सुभाष चंद्र बोस भारत के सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। हालाँकि शुरुआत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ गठबंधन किया गया था, लेकिन विचारधारा में अंतर के कारण उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था। वह युवाओं के करिश्माई प्रभावक थे और स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के दौरान भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) की स्थापना और नेतृत्व करके ‘नेताजी’ की उपाधि प्राप्त की। 1945 में उनके अचानक लापता होने के बाद, उनके जीवित रहने की संभावनाओं के विषय में, विभिन्न सिद्धांतों को सामने रखा गया। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में नाजी नेतृत्व और जापान में शाही सेना से सहायता मांगी, ताकि भारत से अंग्रेजों को उखाड़ फेंका जा सके।
Subhash chandra bose poems
subhash chandra bose jayanti date:हर वर्ष सुभाष चंद्रबोस जयंती 23 जनवरी को मनाई जाती है|
है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं।
है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।।
अक्सर दुनिया के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं।
लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं ।।
यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है।
जो रक्त कणों से लिखी गई,जिसकी जय-हिन्द निशानी है।।
प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत भू का उजियारा था ।
पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य लिख डाला था।।
यह वीर चक्रवर्ती होगा, या त्यागी होगा सन्यासी।
जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग-युग तक भारतवासी।।
सो वही वीर नौकरशाही ने, पकड़ जेल में डाला था ।
पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं फंदे में टिकने वाला था।।
बाँधे जाते इंसान, कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं।
काया ज़रूर बाँधी जाती, बाँधे न इरादे जाते हैं।।
वह दृढ़-प्रतिज्ञ सेनानी था, जो मौका पाकर निकल गया।
वह पारा था अँग्रेज़ों की मुट्ठी में आकर फिसल गया।।
जिस तरह धूर्त दुर्योधन से, बचकर यदुनन्दन आए थे।
जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के, पहरेदार छकाए थे ।।
बस उसी तरह यह तोड़ पिंजरा, तोते-सा बेदाग़ गया।
जनवरी माह सन् इकतालिस, मच गया शोर वह भाग गया।।
वे कहाँ गए, वे कहाँ रहे, ये धूमिल अभी कहानी है।
हमने तो उसकी नई कथा, आज़ाद फ़ौज से जानी है।।
– गोपालप्रसाद व्यास
Poems in hindi
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
आ सके देश के काम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का
जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है,
वह खून नहीं, पानी है!
उस दिन लोगों ने सही-सही
खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
मॉंगी उनसे कुरबानी थी।
बोले, “स्वतंत्रता की खातिर
बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में,
लेकिन आगे मरना होगा।
आज़ादी के चरणें में जो,
जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
फूलों से गूँथी जाएगी।
आजादी का संग्राम कहीं
पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा
नंगे सर झेला जाता है”
यूँ कहते-कहते वक्ता की
आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
दमकी उनकी रक्तिम काया!
आजानु-बाहु ऊँची करके,
वे बोले, “रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की
आज़ादी तुम मुझसे लेना।”
हो गई सभा में उथल-पुथल,
सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के
कोसों तक छाए जाते थे।
“हम देंगे-देंगे खून”
शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े
तैयार दिखाई देते थे।
बोले सुभाष, “इस तरह नहीं,
बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
आकर हस्ताक्षर करता है?
इसको भरनेवाले जन को
सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
माता को अर्पण करना है।
पर यह साधारण पत्र नहीं,
आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का
कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!
वह आगे आए जिसके तन में
खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को
हिंदुस्तानी कहता हो!
वह आगे आए, जो इस पर
खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
जो इसको हँसकर लेता हो!”
सारी जनता हुंकार उठी-
हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो,
हम अपना रक्त चढाते हैं!
साहस से बढ़े युबक उस दिन,
देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से,
वे अपना रक्त गिराते थे!
फिर उस रक्त की स्याही में,
वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर
हस्ताक्षर करते जाते थे!
उस दिन तारों ने देखा था
हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने
ख़ूँ से अपना इतिहास नया।
– श्री गोपाल दास व्यास
Poem in english

Netaji Subhash Chandra Bose
Is the time the river flows in which all of them are swayed.
It is time that the big storms bend the strong mountain.
Often the people of the world do rot in time.
But some are like this, make history.
This is an immense immortal story of the same heroic history-man.
Which is written with blood particles, whose jihan is a sign.
Lovely Subhash, leader Subhash, was the light of Bharat Bhoomi.
As soon as he was born, the composers wrote the future.
It will be Vir Chakraborti, or Tyagi will be the ascetic.
Remembering the glory of which, till the ages, Indians reside.
So the same heroic bureaucrat was caught in jail.
But the angry Kehri was never supposed to be trapped.
People stuck, never hurry.
Kaya must be tied and not bound.
He was a resolute fighter, who got out of the chance.
The mercury was slipped into the hand of the British.
The way the sly Duryodhana survived, Yadunandan had come.
Just like Shivaji had used the Mughals, the guards were roasted.
Just like that, it was broken, and the parrot became stupid.
In January, he ran away.
Where did they go, where they stayed, this is a faint story now.
We have to know from his latest story, Azad Fauj ..
Gopal Prasad Vyas
सुभाष चंद्र बोस मराठी कविता
नेताजी सुभाषचंद्र बोस
नदीचा प्रवाह ज्या वेळी वाहत असतो तो काळ आहे का?
आता वेळ आली आहे की मोठे वादळ मजबूत पर्वत मोडत आहे.
बहुतेक वेळा जगाचे लोक वेळेत रडतात.
परंतु काही असे आहेत, इतिहास बनवा.
ही एक अत्यंत विलक्षण इतिहास-मनुष्य आहे.
जे रक्त कणांसह लिहिलेले आहे, ज्यांचे जिहाण चिन्ह आहे.
लव्ह सुभाष, नेता सुभाष, भारतभूमीचा प्रकाश होता.
जेव्हा त्याचा जन्म झाला तेव्हा संगीतकारांनी भविष्याबद्दल लिहिले.
ती वीर चक्रवर्ती असेल, किंवा त्यागी तपस्वी असतील.
ज्याची वयाची वयाचे गौरव, भारतीय लोक राहतात.
म्हणूनच त्याच वीर नोकरशाहीला तुरुंगात पकडण्यात आले.
परंतु क्रोधित केहर्यांना कधीही अडकले नव्हते.
लोक अडकले, उडी मारली नाही.
काया बांधले पाहिजे आणि बांधील नाहीत.
तो एक पराक्रमी लढाऊ खेळाडू होता, जो संधीचा त्याग करीत होता.
पारा इंग्रजांच्या हातात गेला.
दुर्योधन शिल्लक राहण्याच्या मार्गावर यदुुनंदन आले होते.
जसे शिवाजी मुगलोंचा वापर करीत होते तसतसे रक्षक भुकेले होते.
त्याचप्रमाणे तो तुटलेला होता आणि तोफ मूर्ख बनला.
जानेवारी मध्ये तो पळून गेला.
ते कुठे गेले, ते कुठे राहिले, ही आता एक अस्पष्ट कथा आहे.
आझाद फौजने आपल्या अलीकडील कथेतून आपल्याला कळवावे लागेल.
गोपाल प्रसाद व्यास
Subhash chandra bose kavita
वो था सुभाष, वो था सुभाष
वो भी तो खुश रह सकता था
महलों और चौबारों में
उसको लेकिन क्या लेना था
तख्तो-ताज-मीनारों से?
वो था सुभाष, वो था सुभाष
अपनी मां बंधन में थी जब
कैसे वो सुख से रह पाता
रणदेवी के चरणों में फिर
क्यों ना जाकर शीश चढ़ाता?
अपना सुभाष, अपना सुभाष
डाल बदन पर मोटी खाकी
क्यों न दुश्मन से भिड़ जाता
‘जय-हिन्द’ का नारा देकर
क्यों न अजर-अमर हो जाता?
नेता सुभाष, नेता सुभाष
जीवन अपना दांव लगाकर
दुश्मन सारे खूब छकाकर
कहां गया वो, कहां गया वो
जीवन-संगी सब बिसराकर?
तेरा सुभाष, मेरा सुभाष
मैं तुमको आजादी दूंगा
लेकिन उसका मोल भी लूंगा
खूं बदले आजादी दूंगा
बोलो सब तैयार हो क्या?
गरजा सुभाष, बरसा सुभाष
वो था सुभाष, अपना सुभाष
नेता सुभाष, बाबू सुभाष
तेरा सुभाष, मेरा सुभाष
अपना सुभाष, अपना सुभाष।
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देखा पूरब में आज सुबह,
एक नई रोशनी फूटी थी।
एक नई किरन, ले नया संदेशा,
अग्निबान-सी छूटी थी॥
एक नई हवा ले नया राग,
कुछ गुन-गुन करती आती थी।
आज़ाद परिन्दों की टोली,
एक नई दिशा में जाती थी॥
एक नई कली चटकी इस दिन,
रौनक उपवन में आई थी।
एक नया जोश, एक नई ताज़गी,
हर चेहरे पर छाई थी॥
नेताजी का था जन्मदिवस,
उल्लास न आज समाता था।
सिंगापुर का कोना-कोना,
मस्ती में भीगा जाता था।
हर गली, हाट, चौराहे पर,
जनता ने द्वार सजाए थे।
हर घर में मंगलाचार खुशी के,
बांटे गए बधाए थे॥
पंजाबी वीर रमणियों ने,
बदले सलवार पुराने थे।
थे नए दुपट्टे, नई खुशी में,
गये नये तराने थे॥
वे गोल बांधकर बैठ गईं,
ढोलक-मंजीर बजाती थीं।
हीर-रांझा को छोड़ आज,
वे गीत पठानी गाती थीं।
गुजराती बहनें खड़ी हुईं,
गरबा की नई तैयारी में।
मानो वसन्त ही आया हो,
सिंगापुर की फुलवारी में॥
महाराष्ट्र-नन्दिनी बहनों ने,
इकतारा आज बजाया था।
स्वामी समर्थ के शब्दों को,
गीतों में गति से गाया था॥
वे बंगवासिनी, वीर-बहूटी,
फूली नहीं समाती थीं।
अंचल गर्दन में डाल,
इष्ट के सम्मुख शीश झुकाती थीं-
प्यारा सुभाष चिरंजीवी हो,
हो जन्मभूमि, जननी स्वतंत्र !
मां कात्यायिनि ऐसा वर दो,
भारत में फैले प्रजातंत्र !!
हर कण्ठ-कण्ठ से शब्द यही,
सर्वत्र सुनाई देते थे।
सिंगापुर के नर-नारि आज,
उल्लसित दिखाई देते थे॥
– गोपालप्रसाद व्यास
