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Sheen Kaaf Nizam Shayari in Hindi – शीन काफ़ निज़ाम की शायरी – प्रसिद्ध उर्दू ग़ज़ल, शेर व पोएट्री

Sheen Kaaf Nizam Shayari in Hindi

शीन काफ़ निज़ाम जी एक बहुत ही प्रसिद्द साहित्यकारों में से एक है यह हिंदी व उर्दू दोनों भाषाओ में अपनी रचनाये लिखते थे | इनके द्वारा रचित प्रसिद्ध कविता संग्रह गुमशुदा दैर की गूंजती घंटियाँ के लिए इन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था | इसीलिए इनके द्वारा लिखी गयी कुछ रचनाओं में से हम आपको इनके कुछ चुनिंदा शेर व शायरियो के बारे में बताते है जो की आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है जिन्हे आप अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते है |

शीन काफ़ निज़ाम की ग़ज़लें

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आँखें कहीं दिमाग़ कहीं दस्त ओ पा कहीं
रस्तों की भीड़-भाड़ में दुनिया बिखर गई

आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ
मिल गया तो सोचता हूँ क्या करूँ

अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी
उस ने किरदार बदल कर मिरा क़िस्सा लिख्खा

निकले कभी न घर से मगर इस के बावजूद
अपनी तमाम उम्र सफ़र में गुज़र गई

Sheen Kaaf Nizam Poetry

अपनी पहचान भीड़ में खो कर
ख़ुद को कमरों में ढूँडते हैं लोग

बदलती रुत का नौहा सुन रहा है
नदी सोई है जंगल जागता है

बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
लेकिन ज़मीन मिलती नहीं आसमान को

पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो

शीन काफ़ निज़ाम की शायरी

शायर शीन काफ निजाम

यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
हम तो समझ रहे थे सभी ज़ख़्म भर गए

दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे
बे-ख़ौफ़ कोई रास्ता चलने के लिए दे

धूल उड़ती है धूप बैठी है
ओस ने आँसुओं का घर छोड़ा

बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
एक तूफ़ाँ आएगा सब कुछ बहा ले जाएगा

Sheen Kaaf Nizam sher in Hindi

चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले
कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा

साहिलों की शफ़ीक़ आँखों में
धूप कपड़े उतार कर चमके

सुन लिया होगा हवाओं में बिखर जाता है
इस लिए बच्चे ने काग़ज़ पे घरौंदा लिख्खा

ज़ुल्म तो बे-ज़बान है लेकिन
ज़ख़्म को तू ज़बान कब देगा

निजाम की शायरी

दोस्ती इश्क़ और वफ़ादारी
सख़्त जाँ में भी नर्म गोशे हैं

एक आसेब है हर इक घर में
एक ही चेहरा दर-ब-दर चमके

वहशत तो संग-ओ-ख़िश्त की तरतीब ले गई
अब फ़िक्र ये है दश्त की वुसअत भी ले न जाए

याद और याद को भुलाने में
उम्र की फ़स्ल कट गई देखो

शीन काफ़ निज़ाम की ग़ज़लें

Ghazals of Sheen Kaaf Nizam

गली के मोड़ से घर तक अँधेरा क्यूँ है ‘निज़ाम’
चराग़ याद का उस ने बुझा दिया होगा

कहाँ जाती हैं बारिश की दुआएँ
शजर पर एक भी पत्ता नहीं है

कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
वर्ना कहेंगे लोग दुआ से असर गया

मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
दे रात की ठंडक को पिघलने की दुआ दे

Shayari of Sheen Kaaf Nizam

किसी के साथ अब साया नहीं है
कोई भी आदमी पूरा नहीं है

जिन से अँधेरी रातों में जल जाते थे दिए
कितने हसीन लोग थे क्या जाने क्या हुए

ऊँची इमारतें तो बड़ी शानदार हैं
लेकिन यहाँ तो रेन-बसेरे थे क्या हुए

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