उधम सिंह का जन्म शेर सिंह के रूप में 26 दिसंबर 1899 को तत्कालीन रियासत पटियाला (वर्तमान में पंजाब, भारत के संगरूर जिले) के ग्राम सुनाम में एक कंबोज परिवार में हुआ था। उनके पिता टहल सिंह कंबोज उस समय पड़ोस के एक अन्य गांव उपली में एक रेलवे क्रॉसिंग पर एक चौकीदार के रूप में कार्यरत थे। शेर सिंह और उनके बड़े भाई, मुक्ता सिंह, कम उम्र में अपने माता-पिता को खो चुके थे;
1901 में उनकी मां की मृत्यु हो गई, और उनके पिता ने 1907 में पालन किया, दोनों भाइयों को बिना किसी विकल्प के छोड़ दिया, लेकिन 24 अक्टूबर 1907 को अमृतसर के पुतलीघर में केंद्रीय खालसा अनाथालय में प्रवेश लेने के लिए।
अनाथालय में, उन्हें सिख धर्म में दीक्षा दी गई और फलस्वरूप। नए नाम; शेर सिंह उधम सिंह बने, जबकि उनके भाई ने साधु सिंह का नाम लिया। दुख की बात है कि साधु सिंह की भी 1917 में एक दशक बाद मृत्यु हो गई, जिससे 17 वर्षीय उधम पूरी दुनिया में अकेली रह गईं।
इस पर्व पर बहुत से स्कूल एवं विश्विधालय में शहीद उधम सिंह पर कविता एवं निबंध लिखवाए जाते है जिससे आज के समय के विद्यार्थी शहीद उधम सिंह के हिम्मत एवं सहादत की अहमियत जान सकते है|
Essay on Shaheed Udham Singh in hindi
#1. Essay in 100 words
उधम सिंह का जन्म शेर सिंह के रूप में 26 दिसंबर 1899 को तत्कालीन रियासत पटियाला (वर्तमान में पंजाब, भारत के संगरूर जिले) के ग्राम सुनाम में एक कंबोज परिवार में हुआ था। उनके पिता टहल सिंह कंबोज उस समय पड़ोस के एक अन्य गांव उपली में एक रेलवे क्रॉसिंग पर एक चौकीदार के रूप में कार्यरत थे। शेर सिंह और उनके बड़े भाई, मुक्ता सिंह, कम उम्र में अपने माता-पिता को खो चुके थे; 1901 में उनकी मां की मृत्यु हो गई, और उनके पिता ने 1907 में पालन किया, दो भाइयों को बिना किसी विकल्प के छोड़ दिया, लेकिन 24 अक्टूबर 1907 को अमृतसर के पुतलीघर में केंद्रीय खालसा अनाथालय में प्रवेश लेने के लिए। अनाथालय में, उन्हें सिख धर्म में दीक्षा दी गई और फलस्वरूप प्राप्त किया। नए नाम; शेर सिंह उधम सिंह बने, जबकि उनके भाई ने साधु सिंह का नाम लिया। दुख की बात है कि साधु सिंह की भी 1917 में एक दशक बाद मृत्यु हो गई, जिससे 17 वर्षीय उधम पूरी दुनिया में अकेली रह गईं।
#2. Essay in 200 words – Shaheed udham singh nibandh
13 मार्च, 1940 का दिन था । लन्दन के सेक्सटन हाल में ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन और रॉयल एशियन सोसाइटी की ओर से विश्व स्थिति और अफगानिस्तान के विषय पर एक गोष्ठी हो रही थी । इसमें अन्तिम वक्ता जनरल सर माइकेल ओ डॉयर थे । उनके भाषण के बाद सभा समाप्त हो गयी । उसी समय सभा में एक भारतीय नौजवान उठा और उसने अपने रिवालवर से जनरल डीयर केसीने में कई गोलियां उतार दीं । गोलियां लगते ही जनरल डॉयर गिर पड़ा । गोलियों की आवाज सुनते ही हाल में भगदड़ मच गई और हर कोई अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगा । उस नौजवान को जब यह विश्वास हो गया कि जनरल डॉयर मर चुका है तब वह शान्त भाव से धीरे- धीरे चलता हुआ मुख्य द्वार पर आ गया और स्वयं को ब्रिटिश सार्जेन्ट के सामने गिरफ्तार करा दिया ।
यह वीर क्रान्तिकारी ऊधम सिंह था जिसने विदेश में जाकर भारत में निर्दोष लोगों के हत्यारे को उसी के देश में मौत के घाट उतारकर आजादी की लड़ाई में अपनी आहुति दी । शहीद ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर, 1899 को जिला संगरूर के सुनाम में सरदार टहल सिंह के यहाँ एक साधारण परिवार में हुआ । बचपन में ही एक के बाद उसके माता-पिता और बड़ा भाई साधू सिंह परलोक सिधार गये । ऊधम सिंह इस दुनिया में अकेला रह गया । इसके चाचा चंचल सिंह ने उसे मेंटुल सिक्स यतीमखाना, अमृतसर में भर्ती करा दिया । वहाँ उन्होंने बढ़ई का काम सीखा । इसी दौरान उसका सम्पर्क भगत सिंह और कुछ दूसरे क्रान्तिकारियों से हुआ. । क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया । वे चार वर्ष मुल्लान और रावलपिंडी की जेलों में ब्रिटिश हुकूमत की यातनायें सहते रहे । तब उन्होंने अमृतसर में ही एक लकड़ी की दुकान शुरू कर दी और अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया ।
#3. Essay in 300 words
शहीद उधम सिंह का भारत की स्वतंत्रता में एक बहुत बड़ा योगदान था इसलिए आप इस पोस्ट में shaheed udham singh essay in punjabi, udham singh ki jati, shaheed udham singh history in hindi, आदि की जानकरी देंगे|
रविवार, 13 अप्रैल 1919, बैसाखी का दिन था – नए साल के आगमन का जश्न मनाने के लिए एक प्रमुख पंजाबी त्यौहार – और आस-पास के गांवों के हजारों लोगों ने अमृतसर में आम उत्सव और मौज-मस्ती के लिए एकत्रित किया था। पशु मेले के बंद होने के बाद, सभी लोग जलियांवाला बाग में 6-7 एकड़ के एक सार्वजनिक उद्यान में एकत्र होने लगे, जो चारों तरफ से दीवार पर लगा हुआ था। यह आशंका है कि किसी भी समय एक बड़ा विद्रोह हो सकता है, कर्नल रेजिनाल्ड डायर ने पहले सभी बैठकों पर प्रतिबंध लगा दिया था, हालांकि, यह बहुत कम संभावना थी कि आम जनता को प्रतिबंध का पता था। जलियांवाला बाग में सभा की बात सुनकर, कर्नल डायर ने अपने सैनिकों के साथ मार्च किया, बाहर निकलने पर मुहर लगा दी और अपने आदमियों को पुरुषों, महिलाओं और बच्चों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश दिया।
गोला-बारूद खत्म होने से पहले दस मिनट के पागलपन में, पूरा तबाही और नरसंहार हुआ था। आधिकारिक ब्रिटिश भारतीय सूत्रों के अनुसार, 379 लोगों की मौत हो गई और 1,100 लोग घायल हो गए, हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1,500 घायलों के साथ मौतों को 1000 से अधिक होने का अनुमान लगाया। प्रारंभ में, ब्रिटिश साम्राज्य में रूढ़िवादियों द्वारा एक नायक के रूप में प्रतिष्ठित, ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स, ने अपनी नियुक्ति से हटाकर, अपनी पदोन्नति से गुजरने और आगे के रोजगार से रोककर हैरी डायर को बुरी तरह से सताया और अनुशासित किया।
#4. Essay in 400 words
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उधम सिंह का जन्म शेर सिंह के नाम से 26 दिसम्बर 1899 को सुनम, पटियाला, में हुआ था। उनके पिता का नाम टहल सिंह था और वे पास के एक गाँव उपल्ल रेलवे क्रासिंग के चौकीदार थे।
सात वर्ष की आयु में उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया जिसके कारण उन्होंने अपना बाद का जीवन अपने बड़े भाई मुक्ता सिंह के साथ 24 अक्टूबर 1907 से केंद्रीय खालसा अनाथालय Central Khalsa Orphanage में जीवन व्यतीत किया।
दोनों भाईयों को सिख समुदाय के संस्कार मिले अनाथालय में जिसके कारण उनके नए नाम रखे गए। शेर सिंह का नाम रखा गया उधम सिंह और मुक्त सिंह का नाम रखा गया साधू सिंह। साल 1917 में उधम सिंह के बड़े भाई का देहांत हो गया और वे अकेले पड़ गए।
उधम सिंह ने अनाथालय 1918 को अपनी मेट्रिक की पढाई के बाद छोड़ दिया। वो 13 अप्रैल 1919 को, उस जलिवाला बाग़ हत्याकांड के दिल दहका देने वाले बैसाखी के दिन में वहीँ मजूद थे।
उसी समय General Reginald Edward Harry Dyer ने बाग़ के एक दरवाज़ा को छोड़ कर सभी दरवाजों को बंद करवा दिया और निहत्थे, साधारण व्यक्तियों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी। इस घटना में हजारों लोगों की मौत हो गयी। कई लोगों के शव तो कुए के अन्दर से मिले।
इस घटना के घुस्से और दुःख की आग के कारण उधम सिंह ने बदला लेने का सोचा। जल्दी ही उन्होंने भारत छोड़ा और वे अमरीका गए। उन्होंने 1920 के शुरुवात में Babbar Akali Movement के बारे में जाना और वे वापस भारत लौट आये।
वो छुपा कर एक पिस्तौल ले कर आये थे जिसके कारण पकडे जाने पर अमृतसर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इसके कारण उन्हें 4 साल की जेल हुई बिना लाइसेंस पिस्तौल रखने के कारण।
जेल से छुटने के बाद इसके बाद वे अपने स्थाई निवास सुनाम में रहने के लिए आये पर वहां के व्रिटिश पुलिस वालों ने उन्हें परेशां किया जिसके कारण वे अमृतसर चले गए। अमृतसर में उधम सिंह ने एक दुकान खोला जिसमें एक पेंटर का बोर्ड लगाया और राम मुहम्मद सिंह आजाद के नाम से रहने लगे Ram Mohammad Singh Azad. उधम सिंह ने यह नाम कुछ इस तरीके से चुना था की इसमें सभी धर्मों के नाम मौजूद थे।
उधम सिंह भगत सिंह के कार्यों और उनके क्रन्तिकारी समूह से बहुत ही प्रभावित हुए थे। 1935 जब वे कश्मीर गए थे, उन्हें भगत सिंह के तस्वीर के साथ पकड़ा गया था।
#5. Essay in 500 words
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13 मार्च, 1940 का दिन था । लन्दन के सेक्सटन हाल में ईस्ट इण्डिया एसोसिएशन और रॉयल एशियन सोसाइटी की ओर से विश्व स्थिति और अफगानिस्तान के विषय पर एक गोष्ठी हो रही थी । इसमें अन्तिम वक्ता जनरल सर माइकेल ओ डॉयर थे । उनके भाषण के बाद सभा समाप्त हो गयी । उसी समय सभा में एक भारतीय नौजवान उठा और उसने अपने रिवालवर से जनरल डीयर केसीने में कई गोलियां उतार दीं । गोलियां लगते ही जनरल डॉयर गिर पड़ा । गोलियों की आवाज सुनते ही हाल में भगदड़ मच गई और हर कोई अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगा । उस नौजवान को जब यह विश्वास हो गया कि जनरल डॉयर मर चुका है तब वह शान्त भाव से धीरे- धीरे चलता हुआ मुख्य द्वार पर आ गया और स्वयं को ब्रिटिश सार्जेन्ट के सामने गिरफ्तार करा दिया ।
यह वीर क्रान्तिकारी ऊधम सिंह था जिसने विदेश में जाकर भारत में निर्दोष लोगों के हत्यारे को उसी के देश में मौत के घाट उतारकर आजादी की लड़ाई में अपनी आहुति दी । शहीद ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर, 1899 को जिला संगरूर के सुनाम में सरदार टहल सिंह के यहाँ एक साधारण परिवार में हुआ । बचपन में ही एक के बाद उसके माता-पिता और बड़ा भाई साधू सिंह परलोक सिधार गये । ऊधम सिंह इस दुनिया में अकेला रह गया । इसके चाचा चंचल सिंह ने उसे मेंटुल सिक्स यतीमखाना, अमृतसर में भर्ती करा दिया । वहाँ उन्होंने बढ़ई का काम सीखा । इसी दौरान उसका सम्पर्क भगत सिंह और कुछ दूसरे क्रान्तिकारियों से हुआ. । क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया । वे चार वर्ष मुल्लान और रावलपिंडी की जेलों में ब्रिटिश हुकूमत की यातनायें सहते रहे । तब उन्होंने अमृतसर में ही एक लकड़ी की दुकान शुरू कर दी और अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया ।
भारत पर दमन करने वाले रौलेट एक्ट की वापसी के लिये 6 अप्रैल, 1919 को एक विशेष दिवस के रूप में मनाया गया । व अप्रैल को सभी समुदायों के लोगों ने रामनवमी का त्योहार राष्ट्रीय एकता पर्व के रूप में मनाया । यह सब देखकर ब्रिटिश हुकूमत बौखला गयी । 10 अप्रैल को महात्मा गाँधी, डॉक्टर सतपाल और डॉक्टर किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया । इसके बाद लोगों ने एक शान्तिप्रिय जुलूस निकाला । जैसे ही यह जुलूस भण्डारी पुल पर पहुँचा, सेना ने इस पर गोली चला दी जिससे? बीस लोग मारे गये और कई घायल हो गये । इससे जनता भड़क उठी और बगावत रार उतर आयी । सरकारी सम्पत्ति की लूट- पाट, तोड़-फोड़ और आगजनी जैसी घटनायें हुईं । जो भी अंग्रेज रास्ते में आया उसे मार दिया गया । यह देखकर अधिकारियों के हाथ-पाँव फूल गये । शहर को सेना के हवाले कर दिया गया । दफा 144 लगा दी गयी और रात का र्म्म लगा दिया गया । 11 से 12 अप्रैल को सारा शहर बन्द रहा । विदेशी शासकों के दमनकारी कानूनों का विरोध करने के लिए 19 अप्रैल, 1919 जलियांवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी । इससे ब्रिटिश सरकार बौखला गई । तभी जनरल डॉयर ने सेना के साथ जलियांबाला बाग में एक तंग गली से प्रवेश करके अचानक निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं । लोग इस अचानक हमले से बौखला कर इधर-उधर भागने लगे । कुछ गोलियों से भूने गये, कुछ भगदड़ में रौंदे गये । कुछ ने कुएं में छलांग लगा कर जान दे दी । दस मिनट तक राइफलों से 1654 गोलियां चलाई गयीं जिससे मौत का तांडव नाच होता रहा । भीषण गोलाबारी से 500 लोग मारे गये और हजारों घायल हो गये । इसके साथ ही पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया गया । जिस समय जनरल डॉयर खून की होली खेल रहा था, उस समय ऊधम सिंह बाग में अपने दूसरे साथियों के साथ मिलकर लोगों को पानी पिलाने की सेवा कर रहा था । इस कल्लेआम ने ऊधम सिंह के दिल में एक गहरा घाव कर दिया और उसने खून से रंगी मिट्टी को माथे से लगाकर इस कल्ले आम का बदला लेने की कसम खाई । जनरल डॉयर रिटायर होने के पश्चात् वापिस लन्दन चला गया और सरकारी पेन्हान पर ऐश की जिन्दगी बिताने लगा । ऊधम सिंह के मन में बदले की आग धक- धक कर जल रही थी । वह छिपता-छिपाता कई देशों से होता हुआ लन्दन जा पहुंचा और वहाँ इण्डिया हाऊस में रहने लगा । उसका वहाँ पर ठहरने का एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह से जनरल डॉयर का पता लगाना और सैकड़ों भारतवासियों के खून का बदला लेना । उसे वह जानकारी जल्दी ही मिल गई । आखिर उसे अपनी कसम पूरी करने का मौका 13 मार्च. 1940 को मिल गया तब उसने लन्दन के सेक्सन हॉल में जनरल डीयर को गोलियां से उसी प्रकार भूना जैसे उसने निहत्थे लोगों को गोलियां से भूना था । अंग्रेज सरकार ने उस पर मुकद्दमा चलाया और उसे फांसी की सजा दी ।
