Lohri 2022: लोहड़ी का त्यौहार पंजाबी लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है | लोहड़ी का त्यौहार उत्तर भारत में मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व बहुत हर्षोल्लास व उत्साह के साथ मनाया जाता है | पंजाब के साथ-साथ आस पास के राज्य जैसे हरियाणा में भी यह पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है| अगर देखा जाये तो मकर संक्राति के दिन या उसके आस-पास भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से कोई न कोई पर्व मनाया ही जाता है | लोहड़ी के दिन लोग संध्या में आग जलाकर उसके चककर लगाते हैं और साथ-साथ लोहड़ी गीत गाते हुए आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील व मक्के के दानों की आहुति भी देते हैं और बाद में एक दुसरे को बधाई भी देते हैं |
लोहरी का इतिहास
अगर लोहड़ी के इतिहास की बात की जाए तो अकबर के राज में एक पंजाब प्रांत का सरदार रहता था, जिसका नाम दुल्ला भट्टी था | लोग उसे पंजाब का नायक कहते थे क्यूंकि वह अमीरों से लूट कर गरीबों की मदद करता था | उस समय लड़कियों को बलपूर्वक गुलाम बनाकर बेचा जाता था, जिसका विरोध कर दुल्ला भट्टी ने लड़कियों को इस दुष्कर्म से बचाया और उन्हें आज़ाद कराकर उनकी सम्मानपूर्वक शादी भी करवाई, दुल्ला भट्टी की इस विजय को ही लोहड़ी के दिन याद किया जाता है और लोहड़ी के गीतों में भी उनका वर्णन होता है |
Lohri essay in hindi
मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषत: पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है । किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है । मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं । इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है । मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है ।
पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है । लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं । लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है । लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं । आग के चारो ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं व रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं । जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है । प्राय: घर में नव वधू या और बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है । लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था । यह शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया ।
ऐतिहासिक संदर्भ: किसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था । उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ है । उसने दोनों लड़कियों, सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कीं ।
Essay on Lohri Festival in Hindi
लोहड़ी पंजाब राज्य का का प्रसिद्ध त्यौहार है, जो पंजाब के साथ साथ उसके पास के राज्यों में भी धूम-धाम से मनाया जाता है। पंजाब के लोगों के लिए यह त्यौहार बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और हर जगह हर्ष और उल्लास से भरा होता है। लोहड़ी के त्यौहार को सिंधी लोग लाल लोई के नाम से मनाते हैं। भारत में यह कुछ उत्तरी राज्यों जैसे हरयाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश में भी धूम धाम से मनाया जाता है परन्तु पंजाब में इसको सबसे ज्यादा मान्यता दिया जाता है।
लोहड़ी सर्दियों के मौसम का अंत दर्शाता है। इसलिए यह एक मौसमी त्यौहार है जो शीत ऋतू के जाने पर मकर संक्रांति के समय मनाया जाता है। यह किसानों के लिए भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार और दिन होता है।लोहड़ी का त्यौहार मनाने वाले और इससे जुड़े हुए लोगों लोहड़ी के त्यौहार को दुल्ला भट्टी की लोक कथा से भी जोड़ते हैं। यह विश्वास किया जाता है कि अकबर के काल में पिंडी भटियन का एक राजा था दुल्ला भट्टी दुल्ला भट्टी वह एक लुटेरा था पर उसने बहुत सारी लड़कियों को गुलाम बाज़ार या दास बाज़ार से अपहरण किये हुए लोगों से बचाया था जो की एक महान बात थी।
इसके कारण लोहड़ी के त्यौहार में लोग दुल्ला भट्टी पर आभार व्यक्त करते हैं और उनका नाम पंजाब की लोक कथाओं में व्यापक रूप से वर्णित है। ज्यादातर लोहड़ी के गीत दुल्ला भट्टी के अच्छे कर्मों में आधारित है। लोहड़ी का त्यौहार खासकर प्रतिवर्ष जनवरी 13 को मनाया जाता है। यह त्यौहार मकर संक्रांति मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है।इस दिन पारंपरिक गीतों और शानदार नृत्यों के साथ-साथ बेहेतरीन दावत भी दिए जाते हैं। इस त्यौहार को खुशियों का त्यौहार मन जाता है जिसमें सभी दुखों को भुला कर ख़ुशी और प्रेम की नयी शुरुवात होती है। इस त्यौहार की शुरुवात अग्नि की पूजा करके की जाती है।
यह त्यौहार के दिन तरह-तरह के अनाज जैसे तिल की मिठाई, पॉपकॉर्न, मूंगफल्ली, और मुरमुरे को अग्नि में भेट चढ़ाया जाता है। साथ ही उस अग्नि के चारों और प्रार्थना करते हुए सभी लोग इन अनाज को अग्नि में फैंक कर भेंट करते हैं।
पूजा के बाद सभी लोगों को प्रसाद में खासकर गुड, गज़क और रेवड़ी दी जाती है। किसी भी नवजात शिशु या नव विवाहित लोगों के लिए यह दिन बहुत ही मायने रखता है। वे इस दिन को बहुत ही अच्छे और पूजा के साथ इस दिन को मनाते हैं।
इस दिन एक मुख्य भोजन मक्के की रोटी या बाजरे की रोटी, सरसों के साग के साथ ना होने से जैसे यह त्यौहार अधुरा सा होता है।
इस मुसीबत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लड़के वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया । दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया । कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी । जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका तो दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर ड़ालकर ही उनको विदा कर दिया । भावार्थ यह है कि ड़ाकू हो कर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई ।
यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है, इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है । इस प्रकार यह त्योहार पूरे उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है ।
लोहड़ी त्यौहार पर निबंध

लोहड़ी भारत का एक प्रसिद्ध त्योहार है। यह मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले मनाया जाता है। रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं। इस समय रेवड़ी, मूंगफली, आदि खाए जाते हैं। रात में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं और लोहड़ी के गाने गाते हैं I
यह मुख्यत: पंजाब का पर्व है I लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि इतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुडी हुई हैं। दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में ‘खिचड़वार’ और दक्षिण भारत के ‘पोंगल’ पर भी ‘लोहड़ी’ के समीप ही मनाए जाते हैं।
लोहड़ी से 10-12 दिन पहले ही बच्चे ‘लोहड़ी’ के लोकगीत गाकर दाने, लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। इस सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। रेवड़ी और मूंगफली अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी लोगों को बाँटी जाती हैं। घर लौटते समय ‘लोहड़ी’ में से दो चार कोयले प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है।
Lohri festival essay
Introduction: Lohri is a Punjabi festival, celebrated primarily by people belonging to the Punjabi community. The Sindhi people celebrate this festival as “Lal Loi”.
It is most popular festival in the state of Punjab in India. Besides India, it is celebrated world-wide by Punjabi people.
Significance: Lohri marks the end of the winter season. Therefore, it is a seasonal festival. It is also considered a harvest festival and it is an important day for the farmers.
Legend of Dulla Bhatti: People have also connected the Lohri festival with the folk legend of Dulla Bhatti. It is believed that Dulla Bhatti was a robber. But, he rescued and saved many girls from slave market. So, the people sing songs to express their gratitude towards him. He is widely described in the folklore of Punjab. Many of the Lohri songs focus on the good deeds of Dulla Bhatti.
Celebration: Lohri Festival is usually celebrated on 13th day of January every year. It is usually celebrated on the day before the Makar Sankranti festival. Lohri marks the end of winter season. People make every effort to take advantage of the last days of the winter season.
It provides an opportunity to interact with friends and families
Kite Flying: People also fly kites on this day. Kite flying event is enjoyed by all ages.Bonfire: Men and Women wear traditional clothes and dance around the bonfire. They also sing songs and mantras to please God.
Lohri essay in punjabi pdf
ਲੋਹੜੀ ਤਿਉਹਾਰ ਇਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਮਸ਼ਹੂਰ ਪੰਜਾਬੀ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ ਜੋ ਹਰ ਸਾਲ ਦੱਖਣੀ ਏਸ਼ੀਆ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬੀ ਧਰਮ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੁਆਰਾ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਇਹ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਦਿਨ ਨੂੰ ਸਰਦੀਆਂ ਵਿਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਦਿਨ ਦਿਨ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟਾ ਦਿਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਰਾਤ ਨੂੰ ਸਾਲ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਲੰਮੀ ਰਾਤ ਬਣ ਜਾਂਦੀ ਹੈ.
ਇਸ ਨੂੰ ਦੁੱਲਾ ਬੱਟੀ ਦੀ ਪ੍ਰਸੰਸਾ ਵਿਚ ਭੌਂਕਣ, ਨੱਚਣ ਅਤੇ ਗਾਉਣ ਦੁਆਰਾ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਮੁੱਖ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਇਹ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ, ਹਾਲਾਂਕਿ ਇਹ ਹਰਿਆਣਾ, ਹਿਮਾਚਲ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਆਦਿ ਸਮੇਤ ਹੋਰ ਉੱਤਰੀ ਭਾਰਤੀ ਰਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿ ਰਹੇ ਲੋਕਾਂ ਦੁਆਰਾ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ.
ਹੁਣ ਇਕ ਦਿਨ ਲੋਹੜੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਆਧੁਨਿਕ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ. ਪਹਿਲਾਂ, ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਗਜੇਕਾਂ ਨੂੰ ਤੋਹਫ਼ੇ ਦੇਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ, ਹਾਲਾਂਕਿ ਆਧੁਨਿਕ ਲੋਕ ਚਾਕਲੇਟ ਕੇਕ ਅਤੇ ਚਾਕਲੇਟ ਗਜਕਾਂ ਨੂੰ ਤੋਹਫ਼ੇ ਦੇਣ ਲੱਗੇ ਹਨ. ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿੱਚ ਵਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਲੋਕ ਲੋਹੜੀ ਦਾ ਜਸ਼ਨ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਆਪਣੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਸੁਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਸੁਰੱਖਿਆ ਦੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਜਾਣੂ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਚੇਤਨਾ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦੇ ਹਨ. ਉਹ ਇਸ ਮੌਕੇ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਲੋਹੜੀ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਬੋਨ-ਅੱਗ ਨੂੰ ਰੋਸ਼ਨ ਕਰਨ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਦਰੱਖਤ ਨਹੀਂ ਕੱਟਦੇ ਹਨ.ਭਿਖਾਰੀ ਤਿਉਹਾਰ ਮਨਾਉਣ ਦਾ ਮਹੱਤਵ
ਸਰਦੀ ਦੇ ਮੁੱਖ ਫਸਲ ਨੂੰ ਕਣਕ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਅਕਤੂਬਰ ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿਚ ਮਾਰਚ ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿਚ ਜਾਂ ਅਪ੍ਰੈਲ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਬੀਜਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ. ਕਟਾਈ ਕਰਨ, ਇਕੱਤਰ ਕਰਨ ਅਤੇ ਘਰਾਂ ਨੂੰ ਘਰ ਲਿਆਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਸਾਨ ਇਸ ਲੋਹੜੀ ਤਿਉਹਾਰ ਦਾ ਜਸ਼ਨ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਆਨੰਦ ਮਾਣਦੇ ਹਨ. ਇਹ ਜਨਵਰੀ ਮਹੀਨੇ ਦੇ ਮੱਧ ਵਿਚ ਹਿੰਦੂ ਕੈਲੰਡਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਸੂਰਜ ਧਰਤੀ ਤੋਂ ਦੂਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ. ਲੋਹੜੀ ਦਾ ਜਸ਼ਨ ਸਰਦੀਆਂ ਦੇ ਮੌਸਮ ਦੇ ਅੰਤ ਅਤੇ ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ ਬਸੰਤ ਰੁੱਤ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਦਾ ਸੰਕੇਤ ਹੈ. ਤਿਉਹਾਰ ਦੌਰਾਨ ਲੋਕ ਗੰਗਾ ਨਦੀ ਵਿਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਸਾਰੇ ਗੁਨਾਹ ਖਾਲੀ ਹੋ ਸਕਣ.
ਹਰ ਕੋਈ ਇਸ ਤਿਉਹਾਰ ਨੂੰ ਪੂਰੇ ਜੀਵਨ ਲਈ ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਅਤੇ ਖੁਸ਼ਹਾਲੀ ਲਈ ਮਨਾਉਂਦਾ ਹੈ. ਇਹ ਸਭ ਤੋਂ ਸ਼ੁਭ ਦਿਨ ਹੈ ਜੋ ਸੂਰਜ ਦੇ ਦਾਖਲੇ ਦਾ ਸੰਕੇਤ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਕਿ 14 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ 14 ਜੁਲਾਈ ਨੂੰ ਖਤਮ ਹੁੰਦਾ ਹੈ. ਕੁਝ ਲੋਕ ਇਸਨੂੰ ਅੰਤ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ ਭਾਵ ਮੰਜਜੀ ਮਹੀਨਾ (ਕਲੰਦਰ ਕਲੰਡਰ ਮੁਤਾਬਕ 9 ਵੇਂ ਮਹੀਨੇ) ਦਾ ਆਖਰੀ ਦਿਨ.ਭਿਖਾਰੀ ਤਿਉਹਾਰ ਦੇ ਸਮਾਰੋਹ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਇਤਿਹਾਸ
ਲੋਹੜੀ ਤਿਉਹਾਰ ਮਨਾਉਣ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਇਕ ਬਹੁਤ ਪੁਰਾਣਾ ਇਤਿਹਾਸ ਹੈ. ਇਹ ਨਵੇਂ ਸਾਲ ਦੀ ਘਟਨਾ ਅਤੇ ਬਸੰਤ ਸੀਜ਼ਨ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਸਰਦੀ ਦੇ ਮੌਸਮ ਦੇ ਅੰਤ ਦੀ ਨਿਸ਼ਾਨੀ ਹੈ. ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮੰਨਣਾ ਸੀ ਕਿ ਲੋਹੜੀ ਦੀ ਰਾਤ ਸਾਲ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਲੰਮੀ ਰਾਤ ਬਣ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹਰ ਦਿਨ ਵੱਡੇ ਹੋਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਰਾਤ ਨੂੰ ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦਾ ਹੈ. ਇਹ ਦੁੱਲਾ ਬੱਟੀ ਦੀ ਪ੍ਰਸੰਸਾ ਵਿਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਰਾਜਾ ਅਕਬਰ ਦੇ ਸਮੇਂ ਮੁਸਲਮਾਨ ਡਾਕੂ ਸਨ. ਉਹ ਅਮੀਰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਘਰ ਤੋਂ ਦੌਲਤ ਚੋਰੀ ਕਰਨ ਅਤੇ ਗਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੰਡਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ. ਉਹ ਗਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਅਤੇ ਨਿਰਬਲ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਨਾਇਕ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੇ ਅਨੇਕਾਂ ਕੁੜੀਆਂ ਦੀਆਂ ਜਾਨਾਂ ਬਚਾ ਲਈਆਂ ਜਿਹੜੀਆਂ ਆਪਣੇ ਘਰ ਅਜਨਬੀ ਦੁਆਰਾ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਚੁੱਕੀਆਂ ਸਨ. ਉਸਨੇ ਦਹੇਜ ਦਾ ਭੁਗਤਾਨ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਵਿਆਹਾਂ ਵਿਚ ਬੇਸਹਾਰਾ ਕੁੜੀਆਂ ਦੀ ਮਦਦ ਕੀਤੀ ਇਸ ਲਈ, ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਲੋਹੜੀ ਤਿਉਹਾਰ ਦਾ ਉਦਘਾਟਨ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜੋ ਦੱਲਹਾ ਭੱਟੀ ਦੀ ਬਹੁਤ ਮਦਦ ਲਈ ਅਤੇ ਗਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਮਹਾਨ ਕੰਮਾਂ ਲਈ ਹੈ.
ਲੋਹੜੀ ਦੀ ਮੌਜੂਦਗੀ ਦਰਸਾਉਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਦੱਖਣ ਵੱਲ ਉੱਤਰੀ ਵੱਲ ਸੂਰਜ ਦੀ ਲਹਿਰ ਹੈ, ਅਤੇ ਕੈਂਪ ਦੇ ਟਰੋਪਿਕ ਤੋਂ ਖੋਖਰ ਦੇ ਮਕੌੜਿਆਂ ‘ਤੇ ਦਾਖਲ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ. ਲੋਹੜੀ ਤਿਉਹਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਨੂੰ ਸਮਰਪਿਤ ਹੈ ਸੂਰਜ ਅਤੇ ਅੱਗ ਇਹ ਹਰ ਪੰਜਾਬੀ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਖੁਸ਼ੀ ਦਾ ਮੌਕਾ ਹੈ. ਸੂਰਜ ਅਤੇ ਅੱਗ ਊਰਜਾ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਸਰੋਤ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਰੂਹਾਨੀ ਤਾਕਤ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਲੋਕ ਬਖਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਹਨ. ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਦੇਵਤੇ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਮੂੰਗਫਲੀ, ਮਿਠਾਈਆਂ, ਪੋਕਰੋਨ, ਤਿਲ-ਚਿਰਵਾ, ਸੋਧਾਂ, ਗਜਾਕ, ਆਦਿ ਨੂੰ ਖੁਰਾਕ ਦੀ ਪੇਸ਼ਕਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ. ਇਹ ਦੋਵਾਂ ਧਰਮਾਂ ਦੇ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੁਆਰਾ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ.
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