जब हिंदी व उर्दू के शायरों का नाम लिया जाता है तब इमरान प्रतापगढ़ी का नाम जरूर आता है इमरान प्रतापगढ़ी का पूरा नाम मोहम्मद इमरान खान है इन्हे शेर ए हिन्द के नाम से भी जाना जाता है | इनका जन्म 6 अगस्त 1987 को प्रतापगढ़ जिले में हुआ था इन्होने एक महान कवी के रूप में अपनी प्रसिद्धि बनायीं है | इसीलिए हम आपको इनके द्वारा लिखे गए कुछ मुशायरे शेरो, शायरियां, कविताओं के बारे में आपको बताते है जो की आपके लिए काफी बेहतरीन जिन्हे पढ़ कर आप इनके बारे में काफी कुछ जान सकते है |
इमरान प्रतापगढ़ी की शायरी
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वो काली कमाई छुपाता है, हाथों की सफाई छुपाता है,,
दावा है मसीहाई का मगर, खुद अपनी लुगाई छुपाता है !!
मीडिया ने जो गढ़ रक्खा है,उस झूटी शान का क्या होगा !!
जो बीबी का ना हो पाया, वो हिन्दोस्तान का क्या होगा ??
हमने उसके जिस्म को फूलों की वादी कह दिया।
इस जरा सी बात पर हमको फंसादी कह दिया,
हमने अकबर बनकर जोधा से मोहब्बत की।
मगर सिरफिरे लोगों ने हमको लव जिहादी कह दिया |
इमरान प्रतापगढ़ी शायरी इन टेक्स्ट
लड़कपन का नशा उस पर मुहब्बत और पागलपन,
मेरी इस ज़िंदगी का ख़ूबसूरत दौर पागलपन !
मेरे घरवाले कहते हैं बड़े अब हो चुके हो तुम,
मगर मन फिर भी कहता है करूं कुछ और पागलपन !!
हवा के साथ उड़ने वाले ये आवारगी के दिन,
मेरी मासूमियत के और मेरी संजीदगी के दिन !
कुछेक टीशर्ट, कुछेक जींस और एक कैप छोटी सी,
मेरे लैपटॉप और मोबाइल से ये दोस्ती के दिन !!
अजब सी एक ख़ुशबू फिर भी घर में साथ रहती है,
कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है……..!
मेरी बाइक की पिछली सीट जो अब तक अकेली है,
इधर लगता है उसने कोई ख़ुशबू साथ ले ली है !
मगर इस बीच मैं बाइक पे जब-जब बैठता हूं तो,
मुझे लगता है कांधे पर कोई नाज़ुक हथेली है !!
इमरान प्रतापगढ़ी मुशायरा
यही एहसास मुझमें सारा सारा दिन महकता है,
मुझे छूने को उसका मख़मली पल्लू सरकता है !
बुलाती है किसी की दालचीनी सी महक मुझको,
मेरा ही नाम ले-लेकर कोई कंगन खनकता है !!
सुबह में रात में और दोपहर में साथ रहती है,
कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है…..!
समय जब भागता है रात गहरी होने लगती है,
तो उसकी याद की शम्मा सुनहरी होने लगती है !
मेरी पलकों पे उसके ख़्वाब उगने लगते हैं जैसे ,
अजब ख़ुशबू से तर मेरी मसहरी होने लगती है !
मैं उठकर बैठता हूं और क़लम काग़ज़ उठाता हूं ,
मैं उस काग़ज़ पे अपनी याद का चेहरा बनाता हूं !!
उजाले चुभने लगते हैं मेरी आंखों को कमरे के,
क़लम को चूमता हूं और चराग़ों को बुझाता हूं !
मेरी यादों के इस उठते भंवर में साथ रहती है ,
कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है ……. !!
इमरान प्रतापगढ़ी शायरी हिंदी
ये ताजमहल ये लालकिला, ये जितनी भी तामीरें हैं,
जिन पर इतराते फिरते हो, सब पुरखों की जागीरें हैं!!
जब माँगा वतन ने खून, बदन का सारा लहू निचोड़ दिया,
अफ़सोस मगर इतिहास ने ये, किस मोड़ पे लाके छोड़ दिया !!
ख़बसूरत मौसम, हर चीज़ कुहरे में लिपटी हुई
गुमनाम सा सफ़र, अजनबी रास्ते
शुक्रिया अपने बंजारेपन का
इमरान प्रतापगढ़ी की मशहूर शायरियां
जुल्म-ए-माज़ी आइन्दा ज़हन में रहे,
एक शिकारी परिंदा ज़हन में रहे !!
वोट देने को घर से निकालिएगा जब,
तब वो ख़ूनी दरिंदा ज़हन में रहे !!
राह में ख़तरे भी हैं, लेकिन ठहरता कौन है,
मौत कल आती है, आज आ जाये डरता कौन है !
तेरी लश्कर के मुक़ाबिल मैं अकेला हूँ मैं मगर,
फ़ैसला मैदान में होगा कि मरता कौन है !!!
Imran Pratapgarhi Shayari Lyrics
ज़माने पर भरोसा करने वालों,
भरोसे का ज़माना जा रहा है !
तेरे चेहरे में एैसा क्या है आख़िर,
जिसे बरसों से देखा जा रहा है !!!
लड़कपन का नशा उस पर मुहब्बत और पागलपन, मेरी इस ज़िंदगी का ख़ूबसूरत दौर पागलपन !
मेरे घरवाले कहते हैं बड़े अब हो चुके हो तुम, मगर मन फिर भी कहता है करूं कुछ और पागलपन !!
हवा के साथ उड़ने वाले ये आवारगी के दिन, मेरी मासूमियत के और मेरी संजीदगी के दिन !
कुछेक टीशर्ट, कुछेक जींस और एक कैप छोटी सी, मेरे लैपटॉप और मोबाइल से ये दोस्ती के दिन !!
अजब सी एक ख़ुशबू फिर भी घर में साथ रहती है, कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है……..!
