Guru Nanak Jayanti 2019: गुरु नानक साहिब का जन्मदिन कार्तिक महीने की पूर्णिमा के दिन कार्तिक पूर्णिमा पर पड़ता है, जो आमतौर पर पश्चिमी कैलेंडर में नवंबर में पड़ता है। यह अवकाश गुरु नानक साहिब को याद करता है जो सिख धर्म के संस्थापक और पहले सिख गुरु थे। भारत में, इस दिन को गुरु नानक गुरपुरब, गुरु नानक के प्रकाश उत्सव या गुरु नानक देव हाय जयंती भी कहा जा सकता है। यह कई राज्यों में राजपत्रित अवकाश है और भारतीय शेयर, बांड और मुद्रा बाजार बंद हैं।
Guru Nanak Birthday Essay in Hindi
जीवनवृत्त– भारत भूमि ऋषि-मुनियों तथा अवतारों की भूमि मानी जाती है । गुरु नानक देव जी भी ऋषि-मुनियों की परम्परा में आते हैं । उनका जन्म 15 अप्रैल, सन् 1469 को तलवंडी नामक गांव में हुआ । आजकल यह स्थान पाकिस्तान में है । इनके पिता का नाम मेहता कालूराम जी और माता का नाम तृप्ता देवी जी था । पिता गांव के पटवारी थे । इनकी बहन का नाम नानकी था ।
ईश्वर पर श्रद्धा– गुरु नानक देव जी की बचपन से ईश्वर में श्रद्धा थी । उनका मन भक्ति में ही लगता था । पिता ने उन्हें शिक्षकों के पास भेजा, पर कोई भी शिक्षक उन्हें न पढ़ा सका, क्योंकि सांसारिक पढ़ाई में गुरु नानक देव जी को रुचि नहीं थी ।
भैंसें चराने जाना– पिता ने गुरु नानक देव जी को भैंसें चराने के लिए भेजा । वहां पर भी वे ईश्वर के भजन में डूब जाते । प्रभु- भक्ति में मगन रहने के कारण कई बार उन्हें अपने पिता की ताड़ना भी सहन करनी पड़ती थी ।
साधु स्वभाव– गुरु नानक देव जी के साधु स्वभाव को देखकर उनके पिता रुष्ट रहने लगे । बड़ी बहन नानकी गुरु नानक दैव जी से बड़ा प्यार करती थी । उसे जब पिता के क्रोध का पता चला, तब वह गुरु नानक देव जी को अपने साथ सुलतानपुर ले गई । वहां गुरु नानक देव जी ने दौलत खां लोधी के मोदीखाने में नौकरी कर ली । सामान बेचने का काम उन्हें मिला । गुरु नानक देव जी बहुत-से लोगों को बिना मूल्य सौदा दे दिया करते थे । एक दिन एक आदमी को आटा तोल कर देने लगे । बारह तक तो क्रम ठीक चलता रहा, पर तेरह पर आकर ” तेरा-तेरा ” कहते हुए उसे सारा आटा दे दिया । लोधी तक शिकायत पहुंची पर हिसाब-किताब लगाने पर सब ठीक निकला । इस प्रकार गुरु नानक देव जी का अलौकिक व्यक्तित्व लोगों के सामने प्रकट होने लगा ।
विवाह और पुत्रोत्पत्ति– उन्नीस वर्ष की अवस्था में उनका विवाह मूलचन्द्र जी की सुपुत्री सुलखनी देवी से हुआ । इनके दो पुत्र श्रीचन्द जी और लख्सी दास जी थे । आगे चलकर बाबा श्री चन्द जी उदासी सम्प्रदाय के प्रवर्त्तक हुए ।
सबसे बड़े समाज-सुधारक– सारा जीवन गुरु नानक देव जी जातीय भेद भाव, वैरभाव और राग-द्वेष को मिटाने का भरसक प्रयत्न करते रहे । वे सबको परमात्मा की सन्तान मानते थे । दूसरों का दोष न देखकर वे अपना दोष देखने के लिए कहते थे । दूसरों की सेवा करना ही उनका आदर्श मन्त्र था । वे अपने समय के बड़े समाज-सुधारक थे । छुआछूत, अन्धविश्वास तथा पाखण्डों का उन्होंने बड़े जोर से खण्डन किया । परोपकार, मानव प्रेम और सहयोग यही उनके उपदेशों के महत्वपूर्ण अंग थे । एकेश्वरवाद के वे पूरे समर्थक थे । अनेक देशों में जाकर उन्होंने लोगों को मानव-प्रेम का पाठ पढ़ाया । वे शान्ति के प्रचारक थे. गुरु नानक देव जी अपने सुख और शान्ति के उपदेशों को लोगों तक पहुंचाने के लिए देश-विदेश गए । सबसे पहले ऐमनाबाद जाकर भाई लालो बढ़ई के घर ठहरे और वहाँ से हरिद्वार, दिल्ली, गया, काशी और जगन्नाथपुरी तक गए ।
उपदेश– उनके उपदेशों में ऐसा चमत्कार था कि सभी वर्गों के लोग उनके शिष्य बन जाते थे । उनके शिष्यों की उन पर बड़ी श्रद्धा थी । उनके उपदेश की ” भाषा ” सीधी-सादी और शैली सरल थी । यही कारण था कि अनेक उपदेशों को लोग सिर झुकाकर स्वीकार करते थे । गुरु नानक देव जी ने हिन्दू मुसलमान, बौद्ध, जैन, ईसाई आदि सभी धर्मों के तीर्थ स्थानों का भ्रमण किया था । वहां उन्होंने एक ” सत करतार ” को भजने का उपदेश दिया और विभिन्न धर्मावलम्बियों को प्रभावित किया । सभी धर्मों के लोग उनके शिष्य बन गये ।
देश-विदेश भ्रमण– दक्षिण में सेतुबन्ध, रामेश्वरम् तथा सिंह द्वीप उगदि स्थानों में जा कर अपना सन्देश दिया । वहा, से लौटकर गढ़वाल, हेमकुंड, टिहरी, सिरमौर, गोरखपुर, सिक्किम, भूटान और तिब्बत आदि की यात्रा की । उसके बाद बलोचिस्तान होते हुए मक्के तक पहुंचे । इस यात्रा के मध्य उन्होंने ईरान, कन्धार, काबुल और बगदाद आदि में ” सतनाम ” का उपदेश दिया । उन्होंने बताया कि परमपिता परमात्मा की इच्छा से विश्व के समस्त कर्म चलते हैं । इसलिए छुआछूत .उरौर लड़ाई-झगड़ा छोड्कर प्रभु का भजन करना चाहिए । दया, धर्म, नम्रता और सत्य से विभूषित व्यक्ति को ही जीवन में सच्चा सुख मिलता है ।
Essay on gurunanak Jayanti in punjabi
ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਜਯੰਤੀ, ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪਵਿੱਤਰ ਤਿਉਹਾਰ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਦਿਹਾੜਾ ਮਨਾਉਂਦਾ ਹੈ; ਪਹਿਲੇ ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ
ਨਾਨਕਪੰਤੀ ਹਿੰਦੂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਦੇ ਹੋਰ ਅਨੁਯਾਈਆਂ ਵੀ ਇਸ ਪਵਿੱਤਰ ਤਿਉਹਾਰ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ ਕਰਦੇ ਹਨ.
ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਬਾਨੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਜਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ 15 ਅਪ੍ਰੈਲ 1469 ਨੂੰ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੇ ਮੌਜੂਦਾ ਸ਼ੇਖੂਪੁਰਾ ਜ਼ਿਲੇ ਵਿਚ ਰਾਏ-ਭੋਈ-ਦੀ ਤਲਵੰਡੀ ਵਿਚ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਸੀ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਹੁਣ ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਜਨਮ ਦਿਨ ਨੂੰ ਕਾਰਤਿਕ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਵਿੱਚ ਪੂਰਾ ਚੰਦਰਮਾ ਦੇ ਦਿਨ ਕਾਟਨ ਪੂਰਨੀਮਾ ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ.
ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸਾਰੇ 10 ਗੁਰੂਆਂ ਦੇ ਜਨਮ ਦਾ ਜਸ਼ਨ ਮਨਾਇਆ; ਜਸ਼ਨ ਸਮਾਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਪਰ ਹਰ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਜੋ ਸ਼ਬਦ ਗਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਉਹ ਬਿਲਕੁਲ ਵੱਖਰੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਜਯੰਤੀ ਦੀ ਸਵੇਰ ਗੁਰੂਦੁਆਰੇ ਵਿਚ ਪ੍ਰਭਾਤ ਫੇਰਿਸ ਦੇ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸਤਤ ਦੇ ਗਾਇਨ ਕਰਦੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿਚ ਸਲਾਰ.
ਸਿੱਖ ਝੰਡੇ ਨੂੰ ਨਿਸ਼ਾਨ ਸਾਹਿਬ ਅਤੇ ਪਾਲਕੀ ਜਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਪਾਲਕੀ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗਾਇਕਾਂ ਦੀਆਂ ਟੀਮਾਂ ਦੁਆਰਾ ਗਾਏ ਗਏ ਭਜਨਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਸ਼ਹਿਰ ਜਾਂ ਕਸਬੇ ਦੀਆਂ ਸੜਕਾਂ ‘ਤੇ ਰਵਾਇਤੀ ਹਥਿਆਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਮਖੌਲੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਅਤੇ ਮਾਰਸ਼ਲ ਆਰਟਸ ਵੀ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ.
ਇਸ ਸ਼ੁਭ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ, ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ਵਾਹਕ ਨੇ ਆਪਣਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੁਨੇਹਾ ਫੈਲਾਇਆ. ਆਸਾ-ਦੀ-ਵਾਰ ਜਾਂ ਸਵੇਰ ਦੀ ਭਜਨ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵਲੇ ਵਿਚ ਸਵੇਰੇ 4 ਜਾਂ 5 ਅਪਰੈਲ ਸਵੇਰੇ ਗਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ. ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਵਡਿਆਈ ਵਿਚ ਕਥਾ ਅਤੇ ਕੀਰਤਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੁੰਦੇ ਹਨ. ਇੱਕ ਲੰਗਰ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਹਰ ਇੱਕ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਭੋਜਨ ਲੈਣ ਲਈ ਬੁਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਲੰਗਰ ਨੂੰ ਸਵੈਸੇਵਕਾਂ ਦੁਆਰਾ ਆਯੋਜਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ.
ਇਸ ਲੰਗਰ ਦੀ ਮੇਜ਼ਬਾਨੀ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਅਸਲ ਵਿਚਾਰ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਹਰ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਕਲਾ, ਸਿਧਾਂਤ, ਲਿੰਗ, ਧਰਮ, ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਸਮਾਜਕ, ਫਿਰਕੂ ਜਾਂ ਰਾਜਨੀਤਕ ਰੋਕਾਂ ਦੇ ਇਕੱਠੇ ਖਾਂਦੇ ਹਨ. ਅਸਲ ਵਿਚ ਇਹ ਲੰਗਰ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂ ਪ੍ਰਤੀ ਭਗਤੀ ਵਲੰਤੀ ਦੀ ਭਗਤੀ ਅਤੇ ਸੇਵਾ ਦਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ ਕਰਦਾ ਹੈ.
ਕੁਝ ਗੁਰੂਦਵਾਰਾ ਵਿਚ ਰਹਰ ਜਾਂ ਸ਼ਾਮ ਦੀ ਅਰਦਾਸ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਜਿਸਦੇ ਬਾਅਦ ਦੇਰ ਰਾਤ ਨੂੰ ਕੀਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ. 1.20 ਵਜੇ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਅੱਧੀ ਰਾਤ ਨੂੰ ਗੁਰਬਾਣੀ ਗਾਉਂਦੀ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ ਦਿਹਾੜਾ ਹੈ. ਲਗਭਗ 2 ਵਜੇ ਜਸ਼ਨ ਦਾ ਅੰਤ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਜਯੰਤੀ ਜਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਗੁਰੂਪੁਬ ਨੂੰ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਵਿਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੁਆਰਾ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਾਲ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪਵਿੱਤਰ ਦਿਨ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ.
ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ, ਹਰਿਆਣੇ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਜਯੰਤੀ ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ ਤੇ ਮਨਾਇਆ ਅਤੇ ਕਈ ਸਿੰਧੀ ਇਸ ਤਿਉਹਾਰ ਨੂੰ ਵੀ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ. ਸਿੱਖ ਬੱਚੇ ਪੂਰੇ ਸਾਲ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਭਾਰਤੀ ਕਲੰਡਰ ਉੱਤੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਜੈਯੰਤੀ ਨੂੰ ਛੁੱਟੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਜੋਂ ਦਰਸਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ.
ਸਾਰੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਸ਼ੁਭ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਇਕ ਲਾੜੀ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਜਾਈ ਅਤੇ ਸਜਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ, ਜੋ ਕਿ ਸਿੱਖ ਸਭਿਆਚਾਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਮਨਾਇਆ ਗਿਆ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ.
गुरुनानक जयंती एस्से
गुरु नानक देव सिक्खों के प्रथम गुरु व ‘सिक्ख धर्म’ के संस्थापक थे । वे एक महापुरुष व महान धर्म प्रर्वतक थे जिन्होंने विश्व से सांसारिक अज्ञानता को दूर कर आध्यात्मिक शक्ति को आत्मसात् करने हेतु प्रेरित किया ।
सांसारिक अज्ञानता के प्रति गुरु नानक देव का कथन है:
” रैन गवाई सोई कै, दिवसु गवाया खाय । हीरे जैसा जन्मु है, कौड़ी बदले जाय । ”
उनकी दृष्टि में ईश्वर सर्वव्यापी है । वे मूर्तिपूजा के कट्टर विरोधी थे । गुरु नानक देव का जन्म सन् 1469 ई॰ को पंजाब के लाहौर जिले के तलवंडी नामक ग्राम में हुआ था जो वर्तमान में पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में ‘ननकाना साहब’ के नाम से जाना जाता है ।
उनके पिता श्री कालूचंद वेदी तलवंडी में पटवारी का कार्य करते थे तथा माता श्रीमती तृप्ता देवी एक धर्मपरायण व साध्वी महिला थीं । साध्वी माता की धर्मपरायणता के संस्कार बालक नानक पर भी पड़े । आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे । आपके स्वभाव में चिंतनशीलता थी तथा आप एकांतप्रिय थे ।
आपका मन स्कूली शिक्षा की अपेक्षा साधु-संतों व विद्वानों की संगति में अधिक रमता था । बालक नानक ने संस्कृत, अरबी व फारसी भाषा का ज्ञान घर पर रहकर ही अर्जित किया । इनके पिता ने जब पुत्र में सांसारिक विरक्ति का भाव देखा तो उन्हें पुन: भौतिकता की ओर आसक्त करने के उद्देश्य से पशुपालन का कार्य सौंपा । परंतु इसके पश्चात् भी नानक देव का अधिकांश समय ईश्वर भक्ति और साधना में व्यतीत होता था ।
बचपन में ही नानक के जीवन में अनेक अद्भुत घटनाएँ घटित हुईं जिनसे लोगों ने समझ लिया कि नानक एक असाधरण बालक है । पुत्र को गृहस्थ जीवन में लगाने के उद्देश्य से पिता ने जब उन्हें व्यापार हेतु कुछ रुपए दिए तब उन्होंने समस्त रुपए साधु-संतों व महात्माओं की सेवा-सत्कार में खर्च कर दिए । उनकी दृष्टि में साधु-संतों की सेवा से बढ्कर लाभकारी सौदा और कुछ नहीं हो सकता था ।
इसी प्रकार एक दूसरे घटनाक्रम में नानक ग्रीष्म ऋतु की चिलचिलाती धूप में किसी ग्राम में गए । वहाँ वे बेहाल विश्राम करने के लिए बैठ गए । उन्हें कब नींद आ गई पता ही नहीं चला क्योंकि एक बड़े सर्प ने अपना फन फैलाकर उन्हें छाया प्रदान कर दी थी । गाँववाले यह दृश्य देखकर स्तब्ध रह गए । गाँव के मुखिया ने उन्हें देवस्वरूप समझकर प्रणाम किया । तभी से नानक के नाम के आगे ‘ देव ‘ शब्द जुड़ गया । वे कालांतर में ‘ गुरु नानक देव ‘ के नाम से विख्यात हुए ।
एक अन्य रोचक घटना में उनके पिता ने उन्हें गृहस्थ आश्रम की ओर ध्यानाकर्षित करने के लिए तत्कालीन नवाब लोदी खाँ के यहाँ नौकरी दिलवा दी । वहाँ उन्हें भंडार निरीक्षक की नौकरी प्राप्त हुई । परंतु नानक वहाँ भी साधु-संतों पर बेहिसाब खर्च करते रहे । इसकी शिकायत नवाब तक पहुँची तब उसने नानक के खिलाफ जाँच के आदेश दे दिए । परंतु आश्चर्य की बात यह थी कि उस जाँच में कोई कमी नहीं पाई गई ।
एक बार नानक देव भ्रमण के दौरान मक्का पहुँचे । वह थकान के कारण काबा की ओर पैर करके सो गए । जब वहाँ के मुसलमानों ने यह दृश्य देखा तो वे अत्यधिक क्रोधित हुए । अद्भुत घटना उस समय घटी जब लोग उनका पैर जिस दिशा में करते उन्हें उसी दिशा में काबा के दर्शन होते । यह देखकर सभी ने उनसे श्रद्धापूर्वक क्षमा माँगी ।
गुरु नानक देव एक महान आत्मा थे जो सोदा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत का पालन करते थे । उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन में उच्च सिद्धांत का अनुपालन करने हेतु प्रेरित किया । वे मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे । उन्होंने मूर्तिपूजा का खंडन करते हुए एक ओंकार मत सत् गुरु प्रसाद के जप को अपने जीवन में उतारा ।
आपने ‘गुरुग्रंथ साहब’ नामक ग्रंथ की रचना की । यह ग्रंथ पंजाबी भाषा और गुरुमुखी लिपि में है । इसमें कबीर, रैदास व मलूकदास जैसे भक्त कवियों की वाणियाँ सम्मिलित हैं । 70 वर्षीय गुरु नानक सन् 1539 ई॰ में अमरत्व को प्राप्त कर गए। परन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात् भी उनके उपदेश और उनकी शिक्षा अमरवाणी बनकर हमारे बीच उपलब्ध हैं जो आज भी हमें जीवन में उच्च आदर्शों हेतु प्रेरित करती रहती हैं ।
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गुरु नानक जयंती’ को भी गुरुपुर के नाम से जाना जाता है। यह सिखों का सबसे बड़ा त्योहार है। गुरु नानक जयंती सिख धर्म के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है। गुरु नानक देव का जन्मदिन गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक जयंती कार्तिक के महीने में पूर्णिमा के दिन कार्तिक पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। गुरु नानक सिख धर्म के संस्थापक थे। वह पहले सिख गुरु थे गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को पाकिस्तान के वर्तमान शेखपुरा जिले में राय-भोई-दी तलवंडी में हुआ था, जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है।
गुरु नानक जयंती पर, सिखें नए कपड़े पहनते हैं और गुरुद्वारों में जाते हैं। गुरू नानक जयंती की सुबह गुरुद्वार में प्रभात फेरी के साथ शुरू होती है और भजन गायन वाले इलाकों में जुलूस चलाता है। सिख उनकी प्रार्थना करते हैं और गुरु ग्रंथ साहिब को श्रद्धांजलि देते हैं। इस दिन, सिखों की पवित्र पुस्तक, गुरु ग्रंथ साहिब को गुरुद्वारों में लगातार पढ़ी और पढ़ी जाती है। दीपक जलाया जाता है, जुलूस ले जाते हैं, मुफ्त लंगर (भोजन) व्यवस्थित होते हैं और देशभर में एक मीठा प्रसाद वितरित होता है नानप्पन हिंदू और सिखों के अलावा गुरू नानक के दर्शन के अन्य अनुयायी भी इस पवित्र उत्सव का पालन करते हैं।
गुरुपुरा दिन शुरुआती दिनों में आसा-दे-वार (सुबह के भजन) और सिख शास्त्रों से भजन गायन के साथ शुरू होता है। यह काठ के साथ या गुरु नानक की प्रशंसा में कविताओं और व्याख्यान के साथ ग्रंथों के प्रदर्शन के साथ पीछा किया जाता है। लंघार या विशेष समुदाय दोपहर का भोजन गुरुद्वारा में तैयार किया जाता है। सभी समुदायों के पुरुषों और महिलाओं को ‘कराह प्रसाद’ के साथ लंगर की पेशकश की जाती है।
वास्तविक दिनांक के पहले दिन सिख झंडे की अध्यक्षता में एक जुलूस होता है और उसके बाद एक पीस बैंड के धुनों में एक कोरस गायन भजन होता है। पुरुषों के दल गत्का के प्रदर्शनों में भाग लेते हैं, सिखों के लिए विशेष रूप से मार्शल आर्ट का एक रूप। लोग गुरु के अच्छे शब्द की घोषणा करते हुए सड़कों पर ले जाते हैं। शाम में, गुरुद्वारों को प्रकाशित किया जाता है और लोग उन्हें बड़ी संख्या में आते हैं। लोग अपने घरों को मोमबत्तियां और मिट्टी के दीपक के साथ रोशन करते हैं।
