मोहसिन नक़वी प्रसिद्द पाकिस्तानी उर्दू कवि थे जिन्होंने उर्दू जगत में अपनी उर्दू की ग़ज़ल की वजह प्रसिद्धि बनायीं थी इनका जन्म 5 मई 1947 में पंजाब में तथा निधन 15 जनवरी 1996 में लाहौर में हुआ था | इनका वास्तविक नाम सईद ग़ुलाम अब्बास नक़वी था यह दिल के बहुत अच्छे इंसान थे जिसकी झलक इनकी रचनाओं में देखने को मिल जाती है | अगर आप इनके द्वारा लिखे गए उर्दू के शेर-शायरी जानना चाहते है तो इसके लिए आप हमारे द्वारा बताई गयी जानकारी को पढ़ सकते है |
Mohsin Naqvi Shayari Ahlebait
मौसम-ए-ज़र्द में एक दिल को बचाऊँ कैसे
ऐसी रुत में तो घने पेड़ भी झड़ जाते हैं
जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ
पलट के आ गई ख़ेमे की सम्त प्यास मिरी
फटे हुए थे सभी बादलों के मश्कीज़े
Mohsin Naqvi Love Shayari
अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था
अपनी कच्ची बस्तियों को बे-निशाँ होना ही था
शाख़-ए-उरियाँ पर खिला इक फूल इस अंदाज़ से
जिस तरह ताज़ा लहू चमके नई तलवार पर
जिन अश्कों की फीकी लौ को हम बेकार समझते थे
उन अश्कों से कितना रौशन इक तारीक मकान हुआ
Mohsin Naqvi Two Line Shayari
तुम्हें जब रू-ब-रू देखा करेंगे
ये सोचा है बहुत सोचा करेंगे
अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें
वफ़ा की कौन सी मंज़िल पे उस ने छोड़ा था
कि वो तो याद हमें भूल कर भी आता है
Mohsin Naqvi Ki Shayari
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जो दे सका न पहाड़ों को बर्फ़ की चादर
वो मेरी बाँझ ज़मीं को कपास क्या देगा
वो अक्सर दिन में बच्चों को सुला देती है इस डर से
गली में फिर खिलौने बेचने वाला न आ जाए
अज़ल से क़ाएम हैं दोनों अपनी ज़िदों पे ‘मोहसिन’
चलेगा पानी मगर किनारा नहीं चलेगा
Mohsin Naqvi Ki Urdu Shayari
वो अक्सर दिन में बच्चों को सुला देती है इस डर से
गली में फिर खिलौने बेचने वाला न आ जाए
कहाँ मिलेगी मिसाल मेरी सितमगरी की
कि मैं गुलाबों के ज़ख़्म काँटों से सी रहा हूँ
वो लम्हा भर की कहानी कि उम्र भर में कही
अभी तो ख़ुद से तक़ाज़े थे इख़्तिसार के भी
Mohsin Naqvi Shayari Romantic
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चुनती हैं मेरे अश्क रुतों की भिकारनें
‘मोहसिन’ लुटा रहा हूँ सर-ए-आम चाँदनी
ये किस ने हम से लहू का ख़िराज फिर माँगा
अभी तो सोए थे मक़्तल को सुर्ख़-रू कर के
कल थके-हारे परिंदों ने नसीहत की मुझे
शाम ढल जाए तो ‘मोहसिन’ तुम भी घर जाया करो
Mohsin Naqvi Matam Shayari
यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं ‘मोहसिन’
वो काँच का पैकर है तो पत्थर तिरी आँखें
दश्त-ए-हस्ती में शब-ए-ग़म की सहर करने को
हिज्र वालों ने लिया रख़्त-ए-सफ़र सन्नाटा
ज़िक्र-ए-शब-ए-फ़िराक़ से वहशत उसे भी थी
मेरी तरह किसी से मोहब्बत उसे भी थी
Mohsin Naqvi Shia Shayari
कितने लहजों के ग़िलाफ़ों में छुपाऊँ तुझ को
शहर वाले मिरा मौज़ू-ए-सुख़न जानते हैं
हम अपनी धरती से अपनी हर सम्त ख़ुद तलाशें
हमारी ख़ातिर कोई सितारा नहीं चलेगा
क्यूँ तिरे दर्द को दें तोहमत-ए-वीरानी-ए-दिल
ज़लज़लों में तो भरे शहर उजड़ जाते हैं
Mohsin Naqvi Poetry 2 Lines
हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर
गहरी ख़मोश झील के पानी को यूँ न छेड़
छींटे उड़े तो तेरी क़बा पर भी आएँगे
सिर्फ़ हाथों को न देखो कभी आँखें भी पढ़ो
कुछ सवाली बड़े ख़ुद्दार हुआ करते हैं
लोगो भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ
हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी
