जिगर मुरादाबादी जी का असली नाम अली सिकंदर था जिनका जन्म 6 अप्रैल 1890 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था तथा इनकी मृत्यु 70 साल की उम्र में 9 सितम्बर 1960 गोंडा, उत्तर प्रदेश में हुई थी | इन्हे 20 वी सदी का सबसे अधिक प्रसिद्ध व मशहूर कवि माना जाता था क्योकि इनके द्वारा प्रसिद्ध सबसे अच्छी कविता संग्रह “आतिश-ए-गुल” थी जिस रचना के लिए इन्हे 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे महान पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था इसीलिए हम आपको जिगर मुरादाबादी जी द्वारा रचित कुछ बेहतरीन शेरो के बारे में बताते है जो की आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है |
Jigar Moradabadi Two Line Shayari
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अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इंसान के बस का काम नहीं
फ़ैज़ान-ए-मोहब्बत आम सही इरफ़ान-ए-मोहब्बत आम नहीं
अल्लाह-रे चश्म-ए-यार की मोजिज़-बयानियां
हर इक को है गुमाँ कि मुख़ातब हमीं रहे
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
आई जब उन की याद तो आती चली गई
हर नक़्श-ए-मा-सिवा को मिटाती चली गई
आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है
जिगर मुरादाबादी शायरी – Jigar Muradabadi Poetry
आदत के ब’अद दर्द भी देने लगा मज़ा
हँस हँस के आह आह किए जा रहा हूँ मैं
आदमी के पास सब कुछ है मगर
एक तन्हा आदमिय्यत ही नहीं
आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रौशन
आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम है
जिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं
अगर न ज़ोहरा-जबीनों के दरमियाँ गुज़रे
तो फिर ये कैसे कटे ज़िंदगी कहाँ गुज़रे
Jigar Moradabadi Sher O Shayari
अहबाब मुझ से क़त-ए-तअल्लुक़ करें ‘जिगर’
अब आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त लब-ए-बाम आ गया
अब तो ये भी नहीं रहा एहसास
दर्द होता है या नहीं होता
आप के दुश्मन रहें वक़्फ़-ए-ख़लिश सर्फ़-ए-तपिश
आप क्यूँ ग़म-ख़्वारी-ए-बीमार-ए-हिज्राँ कीजिए
आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है
जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है
अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल
हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया
Jigar Moradabadi Hindi Shayari
इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी
कि हम ने आह तो की उन से आह भी न हुई
इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है
इब्तिदा वो थी कि जीना था मोहब्बत में मुहाल
इंतिहा ये है कि अब मरना भी मुश्किल हो गया
आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है
आबाद अगर न दिल हो तो बरबाद कीजिए
गुलशन न बन सके तो बयाबाँ बनाइए
Jigar Moradabadi Best Shayari
इस तरह ख़ुश हूँ किसी के वादा-ए-फ़र्दा पे मैं
दर-हक़ीक़त जैसे मुझ को ए’तिबार आ ही गया
इश्क़ पर कुछ न चला दीदा-ए-तर का क़ाबू
उस ने जो आग लगा दी वो बुझाई न गई
ऐ मोहतसिब न फेंक मिरे मोहतसिब न फेंक
ज़ालिम शराब है अरे ज़ालिम शराब है
चश्म पुर-नम ज़ुल्फ़ आशुफ़्ता निगाहें बे-क़रार
इस पशीमानी के सदक़े मैं पशीमाँ हो गया
ग़र्क़ कर दे तुझ को ज़ाहिद तेरी दुनिया को ख़राब
कम से कम इतनी तो हर मय-कश के पैमाने में है
Jigar Moradabadi Ghazals – जिगर मुरादाबादी की गजलें
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गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़
काँटों से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं
जुनून-ए-मोहब्बत यहाँ तक तो पहुँचा
कि तर्क-ए-मोहब्बत किया चाहता हूँ
कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम
आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं
किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़
मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा
कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाएँ एक नशेमन
Jigar Muradabadi 2 Line Poetry
कमाल-ए-तिश्नगी ही से बुझा लेते हैं प्यास अपनी
इसी तपते हुए सहरा को हम दरिया समझते हैं
कभी शाख़ ओ सब्ज़ा ओ बर्ग पर कभी ग़ुंचा ओ गुल ओ ख़ार पर
मैं चमन में चाहे जहाँ रहूँ मिरा हक़ है फ़स्ल-ए-बहार पर
गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद
यहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है
गुदाज़-ए-इश्क़ नहीं कम जो मैं जवाँ न रहा
वही है आग मगर आग में धुआँ न रहा
एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ ‘जिगर’
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी मोहब्बतों का शायर
गरचे अहल-ए-शराब हैं हम लोग
ये न समझो ख़राब हैं हम लोग
एक ऐसा भी वक़्त होता है
मुस्कुराहट भी आह होती है
ऐसा कहाँ बहार में रंगीनियों का जोश
शामिल किसी का ख़ून-ए-तमन्ना ज़रूर था
दर्द ओ ग़म दिल की तबीअत बन गए
अब यहाँ आराम ही आराम है
दिल गया रौनक़-ए-हयात गई
ग़म गया सारी काएनात गई
Jigar Moradabadi Urdu Poetry
कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है
क्या ख़बर थी ख़लिश-ए-नाज़ न जीने देगी
ये तिरी प्यार की आवाज़ न जीने देगी
कूचा-ए-इश्क़ में निकल आया
जिस को ख़ाना-ख़राब होना था
क्या बताऊँ किस क़दर ज़ंजीर-ए-पा साबित हुए
चंद तिनके जिन को अपना आशियाँ समझा था में
Jigar Moradabadi ke Sher
कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर
अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे
उस ने अपना बना के छोड़ दिया
क्या असीरी है क्या रिहाई है
दिल है क़दमों पर किसी के सर झुका हो या न हो
बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो
Jigar Moradabadi Shayari Lyrics
दिल को सुकून रूह को आराम आ गया
मौत आ गई कि दोस्त का पैग़ाम आ गया
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा
आदमी काम का नहीं होता
आँखों का था क़ुसूर न दिल का क़ुसूर था
आया जो मेरे सामने मेरा ग़ुरूर था
उसी को कहते हैं जन्नत उसी को दोज़ख़ भी
वो ज़िंदगी जो हसीनों के दरमियाँ गुज़रे
दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उन को सुनाई न गई
बात बिगड़ी थी कुछ ऐसी कि बनाई न गई
Jigar Moradabadi Love Shayari
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
दुनिया ये दुखी है फिर भी मगर थक कर ही सही सो जाती है
तेरे ही मुक़द्दर में ऐ दिल क्यूँ चैन नहीं आराम नहीं
जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तिरे क़ाबिल नहीं रहे
जान ही दे दी ‘जिगर’ ने आज पा-ए-यार पर
उम्र भर की बे-क़रारी को क़रार आ ही गया
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद
