करवा चौथ 2019: करवा चौथ का त्यौहार कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पूरे दिन का उपवास रखकर महिलाओं द्वारा हर साल बहुत खुशी से मनाया जाता है। यह भारत के लगभग सभी राज्यों में एक ही तिथि में मनाया जा रहा है। यह हर साल अक्टूबर या नवंबर के महीने में पूर्णिमा के चौथे दिन पड़ता है जिसका अर्थ हिंदू कैलेंडर के अनुसार पूर्णिमा है| करवा चौथ के दिन व्रत रखना एक महान अनुष्ठान है, जिसके दौरान एक विवाहित महिला पूरे दिन उपवास रखती है और अपने पति के कल्याण और लंबे जीवन के लिए भगवान गणेश की पूजा करती है। विशेषकर, यह कुछ भारतीय क्षेत्रों में विवाहित महिलाओं का त्योहार है; यह अविवाहित महिलाओं द्वारा अपने भावी पति के लिए भी उपवास रखने की परंपरा है।
Karva chauth 2019 kab hai
karva chauth 2019 date in india calendar: इस वर्ष करवा चौथ 17 अक्टूबर को है| यदि हम इस त्योहार की लोकप्रियता देखते हैं, तो हम अपने देश के उत्तर और उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों की प्रमुखता देखते हैं। इन क्षेत्रों की पुरुष आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारतीय सेना के सैनिक और सैन्य बलों के अधिकारी थे और इन लोगों की सुरक्षा के लिए, इन क्षेत्रों की महिलाओं ने उपवास शुरू किया। इन सशस्त्र बलों, पुलिसकर्मियों, सैनिकों और सैन्य कर्मियों ने दुश्मनों से देश की रक्षा की और महिलाएं अपने पुरुषों की लंबी उम्र के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती थीं। इस त्यौहार का समय रबी फसल के मौसम की शुरुआत के साथ आता है, जो इन उपर्युक्त क्षेत्रों में गेहूं की बुवाई का मौसम है। परिवारों की महिलाएं मिट्टी के बर्तन या करवा को गेहूं के दानों से भर देती हैं और भगवान से एक महान रबी मौसम की प्रार्थना करती हैं।
करवा चौथ विधि
- करवा चौथ से एक दिन पहले सास फल, भोजन, आभूषण और अन्य श्रृंगार (श्रृंगार) से भरी टोकरी (सरगी) देती थी।
- करवा चौथ के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले जाग जाती हैं और अपना व्रत शुरू करने के लिए सरगी से भोजन करती हैं।
- व्रत तब तक रखा जाता है जब तक कि सूर्यास्त के बाद चंद्रमा नहीं उगता।
- महिलाएं करवा चौथ पूजा करने के लिए सुंदर कपड़े, आभूषण और मेकअप में तैयार हो जाती हैं।
- उसके बाद वे करवा चौथ व्रत कथा सुनते हैं।
- शाम को चंद्रमा के उदय होने के बाद, महिलाएं छलनी के माध्यम से चंद्रमा को देखती हैं और फिर छलनी के माध्यम से अपने पति को देखती हैं।
- पति अपने करवा चौथ व्रत को तोड़ने के लिए पत्नी को मिठाई और पानी खिलाता है।
करवा चौथ व्रत की पूजन सामग्री
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- चंदन
- दही
- मिठाई
- गंगाजल
- कुंकू
- अक्षत (चावल)
- शहद
- चूड़ी
- बिछुआ
- मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन
- दीपक
- कच्चा दूध
- अगरबत्ती
- पुष्प
- महावर
- कंघा
- बिंदी
- चुनरी
- शक्कर
- शुद्ध घी
- सिंदूर
- मेहंदी
- शक्कर का बूरा
- हल्दी
- पानी का लोटा
- गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी
- लकड़ी का आसन
- चलनी
- आठ पूरियों की अठावरी
- हलुआ
- रुई
- कपूर
- गेहूं
- दक्षिणा (दान) के लिए पैसे, इत्यादि।
करवा चौथ व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।
