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Yagana Changezi Shayari in Hindi – यगाना चंगेज़ी की शायरी – उर्दू शेरो शायरी व ग़ज़ल

Yagana Changezi Shayari in Hindi

उर्दू के प्रसिद्द शायरों में से एक शायर जनाब यगाना चंगेज़ी का नाम भी आता है जिन्होंने अपनी शायरियो से लोगो को अपनी तरफ आकर्षित किया था | इनका जन्म 1884 में बिहार राज्य के पटना जिले में हुआ था व इनकी मृत्यु 1956 में हुई | यह चंगेज़ खान के वंशज थे जिसकी वजह से इन्होने महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का विरोध भी किया था जिसकी वजह से इन्हे और अधिक प्रसिद्धि भी मिली | इनके द्वारा तीन पुस्तके लिखी गयी जिसमे कई प्रकार के शेर व शायरियां आपको मिलते है अगर आप उनके बारे में जानना चाहे तो इसके लिए हमारे द्वारा बताई गयी जानकारी को पढ़ सकते है |

Yagana Changezi Sher In Hindi

वाइज़ की आँखें खुल गईं पीते ही साक़िया
ये जाम-ए-मय था या कोई दरिया-ए-नूर था

वही साक़ी वही साग़र वही शीशा वही बादा
मगर लाज़िम नहीं हर एक पर यकसाँ असर होना

यकसाँ कभी किसी की न गुज़री ज़माने में
यादश-ब-ख़ैर बैठे थे कल आशियाने में

आ रही है ये सदा कान में वीरानों से
कल की है बात कि आबाद थे दीवानों से

‘यगाना’ वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं
दिल-ए-संग-ओ-आहन में घर करने वाले

‘यास’ इस चर्ख़-ए-ज़माना-साज़ का क्या ए’तिबार
मेहरबाँ है आज कल ना-मेहरबाँ हो जाएगा

शर्बत का घूँट जान के पीता हूँ ख़ून-ए-दिल
ग़म खाते खाते मुँह का मज़ा तक बिगड़ गया

साक़ी मैं देखता हूँ ज़मीं आसमाँ का फ़र्क़
अर्श-ए-बरीं में और तिरे आस्ताने में

सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या
सर फिरा दे इंसाँ का ऐसा ख़ब्त-ए-मज़हब क्या

सब्र करना सख़्त मुश्किल है तड़पना सहल है
अपने बस का काम कर लेता हूँ आसाँ देख कर

 यगाना चंगेज़ी की शायरी

यगाना चंगेज़ी की ग़ज़लें

रंग बदला फिर हवा का मय-कशों के दिन फिरे
फिर चली बाद-ए-सबा फिर मय-कदे का दर खुला

दैर ओ हरम भी ढह गए जब दिल नहीं रहा
सब देखते ही देखते वीराना हो गया

झाँकने ताकने का वक़्त गया
अब वो हम हैं न वो ज़माना है

का’बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो
दिल में सिवाए यार किसी का गुज़र नहीं

कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है
इक तरफ़ उजड़ती है एक सम्त बसती है

दर्द हो तो दवा भी मुमकिन है
वहम की क्या दवा करे कोई

कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा
फिर वही हम वही अमीनाबाद

ख़ुदा ही जाने ‘यगाना’ मैं कौन हूँ क्या हूँ
ख़ुद अपनी ज़ात पे शक दिल में आए हैं क्या क्या

ख़ुदा जाने अजल को पहले किस पर रहम आएगा
गिरफ़्तार-ए-क़फ़स पर या गिरफ़्तार-ए-नशेमन पर

दुनिया के साथ दीन की बेगार अल-अमाँ
इंसान आदमी न हुआ जानवर हुआ

Urdu Shayari of Yagana Changezi

दुनिया से ‘यास’ जाने को जी चाहता नहीं
अल्लाह रे हुस्न गुलशन-ए-ना-पाएदार का

ग़ालिब और मीरज़ा ‘यगाना’ का
आज क्या फ़ैसला करे कोई

गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं

इम्तियाज़-ए-सूरत-ओ-मअ’नी से बेगाना हुआ
आइने को आइना हैराँ को हैराँ देख कर

बे-धड़क पिछले पहर नाला-ओ-शेवन न करें
कह दे इतना तो कोई ताज़ा-गिरफ़्तारों से

बुतों को देख के सब ने ख़ुदा को पहचाना
ख़ुदा के घर तो कोई बंदा-ए-ख़ुदा न गया

फ़र्दा को दूर ही से हमारा सलाम है
दिल अपना शाम ही से चराग़-ए-सहर हुआ

जैसे दोज़ख़ की हवा खा के अभी आया हो
किस क़दर वाइज़-ए-मक्कार डराता है मुझे

इल्म क्या इल्म की हक़ीक़त क्या
जैसी जिस के गुमान में आई

दूर से देखने का ‘यास’ गुनहगार हूँ मैं
आश्ना तक न हुए लब कभी पैमाने से

Yagana Changezi Sher In Hindi

Yagana Changezi Ghazals

पर्दा-ए-हिज्र वही हस्ती-ए-मौहूम थी ‘यास’
सच है पहले नहीं मालूम था ये राज़ मुझे

पयाम-ए-ज़ेर-ए-लब ऐसा कि कुछ सुना न गया
इशारा पाते ही अंगड़ाई ली रहा न गया

ख़ुदी का नश्शा चढ़ा आप में रहा न गया
ख़ुदा बने थे ‘यगाना’ मगर बना न गया

मुझे दिल की ख़ता पर ‘यास’ शर्माना नहीं आता
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता

मुसीबत का पहाड़ आख़िर किसी दिन कट ही जाएगा
मुझे सर मार कर तेशे से मर जाना नहीं आता

पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए
इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या

न संग-ए-मील न नक़्श-ए-क़दम न बाँग-ए-जरस
भटक न जाएँ मुसाफ़िर अदम की मंज़िल के

पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
अब मय-कदा भी सैर के क़ाबिल नहीं रहा

दीवाना-वार दौड़ के कोई लिपट न जाए
आँखों में आँखें डाल के देखा न कीजिए

Urdu Poetry by Yagana Changezi in Hindi Fonts

हाथ उलझा है गरेबाँ में तो घबराओ न ‘यास’
बेड़ियाँ क्यूँकर कटीं ज़िंदाँ का दर क्यूँकर खुला

हुस्न-ए-ज़ाती भी छुपाए से कहीं छुपता है
सात पर्दों से अयाँ शाहिद-ए-मअ’नी होगा

मरते दम तक तिरी तलवार का दम भरते रहे
हक़ अदा हो न सका फिर भी वफ़ादारों से

पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला
ख़ुदा थे इतने मगर कोई आड़े आ न गया

उम्मीद-ओ-बीम ने मारा मुझे दो-राहे पर
कहाँ के दैर ओ हरम घर का रास्ता न मिला

मौत माँगी थी ख़ुदाई तो नहीं माँगी थी
ले दुआ कर चुके अब तर्क-ए-दुआ करते हैं

मुफ़लिसी में मिज़ाज शाहाना
किस मरज़ की दवा करे कोई

मुझे ऐ नाख़ुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है
बहाना कर के तन्हा पार उतर जाना नहीं आता

बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
डूब मरने का मज़ा दरिया-ए-बे-साहिल में है

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