहे, वडिलांचे नाव करमचंद आणि Putlibai आईचे नाव होते. त्यांच्या आई गांधी आणि वडील संस्कार प्रभाव त्यांना न्यायासाठी लढा प्रेरणा.ते बालपण आणि प्रामाणिक निसर्ग साधा दृश्य होते. त्यांचे शालेय शिक्षण राजकोट केले. ते लहानपणापासून कस्तुरबा म्हणतात मुलगी लग्न केले. लग्न त्यांच्या शिक्षण एक अडथळा होती पण त्याच शाळेत आणि काम त्यांनी मेट्रिक पूर्ण यश आले. मग ते कायद्याने इंग्लंड परीक्षा उत्तीर्ण.
3. उपक्रम:
1891 अँजेलो. ते भारतात सराव होते आणि मुंबई (मुंबई) परतला कारण ते अयशस्वी झाले आहेत असे मी म्हणत नाही आहे. ते त्यांना बाधणार नाही. 1893 पासून ई (बाबतीत) मध्ये एक खटला ते दक्षिण आफ्रिका आणि विजय जिंकली. तेथे त्याने एक संघटना बांधली आणि भारतीय संघ अधिकार निदर्शनास आणून दिले.आणि पासून 1915 ए. भारतात 1919 (नेतृत्व) काँग्रेस पक्ष सूत्रे परत केली आणि 1920 मध्ये केले होते अँजेलो. तो इंग्रजी दडपशाही विरोधात चळवळ आहे आणि सामाजिक सुधारणा कार्य सुरू. असहकार चळवळ (नॉन सहकार्य चळवळ), सविनय कायदेभंग चळवळ (मुख्य नागरी-कायदेभंग चळवळी) आणि भारत चळवळ (भारत छोडो) इत्यादी बाहेर पडा ..
आपण (जलद मरणाला) म्हणाला-मृत्यू कैदी म्हणून नेले आणि अनेक वेळा खर्च अनेक वर्षे. महात्मा गांधी यांच्या शेवटी संपत प्रयत्न; 15 ऑगस्ट 1947 ई. व्हा भारत स्वतंत्र. तो नंतर समाज गोळीबाराला सुरुवात केली पण Nathu राम गोडसे, su धार 30 जानेवारी 1948 त्याचे जीवन घेणे.
4. निष्कर्ष:
कोणत्या सरकारी कार्यालये गांधीजींच्या कल्पना तारीख आठवण करून देखील इतर ठिकाणी त्याच्या चित्र ठेवले आहे. आमच्या मनात (सत्य), साधेपणा (साधेपणा) मध्ये सत्य लक्षात करण्यासाठी, आत्मविश्वास (आत्मविश्वास) आणि सभ्यपणा (चांगले आचार) एक अर्थ होतो.
2 अक्टूबर गांधी जयंती पर निबंध
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राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी हमारे देश के ही नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के नेता थे । वह एक युगपुरुष थे जिन्होंने समस्त मानव जाति को ‘ सत्य और अहिंसा ‘ का मार्ग अपनाने का संदेश दिया ।
महात्मा गाँधी का वास्तविक नाम श्री मोहनदास करमचंद गाँधी था । आपका जन्म 2 अक्टूबर सन् 1869 ई॰ में काठियावाड़ जिले के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ । पिता करमचंद पोरबंदर के दीवान थे तथा माता पुतलीबाई एक साध्वी महिला थीं जो नित्य पूजा-पाठ व व्रत-उपवास आदि में पूर्ण आस्था रखती थीं । गाँधी जी के जीवन पर माता के उत्तम संस्कारों की अमिट छाप पड़ी ।
गाँधी जी की प्रारंभिक शिक्षा राजकोट में हुई । आप विद्यार्थी जीवन में अधिक मेधावी छात्र न थे । एक साधारण छात्र होते हुए भी सत्य और अहिंसा के असाधारण गुण आपको बाल्याकाल से ही प्राप्त हुए । 1887 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत आप कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए ।
इंग्लैंड में उन्होंने अपनी माता को दिए गए वचनों का पूरी तरह निर्वाह किया । वहाँ से कानून की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् वापस लौट आए तथा मुंबई व राजकोट में अपनी वकालत प्रारंभ की । गाँधी जी का विवाह 13 वर्ष की अल्पायु में एक अत्यंत साध्वी युवती कस्तुरबा के साथ इंग्लैंड यात्रा के पूर्व ही हो गया था ।
1893 ई॰ में अपने एक मुकदमे के कारण गाँधी जी को दक्षिण अफ्रीका की यात्रा करनी पड़ी । उस समय दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद बहुत अधिक था । अप्रवासी भारतीयों की तत्कालीन समय में अत्यंत दयनीय दशा थी । स्वयं गाँधी जी को एक बार रेलयात्रा करते हुए फर्स्ट क्लास का टिकट लेने के बावजूद डिब्बे से अपमानित करके इसलिए उतार दिया गया क्योंकि वे एक भारतीय थे । उन्होंने तभी मन में इस भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने का संकल्प किया था ।
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर रंगभेद के चलते होने वाले अत्याचारों को देखकर उनका मन उद्वेलित हो उठा । दक्षिण अफ्रीका में रहकर उन्होंने वहाँ के समस्त भारतीयों को संगठित किया । उनके नेतृत्व में असहयोग आंदोलन हुए । अपने कठिन प्रयासों से उन्हें अपने कार्यों में आशातीत सफलता प्राप्त हुई ।
अफ्रीका से लौटने के उपरांत देश में अंग्रेज शासकों के अत्याचार को वे सहन न कर सके । दक्षिण अफ्रीका की सफलता ने गाँधी जी को पहले ही अत्यंत लोकप्रिय बना दिया था । उनका व्यक्तित्व इतना अधिक प्रभावशाली था कि करोड़ों भारतीयों ने सहर्ष उनको अपना नेता स्वीकार किया । वे जिस ओर चले करोड़ों लोग उनके पीछे चल पड़े।
प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन भी पूरी तरह शामिल था । भारतीयों का इस युद्ध में पूर्ण सहयोग प्राप्त करने हेतु उन्होंने गाँधी जी से आग्रह किया तथा बदले में युद्ध के उपरांत अनेक अधिकार सौंपने की बात कही । युद्ध के समाप्त होने पर गाँधी जी व देशवासियों को पूर्ण निराशा हाथ लगी ।
‘रौलट एक्ट’ व ‘जलियाँवाला बाग’ हत्याकांड ने यह सिद्ध कर दिया कि अंग्रेज कभी भी स्वेच्छा से भारतीयों को अधिकार नहीं सौंपेंगे । गाँधी जी के निर्देश से देश भर में असहयोग आंदोलन छेड़ा गया । अपनी प्रसिद्ध ‘डांडी यात्रा’ के क्रम में समुद्र तट पर जाकर उन्होंने ‘नमक कानून’ तोड़ा । अंग्रेजों व अंग्रेजी वस्तुओं का पूर्णतया बहिष्कार किया गया ।
परिणामत: असंख्य लोग जेल में ठूँस दिए गए । अनगिनत देशभक्त गोलियों के शिकार हुए । मुश्किलों व अनेक कठिनाइयों के बावजूद गाँधी जी अटल रहे । 1942 ई॰ में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन छेड़ा गया । अंतत: उनके भगीरथ प्रयास से भारत सैकड़ों वर्षों की गुलामी के पश्चात् 15 अगस्त 1947 ई॰ को आजाद हुआ ।
आजादी से पूर्व गाँधी जी को गहरा आघात सहना पड़ा जब मुस्लिमों की पृथक देश की माँग पर उन्हें अपनी स्वीकृति देनी पड़ी । भारत का हिंदुस्तान व पाकिस्तान दो खंडों में विभाजन हुआ । पूरे देश में सांप्रदायिक दंगों का तांडव आरंभ हो गया । पाकिस्तान से हिंदुओं और सिखों का भारी मात्रा में पलायन होने लगा । दूसरी ओर भारत के कुछ मुस्लिम पाकिस्तान में अपनी किस्मत आजमाने के लिए विवश हुए।
इन घटनाओं से गाँधी जी अत्यंत आहत हुए । दिल्ली में 30 जनवरी 1948 ई॰ को प्रात:काल जब वे प्रार्थना सभा की ओर जा रहे थे तब ‘गोडसे’ नामक व्यक्ति ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी । संपूर्ण राष्ट्र शोकाकुल हो उठा । उनकी हत्या पर पूरी मानवता कराह उठी । वह महान पुरुष जिसने देश को अपने भगीरथ प्रयासों से सैकड़ों वर्ष की गुलामी से मुक्ति दिलाई उसकी देश के ही एक धर्माध नागरिक ने हत्या कर दी ।
गाँधी जी सच्चे अर्थों में युगपुरुष थे । सत्य और अहिंसा का जो पाठ उन्होंने सिखाया वह पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय है । उनके महान कृत्यों के कारण आज भी पूरा विश्व उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता है । गाँधी जी एक निष्काम कर्मयोगी थे । उन्होंने सदैव लोगों को सद्मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित किया । उनका मत था- ‘ बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो तथा बुरा मत देखो ‘ । गाँधी जी समाज में फैले छुआछूत के कट्टर विरोधी थे । उन्होंने पिछड़ी जाति के लोगों को जो अछूत समझे जाते थे उन्हें ‘हरिजन’ कह कर संबोधित किया ।
गाँधी जी का संपूर्ण जीव, उनका आत्मसंयम, अनुशासन व महान चरित्र अनुकरणीय है । राष्ट्र उन्हें ‘ राष्ट्रपिता ‘ के रूप में श्रद्धा सुमन अर्पित करता है । उनके जन्म दिवस 2 अक्टूबर को हम हर वर्ष राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाते हैं
