Essay (Nibandh)

Valmiki Jayanti Essay & Speech in Hindi, English & Marathi – वाल्मीकि जयंती पर निबंध

Valmiki Jayanti in Hindi Essay

Valmiki jayanti 2019 :वाल्मीकि जयंती महान लेखक और ऋषि, महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाती है। पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वाल्मीकि जयंती आश्विन के महीने में पूर्णिमा तिथि (पूर्णिमा के दिन) मनाई जाती है जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह सितंबर-अक्टूबर के महीने से मेल खाती है। महर्षि वाल्मीकि महान हिंदू महाकाव्य रामायण के लेखक हैं और ‘अड़ी कवि’ या संस्कृत साहित्य के पहले कवि के रूप में भी पूजनीय हैं। रामायण, भगवान राम की कहानी को दर्शाते हुए, उनके द्वारा पहली बार संस्कृत भाषा में लिखी गई थी और इसमें 24,000 छंद शामिल हैं जो 7 as कंधों ’(कैंटोस) में विभाजित हैं।

वाल्मीकि जयंती पर भाषण

valmiki jayanti 2019 date: इस वर्ष महर्षि वाल्मीकि जयंती 13 अक्टूबर को है|

महर्षि वाल्मीकि प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणीमें प्रमुख स्थान प्राप्त करते हैं. इन्होंने संस्कृत मे महान ग्रंथ रामायण महान ग्रंथ की रचना कि थी इनके द्वारा रचित रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाती है. हिंदु धर्म की महान कृति रामायण महाकाव्य श्रीराम के जीवन और उनसे संबंधित घटनाओं पर आधारित है. जो जीवन के विभिन्न कर्तव्यों से परिचित करवाता है |

‘रामायण’ के रचयिता के रूप में वाल्मीकि जी की प्रसिद्धि है. इनके पिता महर्षि कश्यप के पुत्र वरुण या आदित्य माने गए हैं. एक बार ध्यान में बैठे हुए इनके शरीर को दीमकों ने अपना ढूह (बाँबी) बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब ये दीमक-ढूह से जिसे वाल्मीकि कहते हैं, बाहर निकले तो इन्हें वाल्मीकि कहा जाने लगा |

महर्षि वाल्मीकी का जीवन चरित्र |

महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु दस्युकर्म करते थे एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि तुम यह निम्न कार्य किस लिये करते हो, इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार को पालने के लिये. इस पर नारद ने प्रश्न किया कि तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होगें यह जानकर वह स्तब्ध रह जाता है |

नारदमुनि ने कहा कि हे रत्नाकर यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिये यह पाप करते हो इस बात को सुनकर उसने नारद के चरण पकड़ लिए और डाकू का जीवन छोड़कर तपस्या में लीन हो गए और जब नारद जी ने इन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया तो उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, परंतु वह राम-नाम का उच्चारण नहीं कर पाते तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिये कहा और मरा रटते-रटते यही ‘राम’ हो गया और निरन्तर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए |

वाल्मीकि रामायण |

एक बार महर्षि वाल्मीकि नदी के किनारे क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे , वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी एक व्याध ने क्रौंच पक्षी के एक जोड़े में से एक को मार दिया,नर पक्षी की मृत्यु से व्यथित मादा पक्षी विलाप करने लगती है. उसके इस विलाप को सुन कर वालमीकि के मुख से स्वत: ही मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।। नामक श्लोक फूट पड़ाः और जो महाकाव्य रामायण का आधार बना|

महर्षि वाल्मीकि जयंती महोत्सव |

देश भर में महर्षि बाल्मीकि की जयंती को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर शोभा यात्राओं का आयोजन भी होता है.महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया है वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद मार्ग पर चलने की राह दिखाई |

इस अवसर पर वाल्मीकि मंदिर में पूजा अर्चना भी की जाती है तथा शोभा यात्रा के दौरान मार्ग में जगह-जगह लोगों इसमें बडे़ उत्साह के साथ भाग लेते हैं. झांकियों के आगे उत्साही युवक झूम-झूम कर महर्षि वाल्मीकि के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं. इस अवसर पर उनके जीवन पर आधारित झाकियां निकाली जाती हैं व राम भजन होता है. महर्षि वाल्मीकि को याद करते हुए महर्षि वाल्मीकि जयंती की पूर्व संध्या पर उनके चित्र पर माल्यार्पण करके उनको श्रद्धासुमन अर्पित किए जाते हैं |

Balmiki jayanti Nibandh

Valmiki jayanti speech in marathi

महाऋषि वाल्मीकि जयंती हर साल महाऋषि वाल्मीकि की याद में अश्विन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इन्होने विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ “रामायण” की रचना संस्कृत भाषा में की थी। वो एक महान और पहले कवि थे। रामायण ग्रन्थ प्रथम महाकाव्य है जो श्रीराम के जीवन की प्रमुख घटनाओं को काव्य के रूप में सुनाता है। महाऋषि वाल्मीकि जयंती 2018 में यह 24 अक्टूबर के दिन मनाई जाएगी।

महाऋषि वाल्मीकि का जीवन परिचय

महाऋषि वाल्मीकि केवट जाति के थे। उनके जीवन के बारे में एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है। एक बार तमसा नदी के तट पर महाऋषि वाल्मीकि एक क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े को प्रेम करते हुए देख रहे थे। तभी एक बहेलिया (शिकारी) ने वहां आकर एक नर सारस पक्षी को मार दिया। मादा सारस पक्षी विलाप करने लगी। इससे क्रुद्ध होकर महाऋषि वाल्मीकि ने बहेलियों को श्राप दिया और कहा-

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्

अर्थात हे बहेलिये! तूने काममोहित पक्षी का वध किया है इसलिए तुझे कभी भी सम्मान और प्रतिष्ठा नही मिलेगी”

लव कुश का जन्म कथा

ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्होने “रामायण” जैसे प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की। वाल्मीकि राम के समकालीन थे। जब श्रीराम से सीता का त्याग कर दिया था तब महाऋषि वाल्मीकि ने ही इनको आश्रय दिया था। उनके आश्रम में ही माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया। जब श्रीराम से अश्वमेध यज्ञ किया तो लव कुश ने वाल्मीकि के आश्रम में यज्ञ के घोड़े को बाँध लिया। बाद में उन्होंने लक्ष्मण की सेना को पराजित कर अपना शौर्य दिखाया।

रामायण ग्रंथ

महर्षि वाल्मीकि को श्री राम के जीवन की हर घटना का ज्ञान था। इसी आधार पर उन्होंने “रामायण” ग्रंथ की रचना की। इसमें कुल 24000 श्लोक है और 7 अध्याय है जो कांड के नाम से जाने जाते है। इस ग्रंथ से त्रेता युग की सभ्यता, रहन सहन, सस्कृति की पूरी जानकारी मिलती है।

 

महर्षि वाल्मीकि – डाकू रत्नाकर

महर्षि वाल्मीकि महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र “वरुण” के पुत्र थे। वे एक महान तपस्वी थे। ऐसा मत है की अपने जीवन के आरम्भिक काल में वो “रत्नाकर” नाम के डाकू थे जो लोगो को मारने के बाद उनको लूट लिया करते थे। वे अपने परिवार का भरण पोषण के लिए ऐसा काम करते थे। एक बार इन्होने नारद मुनि को बंदी बना लिया। नारद ने पूछा कि ऐसा पाप कर्म क्यों करते हो? रत्नाकर बोले “अपने परिवार के लिए?” नारद पूछने लगे कि क्या तुम्हारा परिवार भी तुम्हारे पाप का भागीदार बनेगा। “हाँ, बिलकुल बनेगा” रत्नाकर बोले।

“अपने परिवार से पूछकर आओ क्या वो तुम्हारे पाप कर्म के भागीदार बनेगे। अगर वो हाँ बोलेंगे तो मैं तुमको अपना सारा धन दे दूंगा” नारद मुनि कहने लगे। लेकिन जब रत्नाकर घर जाकर वही सवाल करने लगे तो किसी ने हाँ नही की। उनको गहरा धक्का लगा। उन्होंने चोरी, लूटपाट, हत्या का रास्ता छोड़ दिया और तपस्या करने लगे। नारद मुनि ने इनका ह्रदय परिवर्तन किया था और श्री राम का भक्त बना दिया था। सालो तक तपस्या करने के बाद आकाशवाणी ने उनका नया नाम “वाल्मीकि” बताया था। इन्होने इतनी गहरी तपस्या की थी कि इनके शरीर में दीमक लग गयी थी। ब्रह्मदेव ने इनको ज्ञान दिया और रामायण लिखने की प्रेरणा दी।

महाऋषि वाल्मीकि जयंती कैसे मनाई जाती है?

यह जयंती हर साल अश्विन महीने की पूर्णिमा को देश भर में धूम धाम से मनाई जाती है। “महर्षि वाल्मीकि” की प्रतिमा पर माल्यार्पण और सजावट करके जगह-जगह जुलूस, झांकियां और शोभायात्रा निकाली जाती है। लोगो को बहुत उत्साह रहता है। भक्तगण गीतों पर नाचते, झूमते रहते हैं। इस अवसर पर श्री राम के भजन गाये जाते हैं। यह दिन एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। लोग सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, वाट्सअप पर बधाई संदेश एक दूसरे को देते हैं।

“रामायण के हैं जो रचियता, संस्कृत के हैं जो कवि महान
ऐसे हमारे पूज्य गुरुवर, उनके चरणों में हमारा प्रणाम।।।
वाल्मीकि जयंति की शुभकामनाएं।”

“सुख दुख हैं जीवन के मेहमान, आते हमारे पास बिन बुलाए
हंकार का करो नाश तुम, यह जीवन का दुश्मन कहलाए।।।
वाल्मीकि जयंति की शुभकामनाएं”

इस तरह के संदेश भेजे जाते हैं। मिठाइयाँ, पकवान, फल बांटे जाते हैं। कई जगह पर भंडारे का कार्यक्रम किया जाता है। महर्षि बाल्मीकि की तरह लोगो को बुराई से अच्छाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। महर्षि वाल्मीकि के जीवन पर गोष्ठी का आयोजन किया जाता है।

निष्कर्ष

हम सभी को महाऋषि वाल्मीकि जयंती को धूमधाम से मनाना चाहिये। “रामायण” ग्रंथ लिखकर वाल्मीकि ने समाज को राम आदर्श चरित्र प्रस्तुत किया।

Essay on Valmiki Jayanti in Hindi

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महर्षि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि वैदिक काल के महान ऋषियों में माने जाते हैं। आप संस्कृत भाषा के आदि कवि और आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में सुप्रसिद्ध हैं।

महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण [आदित्य] से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे। मनुस्मृति के अनुसार प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि भी इन्हीं के भाई थे।

एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।

वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि कहते हैं कि वे प्रचेता के पुत्र हैं। मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ , नारद , पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया है। बताया जाता है कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्माजी के पुत्र थे। यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे और उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके भी दो नाम ‘अग्निशर्मा’ एवं ‘रत्नाकर’ थे।

किंवदन्ती है कि बाल्यावस्था में ही रत्नाकर को एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया और प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहाँ का भील समुदाय वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म करता था।

महर्षि वाल्मीकी का जीवन

वाल्मीकि ॠषि के जन्म को लेकर भी उसी प्रकार का विवाद है जैसा संत कबीर के बारे में है। वाल्मीकि का अर्थ चींटियों की मिट्टी की बांबी है। जनश्रुति के अनुसार एक भीलनी या निषादनी ने एक एक चींटियों की बांबी पर एक बच्चा पड़ा पाया। वह उसे उठा ले गई और उसका नाम रख दिया वाल्मीकि।

एक अन्य किवंदंति का उल्लेख ऊपर किया ही जा चुका है कि वाल्मीकि ने एक स्थान पर बैठकर इतनी घोर तपस्या की थी कि उनके शरीर पर मिट्टी की बांबी बन गई। उनकी ऐसी दशा देखकर लोग उन्हें वाल्मीकि बुलाने लगे।

यह कथा भी प्रचलित है कि वास्तव में बाल्मीकि ब्राह्मण थे व एक भीलनी उन्हें चुराकर ले गई थी।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले, तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि- तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो? इस पर रत्नाकर ने उत्तर दिया कि अपने परिवार को पालने के लिए।

इस पर नारद ने प्रश्न किया कि तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर, नारद को पेड़ से बांधकर अपने घर गए। वहां जाकर वह यह जानकर स्तब्ध रह गए कि परिवार का कोई भी व्यक्ति उसके पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं है। लौटकर उन्होंने नारद के चरण पकड़ लिए।

तब नारद मुनि ने कहा कि- हे रत्नाकर, यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिए यह पाप करते हो। इस तरह नारद जी ने इन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, परंतु वह ‘राम’ नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे। तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिए कहा और मरा रटते-रटते यही ‘राम’ हो गया और निरंतर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए।

Valmiki jayanti speech in marathi

वाल्मिकी रामायण लेखक आहे. वाल्मिकीने ‘श्लोक’ शोधून काढला आणि त्याला आदि कवी म्हणून ओळखले जाते जे प्रथम कवी आहे. त्याच्या सुरुवातीच्या काळात तो रत्नाकर नावाचा एक लुटारू होता जो लोकांचा वध करण्यासाठी व लुटण्यासाठी वापरत असे. एकदा त्याने आपल्या कुटुंबाच्या फायद्यासाठी दैवी ऋषि नारदांना लुटायला लावले. मग ऋषींनी त्याला विचारले की चोरीसाठी लागणारा पाप त्यांच्या कुटुंबास मिळेल का? रत्नाकरांनी सकारात्मक उत्तर दिले, पण ऋषींनी त्याला आपल्या कुटुंबासह याची खात्री करण्यासाठी विचारले. जेव्हा त्याने आपल्या कुटुंबाला विचारले तेव्हा कोणीही पापाचा भार घेण्यासाठी सहमत झाला नाही. मग रत्नाकरांना जीवनाची सत्यता समजली आणि ऋषिची क्षमा मागितली. नारदांनी रत्नाकरांना तारणासाठी मंत्र शिकवले. मंत्रात भगवान राम यांचे नाव आहे आणि ते त्याच्यासारख्या खुन्यांनी वापरू नये. म्हणून नारदांनी रत्नाकरांना “राम” ऐवजी “मार” म्हणायला सांगितले. त्याने कित्येक वर्षे तपश्चर्या केली की त्याच्या शरीराच्या सभोवतालची टेकडी वाढली. अखेरीस, एक दिव्य आवाजाने त्याचे पुनरुत्थान यशस्वी घोषित केले आणि त्याला “वाल्मीकि” असे नाव दिले: “एंट-टेकल्समधून जन्माला आलेला”. रामायण मूळतः वाल्मीकिने लिहिली होती आणि यात 23,000 श्लोक आणि 7 कटोरे आहेत. रामायणमध्ये 480,002 शब्द आहेत, जे महाभारत एक चतुर्थांश आहे

हिंदू कॅलेंडरच्या अश्विन महिन्याच्या पूर्ण चंद्र दिवशी वाल्मीकि जयंती साजरा केला जातो. हिंदू कॅलेंडरनुसार ते सप्टेंबर-ऑक्टोबर महिन्यात येते. वालमीकि जयंती उत्तर भारतात विशेषतः राजस्थानमध्ये मोठ्या प्रमाणात साजरा केला जातो आणि प्रगति दिवा म्हणून ओळखला जातो

वाल्मीकि जयंती मोठ्या भक्ती आणि उत्साहाने साजरा केला जातो. हे वाल्मीकिच्या संदर्भात शुभ दिवस मानले जाते आणि सुभा यात्रा केली जाते. संपूर्ण भारतामध्ये, प्रसाद आणि अन्न वितरीत केले जाते. मंदिरे, विशेषतः भगवान राम आणि वाल्मीकि मंदिर, पुष्प, धूप, पाने आणि डायांनी सुसज्ज आहेत. पंडित त्याच्या सन्मानार्थ प्रार्थना करतात आणि रामायण मंदिरामध्ये वाचतात

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