सरदार वल्लभ भाई पटेल अपने समय के प्रमुख नेताओं में से एक थे। वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल थे। पटेल गांधीवादी विचारधाराओं से गहरे प्रभावित थे और अहिंसा के मार्ग पर चलते थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन, सत्याग्रह आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन सहित विभिन्न स्वतंत्रता आंदोलनों का समर्थन किया। उन्होंने न केवल इन आंदोलनों में भाग लिया, बल्कि बड़ी संख्या में लोगों को एक साथ भाग लेने के लिए भी लाया।
Sardar Vallabhbhai Patel Nibandh
सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता के अदभुत शिल्पी थे जिनके ह्रदय में भारत बसता था। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल बर्फ से ढंके एक ज्वालामुखी थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे। उन्हे भारत का ‘लौह पुरूष‘ भी कहा जाता है।
जन्म व शिक्षा
वल्लभभाई पटेल श्री झवेरभाई पटेल एवं श्रीमती लाडबा देवी की चौथी थे। उनका जन्म गुजरात के नाडियाद नामक स्थान पर 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। उनके पिता एक किसान थे।
पटेल जी ने प्रारम्भ में स्वाध्याय के माध्यम से ही शिक्षा प्राप्त की और बाद में वे वकालत की पढाई करने के लिए लंदन चले गए। वापस लौटकर उन्होंने कुछ दिनों तक अहमदाबाद में वकालत की लेकिन महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित हो कर वे भी स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
भारत सरकार ने सरदार पटेल के सम्मान में दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा – स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण किया है। 182 मीटर ऊँची यह प्रतिमा देश को एक सूत्र में पिरोने वाले इस माहन नेता के लिए एक उचित सम्मान है।
खेड़ा संघर्ष
स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बडा योगदान खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड(डिविजन) उन दिनो भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।
बारडोली सत्याग्रह
बारडोली सत्याग्रह आन्दोलन की जिम्मेदारी भी वल्लभ भाई पटेल को सौंपी गई थी, जिसे उन्होने सफलता पूर्वक नेतृत्व प्रदान किया। वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में बारडोली सत्याग्रह आन्दोलन का असर सरकार पर हुआ और वायसराय की सलाह पर मुम्बई सरकार ने लगान के आदेश को रद्द करने की घोषणा करते हुए, सभी किसानो की भूमि तथा जानवरों को लौटाने का सरकारी फरमान जारि किया। गिरफ्तार किये गये किसानो को भी रिहा कर दिया गया।
ऐसे मिली सरदार की पदवी
इस आन्दोलन की सफलता के उपलक्ष्य में 11 और 12 अगस्त को विजय दिवस मनाया गया। जिसमें वल्लभ भाई पटेल की सूझ-बूझ की भी प्रशंसा की गई। इसी आन्दोलन की सफलता पर एक विशाल सभा में गाँधी जी ने वल्लभ भाई पटेल को सरदार की पदवी से सम्मानित किया, जिसके बाद वल्लभ भाई पटेल, सरदार पटेल के नाम से प्रसिद्ध हुए।
राष्टीय एकता के सूत्रधार
देशी रीयासतों को भारत में मिलाने का साहसिक कार्य सरदार पटेल के प्रयासों से ही संभव हो सका। जब पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस को भारत परतन्त्रता की बेड़ियों से आजाद हुआ तो उस समय लगभग 562 देशी रियासतें थीं, जिन पर ब्रिटिश सरकार का हुकूमत नहीं था। उनमें से जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोडक़र अधिकतर रियासतों ने स्वेज्छा से भारत में अपने विलय की स्वीकृति दे दी। जूनागढ़ का नवाब जूनागढ़ का विलय पाकिस्तान में चाहता था।
नवाब के इस निर्णय के कारण जूनागढ़ में जन विद्रोह हो गया जिसके परिणाम स्वरूप नवाब को पाकिस्तान भाग जाना पड़ा और जूनागढ़ पर भारत का अधिकार हो गया। हैदराबाद का निजाम हैदराबाद स्टेट को एक स्वतन्त्र देश का रूप देना चाहता था इसलिए उसने भारत में हैदराबाद के विलय कि स्वीकृति नहीं दी। यद्यपि भारत को 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतन्त्रता मिल चुकी थी किन्तु 18 सितम्बर 1948 तक, हैदराबाद भारत से अलग ही रहा।
इस पर तत्कालीन गृह मन्त्री सरदार पटेल ने हैदराबाद के नवाब की हेकड़ी दूर करने के लिए 13 सितम्बर 1948 को सैन्य कार्यवाही आरम्भ की जिसका नाम ‘ऑपरेशन पोलो’ रखा गया था। भारत की सेना के समक्ष निजाम की सेना टिक नहीं सकी और उन्होंने 18 सितम्बर 1948 को समर्पण कर दिया। हैदराबाद के निजाम को विवश होकर भारतीय संघ में शामिल होना पड़ा।
नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था क्योंकि भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। गाँधी जी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था-
रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।
ये कहना अतिश्योक्ती न होगी कि यदि काश्मीर का निर्णय नेहरू जी के बजाय पटेल के हाथ मे होता तो आज भारत में काश्मीर समस्या जैसी कोई समस्या नहीं होती।
सरदार पटेल पर निबंध
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प्रस्तावना:
सरदार पटेल भारतमाता के उन वीर सपूतों में से एक थे, जिनमें देश सेवा, समाज सेवा की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी । अपनी दृढ़ता, आत्मबल, संकल्पशक्ति, निष्ठा, अटल निर्णय शक्ति, दृढ़ विश्वास, साहस, पौरुष एवं कार्य के प्रति लगन के कारण ही वे ”लौह पुरुष” के नाम से जाने जाते थे । वे कम बोलते थे, काम अधिक करते थे ।
सरदार पटेल एक सच्चे राष्ट्रभक्त ही नहीं थे, अपितु वे भारतीय संस्कृति के महान् समर्थक थे । सादा जीवन, उच्च विचार, स्वाभिमान, देश के प्रति अनुराग, यही उनके आदर्श थे । स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात 562 छोटी-बड़ी रियासतों को विलय कर उन्हें भारतीय संघ बनाने में उनकी अति महत्वपूर्ण भूमिका थी ।
जन्म एवं शिक्षा:
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था । उनके पिता झबेरभाई भी एक महान देशभक्त थे । देशभक्ति का पाठ भी उन्होंने इन्हीं से पढ़ा था । वल्लभभाई बचपन से ही काफी निडर थे । कहा जाता है कि बचपन में उन्हें एक बड़ा-सा फोड़ा हो गया था । उन्होंने उस फोड़े को अपने ही हाथों लोहे की सलाख गरम कर फोड़ डाला था ।
उनके स्कूली जीवन में भी यही निडरता देखने को मिलती है । जहां वे पढ़ते थे, वहां के एक टीचर बच्चों को अपनी ही दुकान से किताबें खरीदने के लिए विवश करते थे । उनकी धमकी से डरकर कोई उनका विरोध नहीं कर पाता था, किन्तु सरदार पटेल ने बच्चों की हड़ताल कराकर टीचर को ऐसा करने से रोक दिया । सरदार पटेल चूंकि साधारण किसान के पुत्र थे । जब उन्होंने देखा कि उनके भाई विट्ठल को पढ़ने में कठिनाई आ रही है, तो उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई का विचार त्याग दिया ।
मुख्तारी की परीक्षा देकर जो रुपया उन्होंने एकत्र किया, उसी से उन्होंने वकालत की परीक्षा प्रथम श्रेणी में सन् 1910 में उत्तीर्ण की । इस परीक्षा में अच्छे अंक पाने पर उन्हें साढ़े सात सौ रुपये बतौर पुरस्कार में मिले और उनकी फीस भी माफ हो गयी । वे इंग्लैण्ड से आकर घर पर ही वकालत करने लगे ।
स्वतन्त्रता आन्दोलन व देश सेवा में उनका योगदान:
सरदार पटेल देश की सक्रिय राजनीति में सन् 1917 से आये । जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड में जब निर्दोषों का जनसंहार हुआ, उसी के विरोध में उन्होंने बैरिस्ट्री त्याग दी । विद्यार्थियों के पढ़ने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा प्रदान करने के लिए काशी विद्यापीठ हेतु बर्मा जाकर दस लाख रुपये एकत्र कर लाये ।
जब नागपुर में सिविल लाइन्स में राष्ट्रीय झण्डे के साथ जुलूस निकालने पर प्रतिबन्ध था, तब सरदार पटेल ने स्वयं जाकर झण्डा सत्याग्रह का संचालन किया । इसी दौरान उन्होंने बोरसद के एक मुसलमान खौफनाक डाकू के आतंक से वहां के निवासियों को मुक्ति दिलायी । सन् 1920 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन से प्रभावित होकर वे बारदोली में चले गये । वहां स्वदेशी आन्दोलन के साथ-साथ शराब पीने पर प्रतिबन्ध लगाया ।
पटेलजी ने किसानों का आवाहन करते हुए कहा था कि- ”यह रास्ता बड़ी कठिनाइयों और संघर्षों से भरा है । सरकार तो बन्दूकों, भाले और अस्त्र-शस्त्र की शक्तियों से पूर्ण है । वह एक निर्दयी और जालिम सरकार है । यदि उन हथियारबन्द, निर्दयी विदेशी शक्ति के प्रहारों को सहने का साहस तुममें है, तो आगे बढ़ो । अपमानित जीवन से कहीं अच्छा स्वाभिमान युक्त स्वतन्त्रता युक्त जीवन है । चाहे कितनी ही विपत्तियां आयें, मैं आपके साथ हूं ।”
बारदोली में 75 गांवों का नेतृत्व करते हुए सरदार पटेल ने अंग्रेज सरकार को अपनी शक्ति व किसानों का आत्मबल दिखा ही दिया । अंग्रेजों के विरोध के बाद भी सरदार पटेल ने वहां पर उनकी शक्ति को क्षीण कर दिया । उनके समर्थन में तैयार जनमानस की ताकत को देखकर अंग्रेज घबरा गये और सोचने लगे कि पटेल के रहते गुजरात तो क्या, सारे देश में ही स्वराज आ जायेगा ।
सन् 1930 के नमक सत्याग्रह को सफल बनाने में पटेलजी का बड़ा योगदान है । नेहरू के गिरफ्तार होने के बाद पटेल ने कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार संभाला । उन्हें जेल भी जाना पड़ा । जेल से बाहर आते ही किसानों की करबन्दी को लागू करने हेतु प्रयत्न किया । इस पर 80,000 किसानों ने अपनी गिरफ्तारियां दीं । 17 नवम्बर 1940 को उनके सत्याग्रह की घोषणा से घबराकर अंग्रेज सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया ।
आंतों के रोग के बाद भी उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ा । भारत छोड़ो आन्दोलन हेतु न केवल जनता को, बल्कि पत्रकारों को भी क्रान्तिकारी प्रभाव डालने हेतु तैयार किया । सन् 1946 को जब अस्थायी सरकार बनी, तो गृहमन्त्री नियुक्त होते ही उन्होंने विभाजन के खिलाफ होते हुए भी उस समय की गम्भीर समस्याओं में अपना आपा नहीं खोया ।
निर्णयात्मक हल ढूंढा 562 रियासतों को भारत में विलय कराने वाले पटेल ने तो हैदराबाद के निजाम को अच्छा सबक सिखाया । पाकिस्तान में विलय होकर भारत का विरोध करने वाले निजाम ने धमकी दे डाली- ”यदि भारतीय फौज हैदराबाद में प्रवेश करेगी, तो डेढ़ करोड़ हिन्दुओं की केवल हड्डियां मिलेंगी ।” पटेल ने भारतीय फौज को भेजकर तीन दिन के संघर्ष में एक हजार निजाम के सैनिकों को मार गिराया ।
फरवरी 1949 को हैदराबाद के इसी निजाम ने पटेल के वहां पहुंचने पर हाथ जोड़कर अभिवादन किया । 1962 को जब चीन ने देश की 40,000 वर्ग कि०मी० भूमि पर कब्जा कर लिया, तो पटेल ने चीन को सावधान किया कि वे तिबत को चीन का अंग मानने की भूल ना करें । नेहरूजी इसके विपरीत चीन को तिबत सौंपना चाहते थे । आज भी चीन और तिबत का सीमा विवाद अनसुलझा मामला बन गया है ।
पटेल ने अपने ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ का मन्दिर निर्माण करवाया । गोवा को पुर्तगालियों के कब्जे से दूर हटाना, कश्मीर समस्या का समाधान निकालना था, किन्तु नेहरूजी कश्मीर के मामले को पटेल के विरोध के बाद भी संयुक्त राष्ट्र संघ ले गये । नेहरू और पटेल की विचारधारा में काफी अन्तर था । फिर भी पटेल अपने विशिष्ट अन्दाज से उसे हल कर लेते थे ।
उपसंहार:
भारत का इतिहास हमेशा इस महान, साहसी, निर्भयी, दबंग, अनुशासित, अटल, शक्तिसम्पन्न महान पुरुष को याद करेगा । 562 रियासतों का विलय कराने वाले लौह पुरुष को भारतवर्ष हमेशा याद रखेगा ।
सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध मराठी
सरदार वल्लभभाई पटेल एक महत्त्वाचा नेता, महत्वाकांक्षी व्यक्तिमत्त्व होता. “सरदार” हा शब्द म्हणजे मुख्य, एक नेता होय. सरदार वल्लभभाई पटेल भारताच्या स्वातंत्र्यासाठी लढत होते. ते प्रथम गृहमंत्री आणि भारताचे प्रथम उपमुख्यमंत्री होते. लोक त्याला भारताचे आयर्नमन (लोहपुरुष) म्हणत असत. सरदार वल्लभभाई पटेल यांचा जन्म 31 ऑक्टोबर 1875 रोजी गुजरातच्या नडियाड गावात झाला. गुजरातच्या ग्रामीण भागातील बालपण खर्च केले गेले आहे. त्यांच्या वडिलांचे नाव झावरभाई पटेल हे एक शेतकरी होते आणि त्यांच्या आईचे नाव लादबाई होते.
22 वर्षांच्या वयात त्यांनी मॅट्रीक परीक्षा उत्तीर्ण केली. शिक्षण पूर्ण करण्यासाठी त्याने बर्याच वर्षांपासून आपल्या कुटुंबापासून व घरापासून दूर केले. प्रारंभिक वर्षांमध्ये, तो कायदा यशस्वी आणि कुशल वकील म्हणून सराव करत असे. 1 9 0 9 मध्ये सरदार वल्लभभाई पटेल यांची पत्नी झावरबा यांना कर्करोगाच्या ऑपरेशनसाठी मुंबईत दाखल करण्यात आले. यशस्वी शस्त्रक्रिया असूनही, तिचा रुग्णालयात मृत्यू झाला. जेव्हा त्याच्या पत्नीच्या मृत्यूनंतरची बातमी मिळाली तेव्हा तो न्यायालयीन खटल्याच्या मध्यभागी होता आणि असे म्हटले जाते की त्याने आपल्या पत्नीच्या मृत्यूच्या वृत्तपत्राची नोंद वाचली, त्याच्या खिशात ठेवली आणि न्यायालयीन खटला चालू ठेवला. तो त्याच्या कामाबद्दल खूप भावनिक आणि दृढनिश्चयी होता.
36 वर्षांच्या वयात त्यांनी पुढील शिक्षणासाठी 30 महिन्यांचा अभ्यास पूर्ण केला आणि अहमदाबादमध्ये सर्वात यशस्वी बॅरिस्टर बनण्यासाठी भारतात परतले1917 मध्ये निवडणूक जिंकल्यानंतर ते अहमदाबादचे स्वच्छता आयुक्त बनले आणि नंतर महात्मा गांधी आणि त्यांच्या सत्याग्रह आंदोलनाला ओळखले गेले आणि त्यांना पाठिंबा दिला. काँग्रेसच्या अध्यक्षपदाच्या निवडणुकीत स्वातंत्र्यानंतर, गांधीजींच्या विनंतीनुसार नेहरूंच्या बाजूने पटेल खाली पडले आणि त्यांनी भारतीय फेडरेशनमध्ये रियासतांना एकत्रित करण्यासाठी महत्त्वपूर्ण भूमिका बजावली, म्हणूनच त्यांना भारताचे एकक म्हणून संबोधण्यात आले.
सरदार वल्लभभाई पटेल यांचा 15 डिसेंबर 1 9 50 रोजी मुंबईतील बिर्ला हाऊस येथे 75 वर्षांचा मृत्यू झाला. 1 99 1 मध्ये त्यांचा मृत्यू झाल्यानंतर त्यांना भारताचा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देण्यात आला. 2014 मध्ये त्यांचा वाढदिवस 31 ऑक्टोबरला “राष्ट्रीय एकता दिवस” (राष्ट्रीय एकता दिवस) म्हणून साजरा करण्यात आला.
त्यांचे कार्य आणि भारताच्या स्वातंत्र्याच्या लढाईतील योगदानाने त्यांना अजूनही याद आहे
Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi Language Pdf
सरदार वल्लभभाई पटेल’ का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को भारत के गुजरात राज्य मेँ हुआ था। इनका पूरा नाम ‘सरदार वल्लभभाई झवेरभाई पटेल’ था। इनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल था, जो एक कृषक थे। इनकी माता का नाम लाड़ बाईं था, जो एक सामान्य गृहिणी थीं ।
सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रारंभिक शिक्षा मुख्यतः घर पर हुई। बाद मेँ, लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। सरदार पटेल बचपन से ही बहुत मेहनती स्वभाव के थे। वह कृषि कार्य में अपने पिता का हाथ बंटाते तथा अतिरिक्त समय मेँ पढाई करते थे।
सरदार वल्लभभाई पटेल, भारत के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। उन्होंने देश को आज़ाद कराने के लिये आन्दोलन मेँ बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। गांधी जी को सरदार पटेल की क्षमता पर पूर्ण विश्वास था और वे पटेल जी की सलाह लिए बिना कोई काम नहीं करते थे। 15 अगस्त 1947 को भारत के आज़ाद होने के पश्चात सरदार पटेल भारत के पहले गृहमंत्री एवं उप प्रधानमंत्री बने।
सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम मे महत्वपूर्ण योगदान दिया । इनको ‘लौह पुरुष’ की उपाधि भी मिली। 15 दिसंबर, 1950 को 75 वर्ष की आयु में इनका देहांत हो गया। अपने महान कार्यों और अखण्ड भारत के निर्माण के लिए सरदार पटेल का नाम सदैव याद किया जायेगा।
Sardar Vallabhbhai Patel Essay in English
Sardar Vallabhbhai Patel was born in 1875 at Karamsad, a village in Kaira district in Gujarat. He was a farmer coming from a farmer’s family. At school, he was a naughty and mischievous boy. In due course, he passed his matriculation examination and after some years he passed the Law examination. He practiced as a lawyer at Godhra.
He carried on a roaring legal practice. As he was ambitious, he went to England and became a barister-at-law. In 1923, he became the leader of Bardoli Satyagraha. Since then, he came to be called Sardar Patel. His elder brother, Mr. Vithalbhai Patel, was the President of the Indian Legislative Assembly.
He was jailed several times in connection with the freedom movement. He was the right hand man of Mahatma Gandhi and his most trusted lieutenant. It was Patel who maintained discipline in the Congress ranks. In 1936, the Congress at the General Election won the majority of seats in seven provinces of British India.
Sardar Patel, as the most important member of the Central Parliamentary Board, controlled with a firm hand the Congress Ministries in the seven provinces. In 1947, India was partitioned into Pakistan and free India. Sardar Patel became free India’s first deputy Prime Minister, pandit Jawaharlal Nehru being the first Prime Minister. He was in charge of the Home Department and administered law and order.
Future historians will marvel at his organizing capacity and superhuman ability. The integration of 600 Princely States and the elimination of autocratic rule of the Maharajas and Nawabs will ever stand out as his unique and greatest achievement. He did it without bloodshed and in the short span of two years.
Was it not a miracle? To him rightly goes the credit of completely changing the map of India. Tribal raiders and Pakistani troops attacked Kashmir and tried to secure accession by force. He saw the writing on the wall. The Indian armies landed in Kashmir by air.
The tide was stemmed, the tables were turned. The tribal raiders and Pakistani troops were made to flee. Cease-fire was proclaimed in January 1949. The police action against the Nizam of Hyderabad showed his iron will to see a thing through, no matter how insurmountable the difficulties and how great the opposition.
He was essentially a man of action. He was India’s man of destiny. He was the steel man of India. He was the brightest luminary on the home front. He was a walking volcano with fires raging in his heart. He was not a man to be ignored or trifled with. Defeat he never knew, weakness he never felt and indiscipline he never tolerated.
He was a pillar of fire and enthusiasm, but like a practical statesman, he was also calm and unfathomable. He never hesitated to take a decisive step. He combined quickness of decision with resourcefulness.
He was the greatest administrator and the best statesman that India has ever produced. His death on 15th December 1950, left India poorer. By his death free India has suffered a loss in political leadership that is difficult to repair.
Sardar Vallabhbhai Patel Essay in Gujarati
ભારતનો આયર્ન મૅન
ગુજરાતના એક ખેડૂતને જન્મ (વર્ષ 1875 માં), વલ્લભભાઈ ઝવેરભાઈ પટેલ, પ્રારંભિક વયથી દૃઢ નિર્ધારણ દર્શાવે છે. બ્રિટિશ વસાહતી શાસન હેઠળ તેમની વિનમ્ર શરૂઆત અને દેશની નિરાશાજનક પરિસ્થિતિથી પછાત, પટેલ ઇંગ્લેન્ડમાં અભ્યાસ કરવા ગયા અને બૅરિસ્ટર બન્યા. ઘરે પાછા ફર્યા બાદ, અમદાવાદ શહેરના શ્રેષ્ઠ બેરીસ્ટર્સ પૈકીના એક તરીકે પટેલ પદ પર ઉતર્યા. ગુલામીનો વિચાર, જોકે, એક સુખદ ન હતો અને બ્રિટિશ લોકો સાથે તેમનો વિચારધારાત્મક સંઘર્ષ વધતો રહ્યો. તેમણે તરત જ રાષ્ટ્રીય સ્વતંત્રતા ચળવળમાં હૃદય અને આત્માને ફેંકી દીધી. તેઓ ભારતીય રાષ્ટ્રીય કોંગ્રેસના સૌથી પ્રભાવશાળી નેતાઓમાંના એક બન્યાં અને મહાત્મા ગાંધીના ખૂબ નજીકના સાથી તરીકે માનવામાં આવ્યાં. તેમ છતાં, તેઓ તેમના ઘરના રાજ્ય, ગુજરાતમાં જાહેર નાગરિક અવજ્ઞા વિરોધના આયોજનમાં ખૂબ જ સક્રિય રહ્યા હતા, પટેલ સમગ્ર રાષ્ટ્રની દૃષ્ટિ ગુમાવતા ન હતા.
પ્રિન્સિપાલ રાજ્યોનું એકીકરણ
તે સમયે બ્રિટિશ રાજમાંથી ભારતની આઝાદી બન્યા, ત્યાં 550 થી વધુ રજવાડાઓ હતી. આ રાજ્યો કદ અને શક્તિમાં વૈવિધ્યસભર હતા. મોટા ભાગના કિસ્સાઓમાં શાહી પરિવારો, ભારતીય સંઘમાં જોડાવા માટે અનિચ્છા ધરાવતા હતા. આ રજવાડી રાજ્યોનું એકીકરણ મહત્ત્વનું મહત્વ બન્યું અને આ જવાબદારી સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલને સોંપવામાં આવી. વી.પી. મેનન, અન્ય અસાધારણ વ્યવસ્થાપક સાથે, પટેલ આ રાજ્યોને એક સાથે લાવવા અને ભારતીય પ્રજાસત્તાકનું નિર્માણ કરવા માટે જવાબદાર હતા. તેમના મજબૂત નિર્ધારિત વલણ, તેમની સ્પષ્ટ વાતચીત અને તેમની શ્રેષ્ઠ વાટાઘાટોની કુશળતા દેશને આકાર આપવામાં સફળ રહી હતી.
સરદાર પટેલ શબ્દો ઘટાડવા માટે એક માણસ ન હતો. તેમણે શાહી પરિવારો માટે દરેક સંભવિત રાહતને લંબાવ્યો પરંતુ રાજ્યો ભારતમાં જોડાયા ન હોય તો લશ્કરી કાર્યવાહીની શક્યતા પર પાછો ન હતો. તેમણે માત્ર આ રાજ્યોના જોડાણને જ સલામત બનાવ્યું નથી, પરંતુ તે તબક્કાવાર રીતે વહીવટના પરિવર્તનની પણ દેખરેખ રાખ્યું છે. આણે તેનું મોનિટર “ભારતના યુનિફોર્મર” કમાવ્યા.
પટેલ દેશભરમાં એકીકૃત રાષ્ટ્રવ્યાપી સિસ્ટમો સ્થાપિત કરવા માટે નાગરિક કર્મચારીઓ અને અમલદારો સાથે વ્યાપક રીતે કામ કર્યું હતું. આ કારણોસર તેમને આપણા સિવિલ સર્વિસિસના “આશ્રયદાતા સંત” તરીકે પણ ઓળખવામાં આવે છે, પરંતુ તે સામાન્ય માણસ છે જે આ સેવાઓના ફાયદા ભોગવે છે જે પટેલ ભારતમાં સ્થાપિત કરવામાં સફળ રહ્યા હતા.
પ્રથમ ગૃહ પ્રધાન
દેશના પ્રથમ નાયબ પ્રધાનમંત્રી અને ગૃહમંત્રી તરીકે, સરદાર પટેલે આઘાતજનક સમયમાં દેશને ચલાવ્યો. જે નેતાએ ભારતની આઝાદીની સંઘર્ષ (બાદના ભાગ) દ્વારા ઉત્કૃષ્ટ રીતે ભારતનું નેતૃત્વ કર્યું હતું, તે હિંસક પાર્ટીશન અને પરિણામે બ્લડબેથ હૃદયની તંગી અને નિરાશાજનક હતું. પટેલએ તેના દુઃખની લાગણીને ઢાંકી દીધી ન હતી. તેમણે ઉત્તર ભારતમાં સમગ્ર સ્કેલ રાહત કેમ્પ અને શરણાર્થી આશ્રયસ્થાનોની સ્થાપના કરી અને દેશમાં શાંતિ અને સ્થિરતા પુનઃસ્થાપિત કરવાનું નક્કી કર્યું. નવા ઉદ્ઘાટન સરદાર સરોવર ડેમ એ આ મહાન માણસની દ્રષ્ટિ, પ્રાદેશિક સમૃદ્ધિ અને રાષ્ટ્રીય ઉન્નતિ માટે તેમની પ્રતિબદ્ધતાના અનુવાદ છે.
ભારતની આઝાદીના વર્ષો પછી, સરદાર પટેલે રાષ્ટ્રીય નીતિઓને આકાર આપવા માટે ખૂબ જ મહત્વપૂર્ણ ભૂમિકા ભજવી હતી. મહાત્મા ગાંધી, નેહરુ અને અન્યો દ્વારા વિપરીત વિચારો લાદવાના કારણે તેમની સફળતા સમયે મર્યાદિત હતી, પરંતુ તેમના આદર્શો અને તેમની નીતિઓનો ડહાપણ ભારતના વિકાસની પાયા પર રહેલો છે.
એકતા એક વારસો
સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલ એકતા અને પ્રામાણિકતાની સમૃદ્ધ વારસા પાછળ છોડી દે છે. તેમના સમાજો અને પ્રયાસોએ અસંખ્ય નાના અને ઘણી વાર વિરોધાભાસી રજવાડાઓને ભેગા કરીને રંગીન ટેપસ્ટેરીમાં ભારતીય સમાજની રચના કરી હતી, જે ભારત સરકાર દ્વારા માન્ય કરવામાં આવી છે અને 2014 થી 31 ઑક્ટોબરની તેમની જન્મ જયંતિ, 31 ઓક્ટોબર, રાષ્ટ્રીય એકતા તરીકે ઉજવવામાં આવે છે. દિવસ (રાષ્ટ્રીય એકતા દિવાસ). આ વર્ષે, યુનિવર્સિટી ગ્રાન્ટ્સ કમિશન (યુજીસી) દ્વારા સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલની જન્મજયંતિની ઉજવણી કરવા માટે દેશની તમામ યુનિવર્સિટીઓ અને ઉચ્ચ શિક્ષણ સંસ્થાઓએ આ આશામાં દેશના યુવાનોએ રાષ્ટ્રીય ગૌરવ અને એકતાના સમાન અર્થમાં આત્મવિશ્વાસ વ્યક્ત કરવા જણાવ્યું છે. સરદાર પટેલ
