Essay (Nibandh)

National Pollution Control Day Essay – राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस पर निबंध

National Pollution Control Day Essay

National Pollution Prevention Day: प्रदूषण एक बड़ी समस्या है जिसका सामना न केवल भारत को करना पड़ रहा है बल्कि पूरी दुनिया इससे जूझ रही है। इसे पर्यावरण प्रदूषण के रूप में भी जाना जाता है। हम प्रदूषण को किसी भी पदार्थ, चाहे ठोस, तरल या गैस या ऊर्जा के किसी भी रूप जैसे कि गर्मी, ध्वनि आदि से पर्यावरण के लिए परिभाषित कर सकते हैं।

प्रदूषण के प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए, लोगों को इसके कारण होने वाली समस्याओं, 2 दिसंबर को हर साल राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जाता है। यह उन लोगों की याद में मनाया जाता है, जो 2 दिसंबर, 1984 को भोपाल गैस त्रासदी में अपनी जान गंवा चुके हैं।

ऐसे कई कारक हैं जो प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं जैसे पटाखे फोड़ना, सड़कों पर वाहन चलाना, बम विस्फोट, उद्योगों के माध्यम से गैसों का रिसाव आदि। आजकल प्रदूषण की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और यह संबंधित सरकार का कर्तव्य है और प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए भी लोग। हमें प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विचारों और योजनाओं को उत्पन्न करना चाहिए।

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस का महत्व इसलिए भी रखता है क्युकी यह आज के समय के युवाओ को पर्यावरण संरक्षण की प्राथमिकता देता है| इसी वजह से बहुत से स्कूल व विश्वविद्यालय में निबंध एवं स्पीच प्रतियोगिता भी करवाई जाती है|

Essay in Hindi

पर्यावरण संरक्षण आज के समय का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है| दिन प्रति दिन पर्यावरण दूषित हो रहा है| यह ही कारण है की राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस के दिन लोग रैलिया निकालते है जिसमे वे पर्यावरण संरक्षण पर नारे लगाते है| अगर आप भी अपने आस पास प्रदूषण नियंत्रण से सम्बंधित जागरूकता फैलाना चाहते है तो व्हाट्सप्प या फेसबुक पर कोट्स शेयर कर सकते है|

Essay in 100

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस उन लोगों की याद में मनाया जाता है जिन्होंने भोपाल गैस त्रासदी में अपनी जान गँवा दी थी। उन मृतकों को सम्मान देने और याद करने के लिये भारत में हर वर्ष 2 दिसंबर को मनाया जाता है। भोपाल गैस त्रासदी वर्ष 1984 में 2 और 3 दिसंबर की रात में शहर में स्थित यूनियन कार्बाइड के रासायनिक संयंत्र से जहरीला रसायन जिसे मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) के रूप में जाना जाता है के साथ-साथ अन्य रसायनों के रिसाव के कारण हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, 500,000 से अधिक लोगों की (जो 2259 के आसपास तुरंत मर गये) एमआईसी की जहरीली गैस के रिसाव के कारण मृत्यु हो गयी। बाद में, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ये घोषित किया गया कि गैस त्रासदी से संबंधित लगभग 3,787 लोगों की मृत्यु हुई थी। अगले 72 घंटों में लगभग 8,000-10,000 के आसपास लोगों की मौत हुई, वहीं बाद में गैस त्रासदी से संबंधित बीमारियों के कारण लगभग 25000 लोगों की मौत हो गयी। ये पूरे विश्व में इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण आपदा के रुप में जाना गया जिसके लिये भविष्य में इस प्रकार की आपदा से दूर रहने के लिए गंभीर निवारक उपायों की आवश्यकता है।

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गैस त्रासदी के कारक

कई छोटे ड्रमों में भंडारण के स्थान पर बड़े टैंक में एमआईसी भंडारण।
कम लोगों की जगह में अधिक खतरनाक रसायनों (एमआईसी) का प्रयोग।
संयंत्र द्वारा 1980 के दशक में उत्पादन के रोके जाने के बाद गैस का खराब संरक्षण।
पाइपलाइनों में खराब सामग्री की उपस्थिति।
विभिन्न सुरक्षा प्रणालियों के द्वारा सही से काम न करना।
ऑपरेशन के लिए संयंत्रों के स्थान पर हाथ से काम करने पर निर्भरता, विशेषज्ञ ऑपरेटरों की कमी के साथ ही आपदा प्रबंधन की योजना की कमी है।

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस क्यों मनाया जाता है?

हर साल राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाने के प्रमुख कारकों में से एक औद्योगिक आपदा के प्रबंधन और नियंत्रण के साथ ही पानी, हवा और मिट्टी के प्रदूषण (औद्योगिक प्रक्रियाओं या मैनुअल लापरवाही के कारण उत्पन्न) की रोकथाम है। सरकार द्वारा पूरी दुनिया में प्रदूषण को गंभीरता से नियंत्रित करने और रोकने के लिए बहुत से कानूनों की घोषणा की गयी। राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस हर साल 2 दिसंबर को प्रदूषण नियंत्रण अधिनियमों की आवश्यकता की ओर बहुत अधिक ध्यान देने के लिये लोगों को और सबसे अधिक उद्योगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है।

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National Pollution Control Day Essay in hindi

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

सभी अच्छे और खराब कार्यों के नियमों और कानूनों की राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (NPCB) या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जाँच की जाती है जो भारत में प्रदूषण की रोकथाम के लिए सरकारी निकाय है। ये हमेशा जाँच करता है कि सभी उद्योगों द्वारा पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों का सही तरीके से उपयोग किया जा रहा है या नहीं। महाराष्ट्र में अपना स्वंय का नियंत्रण बोर्ड है जिसे महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) कहा जाता है, ये प्रदूषण नियंत्रण की तत्काल आवश्यकता के रुप में है, क्योंकि ये उन बड़े राज्यों में से एक है जहाँ औद्योगीकरण की दर बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। प्राकृतिक संसाधन जैसे जल, वायु, भूमि या वन विभिन्न प्रकार के प्रदूषण द्वारा तेजी से प्रभावित हो रहे हैं जिन्हें सही तरीके से नियमों और विनियमों को लागू करके तुरंत सुरक्षित करना बहुत जरुरी है।

नियंत्रण के क्या उपाय हैं?

शहरी अपशिष्ट जल उपचार और पुन: उपयोग परियोजना
ठोस अपशिष्ट और उसके प्रबंधन का वैज्ञानिक उपचार
अपशिष्ट के उत्पादन को कम करना
सीवेज उपचार सुविधा
कचरे का पुन: उपयोग और अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादन।
जैव-चिकित्सा अपशिष्ट उपचार सुविधा
इलेक्ट्रॉनिक कचरे की उपचार सुविधा
जल आपूर्ति परियोजना
संसाधन रिकवरी परियोजना
ऊर्जा की बचत परियोजना
शहरी क्षेत्रों में खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन
स्वच्छ विकास तंत्र पर परियोजनाएं।

प्रदूषण रोकने के लिये नीति, नियमों के उचित कार्यान्वयन और प्रदूषण के सभी निवारक उपायों के साथ ही राज्य सरकार द्वारा कई अन्य प्रयास किये गए हैं। उद्योगों को सबसे पहले प्रदूषण को कम करने के लिए प्राधिकरण द्वारा लागू किये गये सभी नियमों और विनियमों का पालन करना होगा।

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दोस्तो, प्रदूषण हमारी धरती के लिए साइलेंट किलर के समान है। अगर हम मिलकर पलूशन कंट्रोल की दिशा में कदम उठाएं, तो धरती का तापमान बढ़ने, नदियों के सूखने, जंगल को बंजर भूमि में तब्दील होने, ग्लेशियर को पिघलने और जीव-जंतुओं को समाप्त होने से बचाया जा सकता है |

देश में हर साल 2 दिसंबर को नेशनल पलूशन कंट्रोल डे उन लोगों की याद में मनाया जाता है, जो 2-3 दिसंबर, 1984 भोपाल गैस त्रासदी के शिकार हो गए थे। इस दिन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस (मिक) के रिसाव की वजह से तकरीबन 3787 लोग मारे गए थे। इतना ही नहीं, लाखों लोग बुरी तरह से प्रभावित भी हुए थे। आज भी वहां के लोगों पर इसका असर साफ देखा जा सकता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों को प्रदूषण नियंत्रण के प्रति जागरूक करना है।

केंद्रीय नियंत्रण बोर्ड

प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन सितंबर, 1974 में किया गया। केंद्रीय और राज्य नियंत्रण बोर्ड द्वारा वायु की गुणवत्ता बहाल करने के लिए वायु अधिनियम 1981 को लागू किया गया है। बोर्ड कार्य-योजना बनाने के साथ समय-समय पर प्रदूषण से संबंधित रिपोर्ट जारी करता है।

प्रदूषण का असर और सरकारी कदम

हर साल 14 अरब टन कचरा समुद्र में फेंक दिया जाता है, जिसमें अधिकतर पर्यावरण के लिए घातक प्लास्टिक होता है।

हर साल एक लाख से अधिक समुद्री पक्षी और एक लाख समुद्री स्तनधारी प्रदूषण के कारण मारे जाते हैं।

चीन कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे बड़ा उत्सर्जक है। इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान आता है।

भूजल में 73 अलग-अलग तरह के पेस्टिसाइड (कीटनाशक) पाए जाते हैं, जो पीने के पानी का मुख्य स्रोत है।

नासा जब एक अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण करता है, तो करीब 28 टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। एक औसत कार प्रतिमाह लगभग आधा टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करती है।

2010 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और 13 बड़े शहरों में चार पहिया वाहनों के लिए स्टेज-4 उत्सर्जन नियम लागू किया गया।

प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए दिल्ली में सार्वजनिक वाहनों के लिए कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) का इस्तेमाल किया जा रहा है।

सरकार ने एक जुलाई 2010 से कोयला खदानों में क्लीन एनर्जी सेस लगाने का ऐलान किया, ताकि कार्बन फुटप्रिंट कम करने और दूषित जगह को स्वस्थ बनाने में मदद मिले।

घर में टीवी और म्यूजिक प्लेयर की आवाज ज्यादा नहीं रखोगे। पटाखों का इस्तेमाल कम करोगे और कूड़ा-कचरा नहींजलाओगे, बल्कि उसे नियत स्थान पर डालोगे। नालों, कुओं, तालाबों, नदियों में गंदगी नहीं बहाओगे और पानी की हर एक बूंद को बचाकर रखोगे। प्लास्टिक की थैलियां आदि रास्ते में नहीं फेंकोगे।

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आज का युग विज्ञान का युग है । विज्ञान ने जहां मनुष्य के लिए सुख-सुविधाओं के साधन जुटाए हैं और अनेक समस्याओं का समाधान किया है, वहीं दूसरी ओर उसके आविष्कारों द्वारा ऐसी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं कि वे वरदान हमारे लिए अभिशाप बन गए हैं । आज के युग में अनेक समस्याएं हैं । प्रदूषण की समस्या उन समस्याओं में से एक है । प्रदूषण दिन प्रतिदिन विकराल रूप धारण करता जा रहा है । प्रदूषण का अर्थ है दोष से युक्त । नाम से ही ज्ञात होता है कि जिसमें विकार या दोष उत्पन्न हो गए हैं वह प्रदूषित हो जाता है ।

आज विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों के कारण ही हमारी संपूर्ण धरती का वातावरण प्रदूषित हो गया है । मानव ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए सभी संसाधनों का दुरुपयोग किया है । इसका परिणाम प्रदूषण के रूप मैं हमारे सामने हैं । इस प्रदूषण के कारण वातावरण के प्राकृतिक संतुलन में गड़बड़ी पैदा हो गई है । प्रदूषण अनेक प्रकार का होता है-जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, वायु दूषण, ध्वनि प्रदूषण । आज की सभ्यता को शहरी सभ्यता कह सकते हैं । भारत के कुछ बड़े महानगरों की जनसंख्या एक करोड़ का आकड़ा पार कर चुकी है ।

इस कारण शहरों की दुर्गति हो गई है । दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे महानगरों में हर प्रकार का प्रदूषण पांव पसार चुका है । लाखों लोग झुग्गी झोपड़ियों मैं निवास करते हैं जहां धूप, पानी और वायु तक का भी प्रबंध नहीं है । सड़कों पर लाखों की संख्या में चलते वाहन कितना प्रदूषण फैलाते हैं । वृक्षों के उग्भाव मैं यह धुःझां मानव के फेफड़ों में जाता है जिस कारण अनेक प्रकार की बीमारियां पैदा होती हैं । नगरों में जरन के स्त्रोत थी धूपित हो चुके है । ध्वनि प्रदूषण का तो कहना ही क्या? इसके कारण जीवन तनावग्रस्त हो गया है । प्रदूषण को रोकने का सर्वोत्तम उपाय है जनसंख्या पर नियंत्रण ।

सरकार को चाहिए कि वह नगरों की सुविधाएं गांवों तक भी पहुंचाए ताकि शहरीकरण की अंधी दौड़ बंद हो । हरियाली को यथासंभव बढ़ावा देना चाहिए । जगह-जगह वृक्ष लगाने चाहिए । प्रदूषण बढ़ाने वाली फैक्टरियों के प्रदूषित जल एवं कचरे को संसाधित करने का प्रबंध करना चाहिए । जल प्रदूषण से सभी नदियां, नहरें, भूमि दूषित हो रही हैं । परिणामस्वरूप हमें प्रदूषित फसलें मिलती हैं, गंदा जल मिलता है । आजकल वाहनों, फैक्टरियों और मशीनों के सामूहिक शोर से रक्तचाप, मानसिक तनाव, बहरापन आदि बीमारियां बढ़ रही हैं ।

जहाँ जनसंख्या बढ़ती है, वहीं उद्योगों की संख्या भी बढ़ती चली जा रही है । इन्हीं उद्योगों से निकलने वाले जहरीले पदार्थ, रसायन आदि नदी-नालों में बहा दिए जाते हैं जो अपने आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषित जल से उत्पन्न रोगों को जन्म देते हैं । नगरों व महानगरों से होकर निकलने वाली नदियों का जल प्रदूषित हो गया है, जिससे उस जल का सेवन करने वाले प्राणी अनेक घातक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं । अधिक पैदावार के लिए जब कीटनाशकों का अधिक प्रयोग किया जाता है तो इनका स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है ।

परमाणु शक्ति के उत्पादन ने वायु, जल एवं ध्वनि तीनों प्रकार के प्रदूषण को बढ़ावा दिया है । भूमि पर पड़े कूड़े-कचरे के कारण भूमि प्रदूषण होता है । महानगरों में झुग्गी-झोपड़ियों के कारण भी भूमि प्रदूषण होता है । आवास की समस्या को सुलझाने के लिए वनों की कटाई भी वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है । जल प्रदूषण से पेट तथा आतों के रोग जैसे हैजा, पीलिया आदि हो जाते हैँ । ध्वनि प्रदूषण से मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि की संभावना रहती है । प्रदूषण के कारण कैंसर, एलर्जी तथा चर्म रोग में भी वृद्धि हो रही है । प्रदूषण की समस्या केवल भारत में ही नहीं है यह पूरे विश्व में विद्यमान है ।

वृक्षारोपण इसे रोकने का सर्वोत्तम उपाय है । वृक्ष हमें ऑक्सीजन देते हैं । वनों की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगानी चाहिए । वाहनों के प्रदूषण को रोकने के लिए उनके लिए सी -एन .जी. का प्रयोग अनिवार्य कर देना चाहिए । औद्योगिक इकाईयों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए फैक्टरियां शहर से दूर लगाई जानी चाहिए । प्राकृतिक रूप से बनी खाद के प्रयोग से भूमि प्रदूषण रोका जा सकता है । इसके लिए सभी नागरिकों को एकजुट होकर प्रयास करना होगा ।

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