श्रावण मास के दौरान, नक्षत्र श्रवण पूर्णिमा के दिन शासक सितारा होता है और इसलिए इस महीने को श्रावण नाम दिया गया है। जैसे, यह पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित है और इस महीने के दौरान उनकी पूजा करने से भगवान शिव के सबसे शुभ फल और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। कई लोग इस पूरे महीने उपवास रखते हैं और हर रोज भगवान शिव को प्रसाद चढ़ाते हैं। इस अवधि के दौरान भगवान शिव के लिए बड़ी संख्या में लोगों को विभिन्न पूजाएं मिलती हैं जो हमारे प्राचीन ग्रंथों और लिपियों के अनुसार बहुत शुभ परिणाम देती हैं।
SAWAN SOMVAR POETRY
रात सावन की
कोयल भी बोली
पपीहा भी बोला
मैं ने नहीं सुनी
तुम्हारी कोयल की पुकार
तुम ने पहचानी क्या
मेरे पपीहे की गुहार?
रात सावन की
मन भावन की
पिय आवन की
कुहू-कुहू
मैं कहाँ-तुम कहाँ-पी कहाँ!
आज शाम जब बरसा सावन,
भीगा अपना तन-मन सारा।
भ्रान्ति लिए बैठा हूँ अब तक,
सावन था या प्यार तुम्हारा।कान्हा ने राधा से पूछा,
तुम मुझको सच-सच बतलाना।
भली लगी कब तुम्हें बांसुरी,
और अधर तक उसका आना।भीगे हम भी भीगे तुम भी,
शायद था सौभाग्य हमारा।कह देने से कम हो जाता,
दुविधा में क्यों जीते-मरते।
तुम्हीं कहो उन सुखद पलों का,
मूल्यांकन हम कैसे करते।मनः पटल पर स्पर्शों का,
बार-बार ही चित्र उतारा।क्या जाने फिर कब बरसेगा,
दूर हुए तो मन तरसेगा।
दिल की बात कहेंगे किससे,
दिल का क्या यह तो धड़केगा।जितना जो कुछ मिला भाग्य से,
हमने तुमने है स्वीकारा।
सावन सोमवार कविता – POEM ON SAWAN
सावन का झूला इस बार
इतना बड़ा डालना
जिसमें समा जाए संसार।
उस डाली पर
जो फैली है आसमान के पार
उस रस्सी का
कोई न जिसका पारावार!
एक पेंग में मंगल ग्रह के द्वार
और दूसरी में
इकदम से अंतरिक्ष के पार!लो, सावन बहका है
बूँदों पर है खुमार, मनुवा भी बहका है।बागों में मेले हैं
फूलों के ठेले हैं,
झूलों के मौसम में
साथी अलबेले हैं।कलियों पर है उभार, भँवरा भी चहका है।
ऋतुएँ जो झाँक रहीं
मौसम को आँक रहीं,
धरती की चूनर पर
गोटे को टाँक रहीं।उपवन पर हो सवार, अम्बुआ भी लहका है।
कोयलिया टेर रही
बदली को हेर रही,
विरहन की आँखों को
आशाएँ घेर रही।यौवन पर है निखार, तन-मन भी दहका है।
सावन सोमवार की कविता
अब के सावन ऐसा आए
झूम -झूम कर धरती गाए
रिमझिम -रिमझिम बरसे सावन
तन मन दोनों ख़ुशी से भीग जाए
सावन के झूले जब पड़ते
खिल -खिल हँसती सखियाँ सारी
हिल -मिल कर रंग जमाती
रंग-बिरंगे परिधानों में सब के
मन को भा जाती
यह खिलती कलियाँ अब कभी
न मुरझाएँ , ख़ुशी के गीत गाएँ
घर-घर में रंग जमें अब ऐसा
बेटियाँ हरदम ही मुस्कुराएँ
न हो डर कोई ऐसा जिससे वे सहम
जाएँहम सब भरें उनके मन में विश्वास
ताकि बेख़ौफ़ वे आगे बढ़ती जाएँ
सावन की इस बारिश में खुद को
आनंदित पाएँ
अब के सावन ऐसा आए
झूम -झूम कर धरती गाए
SAWAN SOMVAR PAR KAVITA
मेघ जल बरसा रहे
धरती की अग्न मिटा रहे
कलि कलि मुस्का रही
किसान ख़ुशी से झूम रहे
अपने खेतों को चूम रहे
पशुओं की आवाज आ रही
इन्द्रधनुष की छटा देखो
काली काली घटा देखो
हवा कोना कोना महका रही
वर्षा की चर चर लगी
मेंढकों की टर टर लगी
कोयल भी गीत गा रही
बादलों की गर्जन कहीं दूर
नाच रहे वन में मयूर
प्रकृति स्वयं को सजा रही
ऋतु सावन की सुहानी है
ये ऋतुओं की रानी है
‘अर्जुन’ को अत्यंत भा रही
POEM ON SAWAN IN HINDI
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हो कौन सा देश बसे प्रियतम मेरे
बहुत याद तुम्हारी आती है!नदिया नाले घाट टटोले
बंद दिल के दरवाजे खोले!
बंजारे की जीवन बन गई
आह निकलती पर जुबां ना बोले!
लोग कहे बौराना हो गई
देख-देख मुस्काती है
हो कौन सा – – – – –बसंत गई बीत गई अदरा
ग्रीष्म बीती बीत गई बदरा!
बारह मास छः ऋतु बीती
रंगोली गीली छोर दी भीती!
हमें भी आस है तुम आओगे
ऐसा सब समझाती है
हो कौन सा – – – – –नीर पराई हो गई मेरी
किसे साथ अब कहूं!
बिस्तर छुट्टी बिरह में तेरे
तुम ही बताओ अब कैसे रहूं!
सौतन बन गई रात हमारी
नींद कहां अब आती है
हो कौन सा देश – – – – –
